Budget 2022 expectations : वर्तमान में रियल एस्टेट मार्केट प्रॉपर्टी खरीदारों के पक्ष में नजर आता है। इसकी वजह कीमतें हैं, जो कई साल से स्थिर बनी हुई हैं और होमलोन की इंटरेस्ट रेट भी दशकों के निचले स्तर पर हैं और हाउसिंग के कई ऑप्शंस उपलब्ध हैं। हालांकि, अगर आगामी आम बजट, 2022 (Union Budget 2022) में टैक्स रियायतें बढ़ाई जाएं तो घरों की डिमांड बढ़ाने में खासी मदद मिल सकती है। बजट से उम्मीदें इस प्रकार हैं...
होम लोन प्रिंसिपल रिपेमेंट के लिए अलग डिडक्शन
Home loan principal repayment : होम लोन प्रिंसिपल रिपेमेंट का इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 80सी के तहत डिडक्शन होता है। होम लोन के अलावा, कई अन्य इनवेस्टमेंट और खर्च का 80सी के तहत डिडक्शन होता है जिसकी अपर लिमिट 1.5 लाख रुपये प्रति वर्ष है। इस लिमिट को लंबे समय से बढ़ाया नहीं गया है और उम्मीद है कि इसमें इस साल बढ़ोतरी की जाएगी। एनारॉक ग्रुप के चेयरमैन अनुज पुरी ने कहा, “पर्सनल टैक्स में राहत का होम बायर्स द्वारा स्वागत किया जाएगा, चाहे यह टैक्स रेट्स में कटौती के द्वारा हो या टैक्स स्लैब्स में समायोजन के रूप में हो। पिछली बार सेक्शन 80सी (1.5 लाख रुपये प्रति वर्ष) की डिडक्शन लिमिट में बढ़ोतरी 2014 में की गई थी और अब बढ़ोतरी जरूरी हो गई है।”
कई अन्य की राय है कि होम लोन प्रिंसिपल रिपेमेंट में डिडक्शन के लिए एक अलग सेक्शन पेश किया जाना चाहिए। स्क्वायर यार्ड्स की कोफाउंडर और सीओओ कनिका गुप्ता शोरी कहती हैं, “सरकार को होम लोन के प्रिंसिपल पेमेंट पर 80सी के तहत 1.50 लाख रुपये के एक अलग डिडक्शन को अनुमति देनी चाहिए।” सेक्शन 80सी के तहत पीएफ, पीपीएफ और लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसीज सहित कई इनवेस्टमेंट/ खर्च आ जाते हैं, जिससे मिडिल क्लास टैक्सपेयर्स के पास एक प्रॉपर्टी में वास्तविक निवेश पर डिडक्शन हासिल करने की गुंजाइश ही नहीं बचती है।
होम लोन इंटरेस्ट पर डिडक्शन बढ़े
होम लोन पर मौजूदा इंटरेस्ट रेट्स सालाना 7 फीसदी से कम हैं, लेकिन अगर कोई 30 लाख से ज्यादा का लोन ले रहा है तो वह शुरुआती वर्षों में किए गए पूरे ब्याज के भुगतान पर डिडक्शन क्लेम नहीं कर सकता है। इसकी वजह यह है कि एक्ट के सेक्शन 24 (बी) के तहत इंटरेस्ट रेट डिडक्शन के लिए सालाना 2 लाख रुपये की सीमा लागू है। पुरी ने कहा, “हाउसिंग लोन के इंटरेस्ट रेट्स पर 2 लाख रुपये की टैक्स रिबेट को बढ़ाकर कम से कम 5 लाख रुपये किए जाने की जरूरत है, जिससे हाउसिंग विशेषकर अफोर्डेबल से मिड सेगमेंट कैटेगरी में अच्छी मांग पैदा होगी।”
अफोर्डेबल हाउसिंग की परिभाषा फिर से तय हो
अफोर्डेबल हाउसिंग को बढ़ावा देने और टैक्सपेयर्स को अतिरिक्त बेनिफिट्स देने के क्रम में, सरकार ने सेक्शन 80ईई और 80ईईए के तहत होम लोन इंटरेस्ट पर अतिरिक्त डिडक्शन की पेशकश की थी। हालांकि, अधिकतम कीमत, लोन अमाउंट और साइज जैसे मानदंडों के चलते कई अतिरिक्त डिडक्शंस का लाभ उठाने में सक्षम नहीं रहे।
पुरी ने कहा, “आवासन और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय के मुताबिक, अफोर्डेबल हाउसिंग का वर्णन प्रॉपर्टी साइज, प्राइस और खरीदार की आय के आधार पर किया गया है। उदाहरण के लिए, नॉन मेट्रो शहरों और कस्बों में 90 वर्ग मीटर तक, बड़े शहरों में 60 मीटर तक कारपेट एरिया वाला और दोनों में 45 लाख रुपये तक का वाला मकान या फ्लैट अफोर्डेबल हाउसिंग में आता है। दूसरी तरफ, सेंट्रल बैंक की परिभाषा बैंक द्वारा मकान बनाने या अपार्टमेंट खरीदने के लिए दिए गए लोन पर आधारित है। सबसे ज्यादा अहम बात यह है कि सरकार को सिटी-वाइज अफोर्डेपबल हाउसिंग बजट के भीतर घरों के मूल्य पर फिर से गंभीरता से विचार करना चाहिए।” पुरी कहते हैं, यूनिट के साइज के आधार पर परिभाषा ही है, लेकिन कीमत (45 लाख रुपये तक) निश्चित रूप से ज्यादातर शहरों के लिए व्यवहारिक नहीं है। मुंबई जैसे शहर के लिए 45 लाख रुपये का बजट खासा कम है, इसलिए इस लिमिट को बढ़ाकर 60-65 लाख किया जाना चाहिए। प्राइस रिवीजन से ज्यादा मकान अफोर्डेबल प्राइस टैग के दायरे में आ जाएंगे और इस प्रकार ज्यादा खरीदार आईटीसी के बिना 1 फीसदी की जीएसटी दर, सरकारी सब्सिडीज और होम लोन के इंटरेस्ट रिपेमेंट पर कुल 3.5 लाख रुपये का टैक्स डिडक्शन जैसे कई बेनिफिट लेने में सक्षम हो जाएंगे। पुरी ने कहा कि इससे ज्यादा खरीदार घर खरीदने के लिए आकर्षित होंगे।