बजट 2023: सरकार कैपिटल गेंस टैक्स (Capital Gains Tax) के नियमों को बदलने के बारे में सोच रही है। इसका ऐलान 1 फरवरी को पेश होने वाले बजट (Union Budget 2023) में हो सकता है। फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) 1 फरवरी, 2023 को यूनियन बजट लोकसभा (Loksabha) में पेश करेंगी। यह उनका पांचवां बजट होगा। अभी अलग-अलग एसेट्स के लिए कैपिटल गेंस टैक्स के नियम अलग-अलग हैं। होल्डिंग पीरियड अलग-अलग है। साथ ही कैपिटल गेंस टैक्स के रेट में भी असमानता है। लंबे समय से कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों में समानता लाने की मांग हो रही है। फाइनेंस मिनिस्ट्री को इस बार भी बजट पूर्व चर्चा में कई सेक्टर के प्रतिनिधियों ने कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों में बदलाव करने की गुजारिश की है।
अभी इक्विटी, डेट, रियल एस्टेट जैसे एसेट्स क्लास के लिए कैपिटल गेंस के नियम अलग-अलग हैं। कैपिटल गेंस टैक्स में होल्डिंग पीरियड सबसे अहम होता है। होल्डिंग पीरियड का मतलब यह है कि किसी एसेट को आप कितने समय तक अपने पास रखने के बाद बेचते हैं। शेयरों और इक्विटी म्यूचुअल फंड की यूनिट्स को अगर आप एक साल तक रखने के बाद बेचते हैं तो उसे होने वाले मुनाफे को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस माना जाता है। इस मुनाफे पर आपको 10 फीसदी के रेट से लॉन्ग टर्म कैपिटस गेंस टैक्स चुकाना होता है। हालांकि, किसी एक फाइनेंशियल ईयर में शेयर या इक्विटी म्यूचुअल फंड से 1,00,000 रुपये से ज्यादा के कैपिटल गेंस पर ही आपको टैक्स देना होता है। अगर आप किसी कंपनी के शेयर या म्यूचुअल फंड की यूनिट्स को एक साल से पहले बेच देते हैं तो उस पर हुए मुनाफे पर आपको शार्ट टर्म कैपिटल गेंस चुकाना होगा। इसका रेट 15 फीसदी है।
डेट आधारित म्यू्चुअल फंडों के लिए कैपिटल गेंस टैक्स के नियम अलग हैं। अगर आप डेट म्यूचुअल फंड की यूनिट्स को तीन साल रखने के बाद बेचते हैं तो उस पर हुए मुनाफे को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस माना जाता है। इसी तरह अगर आप अचल संपत्ति (जमीन, मकान) को दो साल के बाद बेचते हैं तो उस पर हुए मुनाफे को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस माना जाता है। इस पर 20 फीसदी के रेट से टैक्स लगता है। अचल संपत्ति को अगर आप दो साल से पहले बेच देते हैं तो उस पर हुए मुनाफे को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस माना जाता है। इस पर टैक्स आपके इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से लगता है।
नियमों को एक समान बनाना क्यों जरूरी है?
लंबे समय से शेयर, डेट और प्रॉपर्टी से होने वाले कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों में इस असमानता को दूर करने की मांग हो रही है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अलग-अलग एसेट्स के लिए नियम अलग-अलग होने से इनवेस्टर्स के बीच भ्रम की स्थिति होती है। इससे टैक्स कंप्लायंस में भी दिक्कत आती है। अगर सरकार नियमों में इस असमानता को दूर करती है तो इससे इनवेस्टमेंट को बढ़ावा मिलेगा।