शरद पवार के पॉलिटिकल गेम, 46 में 3 यू-टर्न और एक 'महा-टर्न', बाल ठाकरे को रोकने आए, उद्धव को CM बना दिया

Maharashtra Vidhan Sabha Chunav 2024: इस बीच पवार की पॉलिटिक्स में 360 डिग्री एंगल वाले राजनीतिक कदम भी दिखे। वर्तमान में महाराष्ट्र के विपक्षी गठबंधन यानी महा विकास अघाड़ी के संरक्षक शरद पवार हैं। पवार के साथ शिवसेना का उद्धव गुट और कांग्रेस हैं। विपक्षी गठबंधन के सबसे अनुभवी नेता होने के नाते शरद पवार पर यह जिम्मेदारी है कि वह MVA की जीत सुनिश्चित करें

अपडेटेड Oct 29, 2024 पर 7:53 PM
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शरद पवार के पॉलिटिकल गेम, 46 में 3 यू-टर्न और एक 'महा-टर्न'

शरद पवार 1978 में महज 38 साल की उम्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए थे। उन्हें महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री होने का खिताब हासिल है। यह बात देश में राजनीति के बारे में थोड़ी भी जानकारी रखने वाले हर व्यक्ति को मालूम है, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद पवार के साथ क्या हुआ? दरअसल इसके बाद की कहानी शरद पवार और कांग्रेस के चेक-मेट वाले संबंधों की दिलचस्प कहानी है। कभी कांग्रेस ने शरद पवार को पटखनी दी, तो जब पवार को मौका मिला तो वो भी कांग्रेस को सबक सिखाने से नहीं चूके। इस बीच पवार की पॉलिटिक्स में 360 डिग्री एंगल वाले राजनीतिक कदम भी दिखे। वर्तमान में महाराष्ट्र के विपक्षी गठबंधन यानी महा विकास अघाड़ी के संरक्षक शरद पवार हैं। पवार के साथ शिवसेना का उद्धव गुट और कांग्रेस हैं। विपक्षी गठबंधन के सबसे अनुभवी नेता होने के नाते शरद पवार पर यह जिम्मेदारी है कि वह MVA की जीत सुनिश्चित करें।

खैर, पवार और कांग्रेस के रिश्तों पर आते हैं, जिसमें शिवसेना, बाल ठाकरे और अब उद्धव ठाकरे सब शामिल हैं। दरअसल 1978 में शरद पवार के सीएम बनने की कहानी बहुचर्चित है। यह उनकी जिंदगी का पहला यू-टर्न था। लेकिन इसके बाद हुआ यह कि शरद पवार के सीएम बनने के साथ ही वह कांग्रेस की टॉप लीडरशिप के निशाने पर आ गए थे। 1980 में देश में जब फिर लोकसभा चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं। इसके बाद वही हुआ जिसका अंदेशा था। शरद पवार की सरकार बर्खास्त कर दी गई। पवार तो 1978 में सोशलिस्ट कांग्रेस बनाकर मुख्य कांग्रेस से दूर हो चुके थे। लेकिन 1980 से शुरू हुई एक मजबूत विपक्षी नेता के रूप में उनकी कहानी।

1985 के विधानसभा चुनाव में शरद पवार की अगुवाई वाली सोशलिस्ट कांग्रेस महाराष्ट्र की 288 में से 54 सीटों पर जीती। शरद पवार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए। उस वक्त शरद पवार पीडीएफ गठबंधन का नेतृत्व कर रहे थे, उसमें बीजेपी और जनता पार्टी भी शामिल थी। उस चुनाव के बाद कांग्रेस के शंकरराव चह्वाण राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। पवार विपक्षी नेता थे। लेकिन 1978 में महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा उलटफेर करने के करीब 9 साल बाद पवार ने एक बार फिर पलटी मारी। वो कांग्रेस में वापस लौट गए।


पवार का दूसरा यू-टर्न

यह साल 1987 की बात है और कांग्रेस में घरवापसी करते वक्त शरद पवार ने तर्क दिया कि वह राज्य में कांग्रेस की संस्कृति को बचाए रखने के लिए वापस आए हैं। कारण साफ था। उस वक्त महाराष्ट्र में बाल ठाकरे का प्रभाव बढ़ रहा था। कांग्रेस को भी बाल ठाकरे का प्रभाव रोकने के लिए एक मजबूत मराठा नेता की जरूरत थी और इसके लिए शरद पवार से ज्यादा मुफीद कोई दूसरा इंसान हो नहीं सकता था।

तो पवार को इस बड़े यू टर्न का बड़ा इनाम मिला। वो राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए और शंकर राव चह्वाण को राजीव गांधी कैबिनेट में जगह मिली। शरद पवार वापस आए, तो उन्होंने अपना प्रभाव भी दिखाया। 1990 के विधानसभा चुनाव में राम मंदिर आंदोलन का दौर था और शिवसेना-बीजेपी के गठबंधन ने कांग्रेस को जबरदस्त चुनौती दी। कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से थोड़ी पीछे रह गई। फिर भी निर्दलीय विधायकों की बदौलत शरद पवार एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए।

