राजस्थान विधासभा चुनावों (Rajasthan Assembly Elections) के मतदान की तारीख काफी नजदीक आ गई है। प्रदेश का राजनीतिक पारा चरम पर है। कांग्रेस और भाजपा के बीच इस बार कांटे की लड़ाई दिख रही है। राजस्थान में हर पांच साल पर सरकार बदल जाती है। यह परंपरा पिछले 30 साल से चली आ रही है। इसके हिसाब से राज्य में भाजपा की सरकार बननी चाहिए। लेकिन, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के उत्साह को देख ऐसा लगता नहीं है। अशोक गहलोत भी आत्मविश्वास से भरे नजर आ रहे हैं। वह चौथी बार राज्य का मुख्यमंत्री बन सकते हैं। उन्होंने किसानों, महिलाओं से लेकर आम आदमी तक के लिए कई स्कीमों का ऐलान किया है। उन्हें उम्मीद है कि राज्य के मतदाता उन्हें दोबारा सरकार चलाने का मौका देंगे। सवाल है कि अगर कांग्रेस जीत जाती है तो राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा? कांग्रेस ने अब तक इस बारे में खास तौर पर कुछ नहीं कहा है। लेकिन, गहलोत के पिछले पांच साल के कार्यकाल को गौर से देखने पर कुछ बातें हैरान करती हैं।
पहला, पांच साल में गहलोत और पायलट के रिश्ते बहुत तनावपूर्ण रहे। 2018 में कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में भाजपा सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था। बतौर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पायलट ने कांग्रेस की जीत की जमीन तैयार करने में बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन, मुख्यमंत्री की कुर्सी गहलोत के पास चली गई। पायलट को उपमुख्यमंत्री पद से संतुष्ट होना पड़ा। करियर की शुरुआत में जादूगर रहे गहलोत का जादू चल गया। इससे एक टीस पायलट के मन में रह गई। पायलट के सीने में यह आग अंदर ही अंदर सुलगती रही। इसकी लौ 2020 में देखने को मिली, जब पायलट ने गहलोत के खिलाफ बगावत कर दी।
पायलट ने जब यह बगावत की तब करीब 30 विधायक उनके साथ थे। भाजपा ने मौके का फायदा उठाने की पूरी कोशिश की। लेकिन, समय पर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व खासकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप से मामला संभाल गया। पायलट को समझाने-बुझाने में गांधी परिवार कामयाब रहा। पायलट जयपुर लौट आए। उन्हें कांग्रेस नेतृत्व ने जो वादे किए, उससे वे संतुष्ट हो गए। सचिन ने भले ही बतौर पायलट कभी विमान नहीं उड़ाया होगा। लेकिन, उन्हें पता है कि राजनीति के आकाश में कैसै उड़ान भरनी है। उन्हें नजदीक से जानने वाले एक भाजपा कार्यकर्ता ने कहा कि पायलट जैसा व्यवहारकुशल, धैर्यवान और दूरदृष्टि वाला नेता आज कांग्रेस में दूसरा नजर नहीं आता।
गहलोत ने भाजपा जैसी विपक्षी पार्टी के सामने अंदरुनी कलह के बावजूद जिस तरह से पांच साल तक कई तूफानों का सामना करते हुए अपनी सरकार चलाई, उससे साफ हो गया कि राजस्थान कांग्रेस में उनके कद का दूसरा कोई नेता नहीं है। पिछले साल सितंबर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक के समानांतर अपने समर्थकों की बैठक बुलाकर उन्होंने अपनी ताकत के बारे में कांग्रेस नेतृत्व तक को बता दिया। मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन की सिफारिश के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व ने गहलोत के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई से परहेज किया। कांग्रेस गहलोत के खिलाफ बड़ा कदम उठाने से इसलिए बचती रही क्योंकि भाजपा के हाथ से सत्ता छीनकर जिन कांग्रेस के क्षत्रपों ने पांच साल सरकार सफलतापूर्व चलाई है, उनमें गहलोत शामिल हैं।
दरअसल, 72 साल के गहलोत राजनीति में संभवत: अपनी अंतिम पारी खेल रहे हैं। सक्रियता के लिहाज से संभवत: यह गहलोत के लिए आखिरी विधानसभा चुनाव होगा। 46 साल के पायलट के लिए उसके बाद राजस्थान का पूरा आकाश खुला है। वह राजस्थान में कांग्रेस के दूसरे सबसे बड़े नेता है। खास बात यह है उनकी प्रदेश में बहुत अच्छी स्वीकार्यता है। बड़ी संख्या में कांग्रेस के कार्यकर्ता खासकर युवा उन्हें पसंद करते हैं। वह यूपीए सरकार में केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। उनके दामन पर किसी तरह का दाग नहीं है। इससे कुछ साल बाद राजस्थान की राजनीति में उनका भविष्य बहुत उज्जवल है। वह कई दशकों तक राज्य की राजनीति में सबसे बड़े सितारे की तरह चमक सकते हैं। शायद यही वजह है कि इस बार चुनाव से ठीक पहले गहलोत के खिलाफ उन्होंने अपनी जुबान सील ली है। गहलोत भी इससे खुश हैं।