झारखंड विधानसभा चुनाव में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) प्रमुख रूप में बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को उठा रही है। पूरी बीजेपी टॉप लीडरशिप और विशेष रूप से राज्य में पार्टी के सह प्रभारी और असम सीएम हिमंता बिस्व सरमा लगभग हरदिन आक्रामक बयान दे रहे हैं। वे इस मुद्दे पर लगातार हेमंत सोरेन सरकार को घेरते हैं। हिमंता ने यहां तक कह दिया कि यह चुनाव झारखंड की संस्कृति और अस्मिता को बचाने के लिए है। यानी बीजेपी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को राज्य की संस्कृति और अस्मिता का सवाल बनाने की पूरी कोशिश इस चुनाव में की है।
हिमंता ने संथाल परगना में आदिवासी आबादी को लेकर भी एक स्टेटमेंट दिया, जिस पर खूब चर्चा हो रही है। उन्होंने कहा, "1951 में झारखंड के संथाल परगना में आदिवासियों की आबादी 44 प्रतिशत थी, जो 2011 में घटकर 28 प्रतिशत हो गई। झारखंड में आदिवासियों की जमीन घुसपैठिए लूट रहे हैं और घुसपैठियों को कौन संरक्षण दे रहा है? एक नंबर हेमंत सोरेन और दो नंबर राहुल गांधी।" हिमंता ने एक बयान से सत्ताधारी गठबंधन के दोनों प्रमुख दलों पर निशाना साध दिया है।
पांच प्रमंडल में घुसपैठ की समस्या सबसे ज्यादा कहां?
दरअसल इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी जिस बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है, वह समस्या राज्य में हर जगह नहीं है। झारखंड कुल पांच प्रमंडल में विभाजित है। ये हैं- दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल, उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल, संथाल परगना प्रमंडल, कोल्हान प्रमंडल, पलामू प्रमंडल। इनमें संथाल परगना ऐसा प्रमंडल है, जहां पर बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा सबसे अहम है। दिलचस्प बात यह है कि यही वो इलाका है, जहां से झारखंड मुक्ति मोर्चा के फाउंडर शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ताल्लुक रखते हैं।
प्राथमिकता पर क्यों है ये मुद्दा?
सिर्फ एक प्रमंडल का बड़ा मुद्दा होने के बावजूद, बीजेपी ने घुसपैठ के मुद्दे को पहली प्राथमिकता पर क्यों रखा? इसके पीछे दो-तीन कारण समझ में आते हैं। पहला तो यह कि सोरेन परिवार के प्रभाव वाला इलाका होने के नाते सत्ताधारी पक्ष को घुसपैठ के ज्वलंत मुद्दे पर कायदे से घेरा जा सकेगा। इसका जवाब देना JMM लीडरशिप के लिए भी मुश्किल होगा। दूसरा, राज्य के संथाल परगना प्रमंडल में आदिवासी वोटर समूह सबसे बड़ी ताकत के रूप में मौजूद है। घुसपैठियों का मुद्दा सबसे ज्यादा आदिवासी हितों को प्रभावित कर रहा है। इस वजह से बीजेपी यहां पर घुसपैठ के मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है।
झारखंड चुनाव से आगे की राह
इसके अलावा एक और पक्ष भी समझ में आता है। झारखंड के ठीक बाद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। अगर झारखंड में घुसपैठ के मुद्दे पर जीत हासिल होती है, तो बीजेपी दिल्ली में भी अवैध घुसपैठ को एक मुद्दा बना सकती है। राष्ट्रीय राजधानी में भी म्यांमार से आए रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर राजनीति गर्म होती रही है। वैसे भी दिल्ली में ठीक दो साल पहले रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर बीजेपी और आम आदमी पार्टी आमने-सामने आ चुके हैं। हालांकि, तब आप ने बीजेपी पर यह आरोप लगाए थे कि केंद्रीय सत्ता में मौजूद पार्टी राजधानी में रोहिंग्या शरणार्थियों को वोटबैंक के लिए बसाना चाहती है।
दिल्ली में बीजेपी ने किया था पलटवार
इस पर बीजेपी ने भी AAP पर आरोप लगाए थे। तब बीजेपी के दिल्ली अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने कहा था, "आप सरकार की तरफ से रोहिंग्या मुसलमानों को EWS फ्लैट आवंटित करने के लिए कई खत भेजे गए हैं।" केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी बयान जारी कर कहा था कि रोहिंग्या शरणार्थियों को इस तरह बसाए जाने की कोई योजना नहीं है। खैर, इस बात को भी दो साल बीत चुके हैं, लेकिन दिल्ली में रोहिंग्या समुदाय का मुद्दा अब भी बना हुआ है। इस मुद्दे पर रह-रहकर मीडिया में रिपोर्ट भी जाती रही हैं।
2026 में असम और बंगाल चुनाव
इतना ही नहीं 2026 में असम में भी विधानसभा चुनाव होंगे, जहां पर बांग्लादेशी शरणार्थियों का मुद्दा बेहद अहम है। असम की सीमा बांग्लादेश से लगती है। बाहरी लोगों के आने से असम की संस्कृति पर प्रभाव पड़ने का मुद्दा राज्य में चर्चा में रहा है। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले पर अहम निर्णय सुनाया है। कोर्ट ने 25 मार्च 1971 के बाद बांग्लादेश से असम आए लोगों को नागरिकता नहीं देने का फैसला किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस फैसले की वजह से करीब 19 लाख बांग्लादेशी लोगों की नागरिकता का मामला अधर में लटक गया है। आने वाले समय में यह मुद्दा असम में भी जोर पकड़ सकता है। ऐसे में बीजेपी असम में वहां की संस्कृति और अस्मिता के मुद्दे को उठा सकती है।
इसलिए झारखंड में चल रहे बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे को ट्रायल माना जा सकता है। अभी बीजेपी इस मुद्दे को दूसरे राज्यों में भी जोर-शोर से उठा सकती है। हालांकि, पार्टी का स्टैंड पहले भी इस मुद्दे पर बेहद मुखर रहा है। देखना होगा कि झारखंड चुनाव में इस मुद्दे पर बीजेपी को लोगों का कितना समर्थन मिलता है?