1991 में पीएम रेस

1991 में राजीव गांधी की मृत्यु के बाद कहते हैं कि शरद पवार ने भी पीएम बनने के लिए खूब जोर लगाया था। महाराष्ट्र जैसे राज्य का मुख्यमंत्री होने के नाते शरद पवार को लगता था कि वह पीएम पद के सबसे मुफीद उम्मीदवार हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पीवी नरसिम्हा राव पीएम बने और शरद पवार को डिफेंस मिनिस्टर बनाया गया। 1993 में बॉम्बे में हुए दंगों के बाद शरद पवार को एक बार फिर महाराष्ट्र मुख्यमंत्री बनाकर भेजा गया, जिससे वह राज्य की जिम्मेदारी संभाल लें। हालांकि, उनके सीएम बनने के कुछ ही दिनों के भीतर देश में अब तक के सबसे भयंकर बम धमाके हुए। धमाकों से पूरी मुंबई हिल गई। 1995 में कांग्रेस महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर हो गई। पहली बार बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार बनी और मुख्यमंत्री बने मनोहर जोशी।

कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव

1997 में शरद पवार ने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें सीताराम केसरी ने हरा दिया। 1998 के लोकसभा चुनाव में शरद पवार की अगुवाई में कांग्रेस ने महाराष्ट्र में जबरदस्त प्रदर्शन किया। कांग्रेस ने 33 सीटें जीतीं तो सहयोगी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया अठावले ने चार सीटें जीतीं। गठबंधन के पास 48 में से 37 सीटें थीं। पवार ने अपनी ताकत फिर दिखा दी थी। उन्हें पार्टी के भीतर अपनी कीमत भी समझ आ रही थी।

शरद पवार का तीसरा यू-टर्न

फिर आया 1999 और शरद पवार ने एक और बड़ा यू-टर्न लिया। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी के विदेशी मूल को लेकर विवाद हुआ। इस विवाद के मुख्य कर्ताधर्ता शरद पवार थे। पवार के साथ पीए संगमा और तारिक अनवर ने भी स्वदेशी मूल के कांग्रेस अध्यक्ष की मांग की। तीनों नेताओं को कांग्रेस से 6 साल के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया और यहां से प्रशस्त हुआ नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का मार्ग।

1999 में महाराष्ट्र में भी विधानसभा चुनाव हुए और इस चुनाव में नई-नवेली एनसीपी ने अपनी ताकत दिखाई और 58 सीटें जीतीं। शिवसेना-बीजेपी को रोकने के वैचारिक बिंदु पर शरद पवार ने एक बार फिर यू-टर्न लिया। पवार ने कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में सरकार बना ली। हालांकि इस बार वो खुद किसी पद पर नहीं बैठे। कांग्रेस नेता विलासराव देशमुख राज्य के मुख्यमंत्री बने और एनसीपी से छगन भुजबल डिप्टी सीएम।

1999 में कांग्रेस के साथ संबंधों को लेकर शरद पवार ने आखिरी बार यू-टर्न लिया था। इसके बाद वो अब तक लगातार कांग्रेस के साथ रहे हैं। बीच में दस साल तक केंद्र की यूपीए एक और दो सरकार में अहम पदों पर रहे। विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस के साथ ही मिलकर चुनाव लड़ते रहे हैं। लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में शरद पवार ने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा यू-टर्न लिया। इसे यू-टर्न भी नहीं 360 डिग्री एंगल पर घूमना भी कह सकते हैं।

2019 का महा-टर्न

केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए शरद पवार ने शिवसेना नेता और बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया। महाराष्ट्र में एक अप्रत्याशित गठबंधन बना जिसका हिस्सा एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना थे। इस गठबंधन को एमवीए कहते हैं जिसके संरक्षक शरद पवार हैं। कहते हैं कि शिवसेना के साथ सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को भी शरद पवार ने ही राजी किया। यह सरकार बनने के बाद महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास में दो बड़ी टूट हुई हैं।

इन दो बड़ी टूट का नतीजा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र में मुख्य रूप से दो बड़े गठबंधन दिख रहे हैं लेकिन कुल 6 बड़ी पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं। पवार विपक्षी गठबंधन के मुख्य रणनीतिकार हैं। उद्धव गुट की तरफ से फिर से उद्धव ठाकरे को सीएम बनाने की मांग जारी है। शरद पवार ने भी सीएम फेस के लिए इशारा कर दिया है और कांग्रेस ने भी। अब चुनाव नतीजों के बाद साफ हो पाएगा कि अगर एमवीए की जीतता है तो शरद पवार का स्टैंड क्या होगा?

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Arun Tiwari

Arun Tiwari

First Published: Oct 29, 2024 7:49 PM

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