मुझे अक्सर लगता था की इस दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं एक जो इंसानों की तरह अपनी जिंदगी जीते हैं और एक वो जिनपर शैतान का साया होता है। पर मैं गलत था, इस दुनिया में तीसरे तरह के लोग भी होते हैं...मुझे आज भी वो पेपर का पन्ना याद है जिसपर एक हैवानियत की कहानी छपी थी। जब निठारी कांड की कहानी पहली बार अखबारों में छपकर घर तक आई तो उस दौरान मैं, क्लास 7 का छात्र था। उस दौरान भी अखबारों के माध्यम से पीड़ित परिवार के दर्द को शब्दों में उतरते देखा था। वहीं इस घटना के करीब 20 साल बाद अब बतौर पत्रकार इस मामले पर रिपोर्टिंग के दौरान भी पड़ित परिवारों के वही दर्द भरे शब्द... मेरे कानों में पड़ रहे थे। 20 सालों से वो बस एक ही सवाल पूछ रहे हैं आखिर हमारे बच्चों को किसने मारा और हमे न्याय कहां से मिलेगा?
