इस बार मिजोरम के चुनाव में 36 करोड़ का गैर-कानूनी सामान, कैश वगैरह जब्त किया है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 19 करोड़ रुपये था। राज्य की कुल आबादी 11 लाख है और राज्य में 9 लाख से भी कम वोटर हैं। ऐसे में यह आंकड़ा निश्चित तौर पर चिंता का सबब हो सकता है। हालांकि, आंकड़े को अलग-अलग संदर्भों में देखने पर ही इसकी अहमियत का पता चलता है। अगर संदर्भ नहीं हो, तो आंकड़ों की अहमियत का पता नहीं चलता है। लिहाजा, हम आपको यहां चुनाव के दिलचस्प पैटर्न के बारे में बता रहे हैं।
मिजोरम के चुनाव में सिर्फ 8,000 रुपये कैश जब्त किया गया। इस आंकड़े को नॉर्थईस्ट और चुनाव के संदर्भ में देखना उचित होगा। इस साल के शुरू में नागालैंड, मेघालय और त्रिपुरा में चुनाव हुए हैं और इन राज्यों में जब्त आइटम का मामला इतना नियमित था कि कम मात्रा में जब्त हुए आइटम आदि के बारे में खबर भी नहीं आती थी। बहरहाल, इन तीन राज्यों में जब्त आइटम के मामले में 2018 के मुकाबले 23 गुना बढ़ोतरी देखने को मिली और यह आंकड़ा 169.64 करोड़ रुपये था। लिहाजा, अगर आप 2 गुना बढ़ोतरी की तुलना 23 गुना बढ़ोतरी से करते हैं, तो मिजोरम का ट्रैक रिकॉर्ड काफी बेहतर जान पड़ता है।
हिंसा और हेट स्पीच से तौबा
मिजोरम के चुनाव में भी जमकर आरोप-प्रत्यारोप देखने को मिला, लेकिन यहां हेट स्पीच और हिंसा के लिए बिल्कुल भी गुंजाइश नहीं नजर आई। चुनाव में किसी भी समुदाय, धर्म या शख्स के खिलाफ हिंसा या हेट स्पीच नहीं देखने को मिली। यहां यह भी बताना जरूरी है कि नॉर्थईस्ट के राज्यों त्रिपुरा और मणिपुर में इसी साल हुए चुनाव में राजनीतिक हिंसा देखने को मिली थी, जबकि नागालैंड में चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी हिंसा हुई थी। पूर्वोत्तर के बाकी राज्य इस मामले में मिजोरम से सबक ले सकते हैं। बहरहाल, एक महिला निर्दलीय उम्मीदवार ने एक खास समुदाय के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिया था, लेकिन इस सिलसिले में एफआईआर दर्ज होने के बाद उन्हें माफी मांगनी पड़ी और बाद में मामले को सुलझा लिया गया।
जब 3 दिसंबर को विधानसभा चुनावों के नतीजे आएंगे, तो निश्चित तौर पर मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और यहां तक कि छत्तीसगढ़ के नतीजे चर्चा में रहेंगे, जबकि मिजोरम के चुनाव नतीजों की चर्चा सीमित रहेगी। हालांकि, बाकी भारत मिजोरम से यह सबक जरूर सीख सकता है कि किस तरह से हिंसा और हेट-स्पीच के बिना चुनावों को अंजाम दिया जा सकता है।