Nepal Protest: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई ने बुधवार (10 सितंबर) को नेपाल में जारी हिंसक विरोध प्रदर्शनों का हवाला देते हुए भारतीय संविधान की सराहना की। सुप्रीम कोर्ट में प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई के दौरान CJI गवई ने कहा कि हमें अपने संविधान पर गर्व है। देखिए हमारे पड़ोसी देशों में क्या हो रहा है। उन्होंने कहा कि हमने देखा है कि नेपाल में क्या हुआ। इस दौरान जस्टिस विक्रम नाथ ने भी कहा कि बांग्लादेश में भी इसी तरह की स्थिति सामने आई थी।
बुधवार को पांच जजों की संविधान पीठ राष्ट्रपति और राज्यपालों के अधिकार क्षेत्र से जुड़े मामले पर सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट के दोनों वरिष्ठ जजों ने ये टिप्पणी की। युवाओं के विरोध-प्रदर्शन के आगे नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को मंगलवार (9 सितंबर) को इस्तीफा देना पड़ा। इसी विरोधी प्रदर्शनों का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे संविधान पर गर्व है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल बांग्लादेश में छात्रों के नेतृत्व में हुए ऐतिहासिक जनांदोलन का भी जिक्र किया, जिसने पीएम शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार को गिरा दिया था। वह अभी भारत में हैं। न्यूज 18 के मुताबिक चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा, "हमें अपने संविधान पर गर्व है, देखिए पड़ोसी देशों में क्या हो रहा है।" इस पर जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा, "और बांग्लादेश में भी...।"
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी राष्ट्रपति के अधिकार के संदर्भ के मामले की सुनवाई के दौरान की। इसमें पूछा गया था कि क्या अदालतें राज्य विधानसभाओं में पारित विधेयकों पर विचार करने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा तय कर सकती हैं। सुनवाई के दौरान CJI बीआर गवई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट पीठ ने नेपाल की गंभीर स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त की।
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में 1975 में लगाए गए इमरजेंसी का हवाला दिया। मेहता ने कहा, "जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था, तो जनता ने उन्हें ऐसा सबक सिखाया कि न केवल उनकी पार्टी हारी। बल्कि उनकी कुर्सी भी चली गई। एक और सरकार आई जो जनता को नियंत्रित नहीं कर सकी। इसलिए उन्हीं लोगों ने उन्हें वापस सत्ता में ला दिया।"
इस पर चीफ जस्टिस गवई ने कहा, "...प्रचंड बहुमत के साथ...।" जबकि मेहता ने जवाब दिया, "हां, यह संविधान की शक्ति है। यह कोई राजनीतिक तर्क नहीं है।" नेपाल इस वक्त Gen Z. के नेतृत्व में भीषण हिंसा से जूझ रहा है। शुरुआत में यह विरोध प्रदर्शन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सरकार के प्रतिबंध के कारण भड़के थे। लेकिन बाद में यह भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में बदल गए।
नाराज प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर उतरकर कई सरकारी और निजी इमारतों में आग लगा दी। कई नेताओं और सरकारी अधिकारियों के घरों एवं दफ्तरों में भी तोड़फोड़ की गई। एक दिन पहले मंगलवार को प्रदर्शनकारियों ने संसद, राष्ट्रपति कार्यालय, प्रधानमंत्री आवास, सुप्रीम कोर्ट, राजनीतिक दलों के कार्यालयों और वरिष्ठ नेताओं के घरों में आग लगा दी थी।
छात्रों के नेतृत्व वाले आंदोलन के तीसरे दिन बुधवार को नेपाल में स्थिति और बिगड़ गई है। विरोध प्रदर्शनों की आड़ में संभावित हिंसा को रोकने के लिए सेना ने देशव्यापी कर्फ्यू लगा दिया है। पूरे देश में सेना की तैनाती है।