एक विधायक की चिट्ठी ने राजस्थान कांग्रेस में हलचल मचा दी है। जमवारामगढ़ के विधायक और कांग्रेस के उम्मीदवार गोपाल लाल मीणा ने प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को एक चिट्ठी लिखी है। इसमें उनसे अनुरोध किया गया है कि सचिन पायलट (Sachin Pilot) को मीणा के विधानसभा क्षेत्र में प्रचार करने के लिए भेजा जाए। इसमें कुछ असामान्य नहीं है। लेकिन, ऐसे वक्त जब राज्य में कांग्रेस के प्रचार अभियान का नेतृत्व अशोक गहलोत कर रहे हैं, ऐसी चिट्ठी कुछ सवाल खड़ा करती है। पहला, पार्टी के दूसरे सबसे पावरफुल नेता होने के बावजूद क्या सचिन पायलट कांग्रेस उम्मीदवारों की उम्मीद के मुताबिक रैलियां नहीं कर रहे हैं? दूसरा, गहलोत के ड्राइविंग सीट पर होने के बावजूद उम्मीदवारों को लगता है कि पायलट के उनके निर्वाचन इलाके में प्रचार करने से वोटर्स पर पॉजिटिव असर पड़ सकता है। बतौर मुख्यमंत्री गहलोत के 5 साल के कार्यकाल में सचिन पायलट से उनके रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं। हां, यह कांग्रेस के लिए अच्छा है कि चुनाव से ठीक पहले दोनों के रिश्तों में तल्खी नहीं दिख रही है। दोनों नेताओं के एक-दूसरे को निशाना बनाते नहीं देखा गया है।
कई विधायकों और मंत्रियों से मतदाता नाराज
गहलोत पांच साल के अपने काम के आधार पर वोट मांग रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि जो योजनाएं उन्होंने शुरू की है, उसका मतदाताओं पर अच्छा असर पड़ा है। उन्होंने समाज के करीब हर वर्ग के लिए स्कीम का ऐलान किया है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि मतदाता गहलोत से तो नाराज नहीं हैं। लेकिन, कई कांग्रेसी विधायकों और सरकार के मंत्रियों से मतदाता खुश नहीं हैं। यही वजह है कि गोपाल मीणा अपने निवार्चन क्षेत्र में पायलट को चुनाव प्रचार के लिए बुलाना चाहते हैं। पायलट का राज्य के कई इलाकों और खासकर युवाओं पर काफी असर है। पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत में उनका बड़ा हाथ था।
चुनाव प्रचार में एक मंच पर नहीं दिखे हैं गहलोत-पायलट
कई कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि गहलोत और पायलट को मिलकर रोडशो करने की जरूरत है। इससे उन इलाकों में मतदाताओं पर अच्छा असर पड़ेगा, जहां युवाओं की अच्छी आबादी है। इससे मतदाताओं को यह संदेश देने में भी मदद मिलेगी कि दोनों नेताओं के बीच के मतभेद खत्म हो चुके हैं। वे बता सकते हैं कि अगर कांग्रेस अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहती है तो इस बार पहले जैसी कटुता दोनों नेताओं के बीच नहीं दिखेगी। इसकी जगह वे मिलकर काम करने को तैयार हैं। अब तक दोनों नेता तभी एक साथ देखे गए हैं जब गांधी परिवार का कोई व्यक्ति राज्य में आया है।
कर्नाटक से सबक ले सकते हैं पायलट-गहलोत
राजनीति के जानकारों का कहना है कि कर्नाटक में कांग्रेस के दो सबसे बड़े नेताओं डीके शिवकुमार और सिद्धरमैया का उदाहरण सबके सामने है। दोनों ने मिलकर कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार किया। इससे भाजपा को सत्ता से बाहर करना कांग्रेस के लिए आसान हो गया। हालांकि, कर्नाटक में कांग्रेस विपक्ष में थी, जबकि राजस्थान में कांग्रेस सत्ता में है। ऐसे में कांग्रेस को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है।