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राजस्थान के खंडेला में गजब का मुकाबला, पायलट के वफादार को BJP का टिकट, वसुंधरा का करीबी निर्दलीय लड़ रहा चुनाव

Rajasthan Election 2023: इस विधानसभा क्षेत्र में, तीन मुख्य उम्मीदवारों का बैकग्राउंड बेहद ही दिलचस्प है। कांग्रेस के 2018 के उम्मीदवार सुभाष मील, जो पायलट के वफादार थे, इस बार टिकट नहीं मिलने के बाद बीजेपी के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। निवर्तमान निर्दलीय विधायक महादेव सिंह खंडेला, जो गहलोत के वफादार हैं, कांग्रेस के उम्मीदवार हैं

MoneyControl Newsअपडेटेड Nov 23, 2023 पर 2:39 PM
राजस्थान के खंडेला में गजब का मुकाबला, पायलट के वफादार को BJP का टिकट, वसुंधरा का करीबी निर्दलीय लड़ रहा चुनाव
राजस्थान के खंडेला में गजब का मुकाबला, पायलट के वफादार को BJP का टिकट, वसुंधरा का करीबी निर्दलीय लड़ रहा चुनाव

Rajasthan Election 2023: 2018 में, राजस्थान के सीकर जिले के खंडेला विधानसभा क्षेत्र (Khandela Assembly Seat) में कैंची चुनाव चिन्ह ने हाथ और कमल पर जीत हासिल की। पांच साल बाद खंडेला में यही चुनाव चिन्ह एक बार फिर मैदान में है, फर्क सिर्फ इतना है कि जिस उम्मीदवार को ये चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है, इस बार वो बदल गया है। खंडेला में त्रिकोणीय चुनावी लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी दोनों में चल रही गुटबाजी और पीढ़ीगत लड़ाई का एक सटीक उदाहरण है, जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट जैसे युवा नेताओं और बीजेपी में कई मुख्यमंत्री पद के संभावितों से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

इस विधानसभा क्षेत्र में, तीन मुख्य उम्मीदवारों का बैकग्राउंड बेहद ही दिलचस्प है। कांग्रेस के 2018 के उम्मीदवार सुभाष मील, जो पायलट के वफादार थे, इस बार टिकट नहीं मिलने के बाद बीजेपी के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। निवर्तमान निर्दलीय विधायक महादेव सिंह खंडेला, जो गहलोत के वफादार हैं, कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। जबकि बीजेपी के 2018 के उम्मीदवार बंशीधर बाजिया, राजे समर्थक हैं और पार्टी ने उनका टिकट काट लिया, जिसके बाद वे बतौर निर्दलीय में मैदान में हैं।

पिछली बार पूर्व केंद्रीय मंत्री महादेव सिंह का कैंची चुनाव चिन्ह, इस बार बाजिया को आवंटित किया गया है, जो राजे की पिछली सरकार में राज्य मंत्री थे। 1972 से खंडेला पर बाजिया के पिता गोपाल सिंह, महादेव सिंह या खुद बाजिया का कब्जा रहा है।

पिछले 11 सालों से दो परिवारों का ही बोलबाला

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