Karnataka Crisis: गठबंधन में सहयोगियों के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर कलह होना एक बात है, लेकिन जब अकेले दम पर सत्ता में काबिज पार्टी के भीतर ही नेतृत्व संकट पैदा हो जाए, तो बात कुछ हजम नहीं होती है। कांग्रेस पार्टी के लिए यह एक बार-बार दोहराया जाने वाला पैटर्न सा बन गया है। जिन राज्यों में कांग्रेस के अपने मुख्यमंत्री रहे हैं, वहां पार्टी को हमेशा शीर्ष नेताओं के बीच सत्ता संघर्ष को संतुलित करना पड़ा है, जो अनिवार्य रूप से सरकार की स्थिरता को खतरे में डालता रहा है। इस कड़ी में नया नाम कर्नाटक का जुड़ गया है, जहां सीएम सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार टसल देखने को मिल रहा है।
कर्नाटक में 50:50 फॉर्मूले पर चल रही है बहस
2023 के विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच कथित तौर पर तय किया गया 50:50 पावर-शेयरिंग फॉर्मूला एक बार फिर पार्टी को परेशान कर रहा है। इस फॉर्मूले के तहत डीके शिवकुमार 2.5 साल बाद मुख्यमंत्री बन सकते हैं। हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व ने कभी भी आधिकारिक तौर पर ऐसे किसी समझौते को स्वीकार नहीं किया।
इन दोनों नेताओं के बीच चल रहे इस गतिरोध के चरम पर पहुंचने के बाद, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने स्थिति को स्वीकार करते हुए कहा कि इस मुद्दे को हल करने के लिए 'दवा' दी जाएगी। बताया ये भी जा रहा है कि कांग्रेस 1 दिसंबर तक नेतृत्व परिवर्तन पर कोई फैसला कर सकती है।
अन्य राज्यों में भी कुछ ऐसा ही रहा घटनाक्रम और चली गई सरकार
कर्नाटक में सत्ता के लिए हो रहा ये हालिया टसल कांग्रेस पार्टी के लिए कोई नया नहीं है, इससे पहले भी कई राज्यों में कुछ ऐसा ही घटनाक्रम देखने को मिला है और पार्टी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा है। आइए आपको बताते हैं ऐसे ही कुछ घटनाक्रम।
2022 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पंजाब कांग्रेस इकाई के तत्कालीन प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू के बीच एक बड़े संकट का सामना करना पड़ा। दोनों के बीच पोर्टफोलियो आवंटन, लोकसभा टिकट वितरण और यहां तक कि इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह जैसे कई मुद्दों पर टकराव हुआ। 78 कांग्रेस विधायकों में से 32 से अधिक विधायकों के एक गुट ने अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की। तब अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया।
चन्नी के कार्यकाल में भी सिद्धू और उनके बीच गतिरोध जारी रहा, विशेष रूप से पुलिस महानिदेशक (DGP) और महाधिवक्ता की नियुक्तियों को लेकर। सितंबर 2021 में पंजाब कांग्रेस प्रमुख बने सिद्धू ने कथित तौर पर दागी नेताओं और अधिकारियों को सरकार में शामिल किए जाने पर नाराजगी व्यक्त की थी।
2. छत्तीसगढ़: भूपेश बघेल बनाम टी.एस. सिंह देव
छत्तीसगढ़ संकट की शुरुआत राहुल गांधी द्वारा तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंह देव को मुख्यमंत्री पद के रोटेशन (बारी-बारी से मुख्यमंत्री बनने) के बारे में दिए गए कथित आश्वासन से हुई। कांग्रेस सरकार के मध्यावधि में टी.एस. सिंह देव ने उस पद की मांग की जिसका उन्हें 'वादा' किया गया था। 2013-18 के दौरान विपक्ष के नेता रहे सिंह देव खुद को मुख्यमंत्री पद का स्वाभाविक दावेदार मानते थे, लेकिन भूपेश बघेल को अंतिम विकल्प चुना गया। तब बघेल ने 'रोटेशन' सिद्धांत की विश्वसनीयता को मानने से इनकार कर दिया था।
3. राजस्थान: अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट
साल 2018 में कांग्रेस की जीत के बाद अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने और सचिन पायलट उपमुख्यमंत्री। दोनों नेताओं के बीच मतभेद 2020 में तब खुलेआम सामने आए जब पायलट के वफादार 18 विधायकों ने राजभवन के बाहर विरोध प्रदर्शन किया।पार्टी के हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद विद्रोह शांत हो गया, लेकिन दोनों नेताओं के बीच तनाव पूरे सरकारी कार्यकाल के दौरान बना रहा। पायलट ने एक बार गहलोत शासन पर भ्रष्टाचार की जांच करने में कथित विफलता के विरोध में जयपुर में एक दिन का उपवास भी रखा था। अगले चुनाव में इस टकराव का असर साफ देखने को मिला और पार्टी सत्ता से बाहर हो गई।
4. मध्य प्रदेश: कमल नाथ बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया
दिसंबर 2018 में कांग्रेस ने भाजपा के 109 सीटों के मुकाबले 114 सीटें जीतीं। ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने कमल नाथ को शीर्ष पद के लिए चुना। दोनों के बीच अनबन तब सामने आई जब सिंधिया ने नाथ के नेतृत्व पर असंतोष जताया और उनसे चुनावी घोषणापत्र के वादों को पूरा करने में देरी को लेकर सवाल किए। मार्च 2020 में राहुल गांधी के करीबी सहयोगी रहे सिंधिया ने 18 साल का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। उनके साथ 22 वफादार विधायकों के शामिल होने से कमल नाथ सरकार अल्पमत में आ गई और 20 मार्च 2020 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, जिससे भाजपा के सत्ता में लौटने का रास्ता साफ हो गया।