Budget 2022: कोविड-19 सपोर्ट वापस लेने से भारत को क्यों नहीं होगी मुश्किल
इकोनॉमिस्ट बताते हैं कि भले ही भारत ने कई पैकेज का ऐलान किया, लेकिन उनका फिस्कल असर सीमित रहा। इसलिए, जब दुनिया फिस्कल सपोर्ट वापस ले रही है तो भारत इस मसले पर ज्यादा चिंतित नहीं है क्योंकि उसके पास रोलबैक के लिए कुछ खास नहीं है
कोविड महामारी से जुड़े राहत पैकेज वापस लेने को लेकर पूरी दुनिया में चिंता की स्थिति है
Budget 2022: कोविड-19 महामारी इतिहास का असाधारण दौर रहा। जहां इकोनॉमिक एक्टिविटी सुस्त पड़ गईं, वहीं दुनिया भर में फिस्कल और मॉनिटरी पॉलिसी के जरिए ग्रोथ/ आजीविका को बचाने की कोशिश हुईं और संभावित आर्थिक तबाही के असर को कम किया गया। विकसित बाजारों की सरकारें तेजी से सपोर्ट के लिए आगे आईं, तो भारत ने राहत पैकेज पेश करने के लिए कुछ महीनों का इंतजार किया।
इकोनॉमिस्ट बताते हैं कि भले ही भारत ने कई पैकेज का ऐलान किया, लेकिन उनका फिस्कल असर सीमित रहा। इसलिए, जब दुनिया फिस्कल सपोर्ट वापस ले रही है तो भारत इस मसले पर ज्यादा चिंतित नहीं है क्योंकि उसके पास रोलबैक के लिए कुछ खास नहीं है। इसके बजाय भारत, इसे स्ट्रक्चरल रिफॉर्म के अच्छे अवसर के रूप में इस्तेमाल किया है, जिसका देश को आने वाले वर्षों में फायदा मिल सकता है।
आत्मनिर्भर भारत के तहत घोषित कुछ प्रमुख राहत पैकेज इस प्रकार हैं-
इमरजेंसी क्रेडिट गारंटी स्कीम का बजट 3 लाख करोड़ रुपये था, लेकिन इससे सरकारी खजाने पर बोझ नहीं पड़ा। इसकी फिस्कल देनदारी सिर्फ तभी बढ़ेगी, जब बेनिफिशियरी या एमएसएमई पैसा लौटाने में नाकाम रहेंगे। दूसरा 1 लाख करोड़ रुपये का एग्रीकल्चर इंफ्रा फंड था, जहां बेनिफिशियरीज कम लागत पर मीडियम से लॉन्ग टर्म लोन ले सकते थे। इसका भी सरकार पर कोई बोझ नहीं पड़ा। तीसरा डिस्कॉम्स में 900 अरब डॉलर की लिक्विडिटी दी गई है। इसे डिस्कॉम्स की आय के एवजह में मार्केट से जुटाया गया और इसके लिए राज्य द्वारा गारंटी ली गई थी।
स्पष्ट है कि इन सभी घोषणाओं का तुलनात्म रूप से कम फिस्कल बोझ पड़ा, जो जीडीपी का 1.7 फीसदी या 3.4 लाख करोड़ रुपये था।
क्या यह सरकार के व्यय में नजर आता है
जब सरकार ने कोविड से पहले वित्त वर्ष 21 का बजट बनाया, तो कुल बजट व्यय 30.4 लाख करोड़ रुपये था। लेकिन वास्तव में वित्त वर्ष 21 में 34.5 लाख करोड़ रुपये का व्यय हुआ। वित्त वर्ष 22 में बजट का आंकड़ा 34.8 लाख करोड़ रुपये था। इस साल 2 लाख करोड़ रुपये की कोविड राहत दी गईं, लेकिन भारत सरकार के अन्य खर्चों को सीमित करने से यह “सीमाओं” के भीतर रहने का अनुमान है। इसलिए, सरकार के अपने व्यय अनुमानों हासिल करने की अच्छी उम्मीदें हैं। वित्त वर्ष 22 में अप्रैल-अक्टूबर में सरतकार ने अपने बजट पूंजी व्यय का 46 फीसदी और बजट राजस्व व्यय का 54 फीसदी इस्तेमाल कर लिया।
रेवेन्यू का ब्रेकडाउन
आवश्यक सेक्टर्स तक इकोनॉमिक एक्टिविटी सीमित होने से, वित्त वर्ष 21 में रेवेन्यू (विशेषकर करों) पर महामारी का असर काफी ज्यादा था।
वित्त वर्ष 21 में नेट रेवेन्यू घटकर 6.4 लाख करोड़ रुपये या बजट की तुलना में 30 फीसदी कम रह गया।
हालांकि, वित्त वर्ष 22 की शुरुआत अच्छी रही और अप्रैल-अक्टूबर के बीच 13.6 लाख करोड़ रुपये का टैक्स कलेक्शन हुआ, जो जाहिर तौर पर वित्त वर्ष की समान अवधि के 8.8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा था। वहीं यह 10 लाख करोड़ रुपये के प्री कोविड एवरेज से भी ज्यादा था।
इस रन रेट से सरकार को वित्त वर्ष 22 में टैक्स 22.1 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान से ज्यादा होने का अनुमान है।
आगे क्या?
यह एक दिलचस्प सवाल है। आगे टिकाऊ डेट मैनेजमेंट पर जोर रहेगा। भले ही फिस्कल दबाव कम होगा, लेकिन दुनिया भर में मॉनिटरी पॉलिसी अलग-अलग देखने को मिल सकती है। उदाहरण के लिए, भारत लंबे समय के लिए लचीला रुख अपना सकता है और उसका जोर लिक्विडिटी सरप्लस की स्थिति पर हो सकता है।
फिस्कल पॉलिसी फरवरी, 2022 में तैयार होगी और इसमें गरीबों को सपोर्ट की संभावनाएं ज्यादा हैं। इकोनॉमी के संभावित आउटपुट और उसके वास्तविक आउटपुट के बीच अंतर कम होना शुरू हो जाएगा, जिसके रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी। भारत ने प्रोडक्शन लिंग्ड इंसेंटिव स्कीम (पीएलआईएस), एक्सपोर्ट प्रमोशन, मेक इन इंडिया इनीशिएटिव और मैन्युफैक्चरिंग टैक्स हॉलिडेस जैसी कई स्ट्रक्चरल रिफॉर्म किए हैं।