केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की राजधानी लेह में बुधवार को एक विरोध प्रदर्शन काफी हिंसक हो गया। इस प्रदर्शन का नेतृत्व ज्यादातर युवा कर रहे थे। यह घटना ऐसे समय में हुई है, जब दो दिन पहले ही विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे स्वतंत्र संगठन लेह एपेक्स बॉडी (LAB) के नेताओं ने चेतावनी दी थी कि जनता का धैर्य अब जवाब दे रहा है। यह मांग सिर्फ राज्य के दर्जे तक सीमित नहीं है, बल्कि मुख्य रूप से आदिवासी बहुल इस इलाके की खास पहचान और संस्कृति को बचाने से भी जुड़ी हुई है।
LAB ने सोमवार को घोषणा की थी कि उसके नेता तब तक भूख हड़ताल खत्म नहीं करेंगे, जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं। LAB के नेतृत्व ने 10 सितंबर को 35 दिनों की भूख हड़ताल शुरू की थी। लद्दाख में संवैधानिक सुरक्षा की मांग कर रहे नागरिक समाज के नेताओं ने सोमवार (22 सितंबर, 2025) को कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय का उन्हें 6 अक्टूबर को बातचीत के लिए बुलाने का फैसला 'एकतरफा' है।
दो दिन पहली ही LAB ने दी थी चेतावनी
उनका कहना है कि मंत्रालय को बैठक पहले बुलानी चाहिए थी, क्योंकि लेह के लोग भूख हड़ताल पर हैं और यह आंदोलन अब 13वें दिन में पहुंच गया है।
The Hindu के मुताबिक, लेह से वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन (LBA) के अध्यक्ष और लेह एपेक्स बॉडी (LAB) के सह-संयोजक चेरिंग दोरजे लकरुक ने तब कहा था, "लोगों सब्र अब टूटता जा रहा है और हालात हमारे हाथ से निकल सकते हैं। अभी तक भूख हड़ताल और हमारे प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे हैं। पिछले अनुभव बताते हैं कि अगर हम दबाव नहीं बनाते, तो सरकार हमें हल्के में लेने लगती है। मंत्रालय की ओर से बुलाई गई बातचीत बहुत देर से हो रही है, इसे जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी होना चाहिए।"
सोनम वांगचुक ने भी कहा था कि मांगों को पूरा करने में देरी होने से आने वाले हिल काउंसिल चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की संभावनाओं पर असर पड़ेगा।
उन्होंने कहा, “सरकार चाहे तो चुनाव टाल सकती है या भंग भी कर सकती है, लेकिन यह धोखाधड़ी जैसा होगा। भाजपा को 2020 के हिल काउंसिल चुनावों के दौरान किए गए वादे (लद्दाख को छठी अनुसूची का दर्जा देने का) को निभाना चाहिए।”
क्या है प्रदर्शनकारियों की मांग?
लद्दाख को 2019 में जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन के बाद केंद्र शासित प्रदेश (UT) बनाया गया था। तभी से इस एक अलग राज्य बनाने की मांगें उठ रही हैं, लेकिन 2024 में यह आंदोलन बड़े स्तर पर बदल गया।
जम्मू-कश्मीर का UT विधानसभा का दर्जा पा चुका है और वहां पहली बार चुनी हुई सरकार भी बन गई है। लेकिन लद्दाख अब भी सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में है।
इसके साथ ही लद्दाख ने अपनी कुछ सुरक्षा भी खो दी है, क्योंकि अनुच्छेद 370 और उससे जुड़ी विशेष प्रावधान हटने के बाद अब बाहरी लोग भी यहां जमीन खरीद सकते हैं।
इसलिए जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और अन्य स्थानीय लोग लेह में भूख हड़ताल पर बैठे थे। यह हड़ताल 35 दिनों तक चलाने की योजना थी, लेकिन हिंसक प्रदर्शन के बाद इसी आज ही खत्म कर दिया गया। उनकी मांग है कि लद्दाख को राज्य का दर्जा दिया जाए और केंद्र शासित प्रदेश को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए, ताकि इस इलाके को भी आदिवासी दर्जा मिल सके।