Budget 2023: अगले 25 साल के भारत की बुनियाद तैयार करेगा यह यूनियन बजट
Union Budget 2022: आबादी के इस बड़े हिस्से को नौकरी देना बड़ी चुनौती रही है। आने वाले सालों में नौकरियों के लिए AI, Cloud और Cyber बड़े स्रोत होंगे। इसका फायदा उठाने के लिए नई स्किल जरूरी होगी। क्या देश के युवाओं के पास इकोनॉमी को आगे बढ़ाने के लिए ये स्किल होंगे? यह एक सही सवाल है, जिसका जवाब इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार और कंपनियां आगे क्या करने जा रही हैं
बजट 2023 की नजरें अगले 25 साल के भारत पर हैं। ऐसा देश जो लगातार बढ़ रहा है, टेक्नोलॉजी के लेवल पर इनोवेशंस इसके लिए रास्ते बना रहे हैं।
Budget 2023 : फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने कुछ हफ्ते पहले कहा था कि यूनियन बजट 2023 अगले 25 साल की ग्रोथ के लिए बुनियाद तैयार करेगा। यह केंद्र की मोदी 2.0 सरकार का आखिरी पूर्ण बजट होगा। ऐतिहासिक विश्लेषण के लिहाज से 25 साल का पीरियड छोटा हो सकता है। लेकिन, कुछ पीरियड ऐसे होते हैं जिनका असर लंबे समय तक बना रहता है। शायद 2023-2047 का पीरियड ऐसा ही होगा। 2022 अमृतकाल (Amritkaal) का पहला साल था। 25 साल का अमृतकाल 15 अगस्त, 1947 तक चलेगा। इस काल के खत्म होने पर इंडिया एक समृद्ध, विकसित समाज और सबको ले कर चलने वाला देश होगा, जिसके केंद्र में मानव कल्याण सबसे ऊपर होगा। बजट 2023 की नजरें अगले 25 साल के भारत पर हैं। ऐसा देश जो लगातार बढ़ रहा है, टेक्नोलॉजी के लेवल पर इनोवेशंस इसके लिए रास्ते बना रहे हैं। उपभोक्ताओं के सशक्त बनने के साथ ही कई स्तर पर प्रोडक्शन का प्रोसेस मजबूत हो रहा है।
यह कंपनियों को नई टेक्नोलॉजी अपनाने के लिए प्रेरित करेगा, जिससे रेवेन्यू और ग्रोथ के मामले में बदलाव दिखेंगे। ऐसे में मौजूदा ढांचा ध्वस्त होंगे, जिनकी जगह नए मॉडल्स लेंगे। इन सब का व्यापक असर आर्थिक स्तर पर पड़ेगा। इंडिया के लिहाज से एक बड़ा सवाल यह है कि देशी और विदेशी निवेशकों के लिए इंडिया को सबसे पसंदीदा देश बनाने के लिए पॉलिसी के स्तर पर क्या किया जा सकता है?
इस रिपोर्ट में इस सवाल का गहराई में जवाब तलाशने की कोशिश की गई है।
मनीकंट्रोल नेटवर्क 18 ग्रुप का हिस्सा है। यह इंफॉर्मेशन, इनसाइट्स, फाइनेंस से जुड़े डेटा, मार्केट, इकोनॉमी और इससे संबंधित क्षेत्रों के न्यूज के लिए सबसे बड़ा डिजिटल सोर्स है। न्यूज, इफॉर्मेशन और डेटा के हर महीने 65 करोड़ से ज्यादा पेज के जरिए यह अमृतकाल के मकसद को हासिल करने में हाथ बंटा रहा है। मनीकंट्रोल का अमृतकाल मेनिफेस्टो यूनियन बजट से पहले इंडिया में पब्लिक पॉलिसी बनाने में योगदान की कोशिश है। इसमें फिस्कल, पब्लिक फाइनेंस और पॉलिसी के स्तर पर होने वाले उपाय सहित कई तरह के विषय शामिल हैं, जिनके बारे में हमारे एडिटर्स और एक्सपर्ट्स का मानना है कि इंडिया को इनपर फोकस करने की जरूरत है।
कैपिटल गेंस टैक्स पर रहेगी नजर
जैसी की उम्मीद की जा सकती है, इंडिविजुअल इनकम टैक्स के मोर्चे और कैपिटल गेंस टैक्स रीजीम में होने वाले बदलावों पर सबसे ज्यादा निगाहें रहेंगी।
किसी प्रॉपर्टी (चल और अचल) की बिक्री से होने वाले मुनाफे पर जो टैक्स लगता है, उसे कैपिटल गेंस टैक्स कहा जाता है। कई एसेट या प्रॉपर्टी ओनर के पास कितने समय तक रहती है, इसके आधार पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स या शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स लगाया जाता है।
रियल एस्टेट, इक्विटी इनवेस्टमेंट्स, डेट इंस्ट्रूमेंट्स और म्यूचुअल फंड्स सहित अलग-अलग तरह के एसेट्स पर कैपिचल गेंस टैक्स के अलग-अलग रेट लागू होते हैं। एक ही एसेट क्लास में भी कैपिटल गेंस टैक्स में अंतर हो सकता है। इसकी वजह एसेट के होल्डिंग पीरियड और मैच्योरिटी में अंतर है।
लिस्टेड सिक्योरिटीज और इक्विटी-ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड्स के लिए लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस (LTCG) टैक्स 10 फीसदी है। अनलिस्टेड सिक्योरिटीज सहित दूसरे सभी एसेट्स के लिए यह 20 फीसदी है।
दूसरी तरफ, लिस्टेड सिक्योरिटीज पर शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेंस (STCG) टैक्स 15 फीसदी है और अनिलिस्टेड सिक्योरिटीज सहित बाकी सभी एसेट्स के लिए इसका निर्धारण टैक्सपेयर्स के इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से होता है।
लिस्टेड शेयरों और इक्विटी-ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड्स के लिए एलटीसीजी के वास्ते होल्डिंग पीरियड 12 महीने हैं। अनलिस्टेड सिक्योरिटीज और अचल प्रॉपर्टी के लिए यह 24 महीने है। डेट सिक्योरिटीज, डेट ओरिएंटेड म्यूचुअल फंडस और गोल्ड, REIT/InvITs के लिए यह 36 महीने है।
Budget 2023 कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों का आसान बनाने के लिए एक बहुत बड़ा मौका है।
शुरुआत में, सरकार को सभी तरह के फाइनेंशियल एसेट्स के लिए लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस (LTCG) के वास्ते 12 महीने का होल्डिंग पीरियड तय करना चाहिए। अचल संपत्ति के लिए इसे बढ़ाकर 36 महीने किया जा सकता है। इंडियन सिक्योरिटी में इनवेस्टमेंट को अट्रैक्टिव बनाने की भी जरूरत है। इस मकसद के लिए सभी फाइनेंशियल सिक्योरिटी के लिए एलटीसीज का 10 फीसदी एक समान टैक्स और एसटीसीजी के लिए 15 फीसदी का एकसमान टैक्स लगाया जा सकता है।
इसी तरह, ऐसे एसेट के लिए पर्चेज कॉस्ट के इंडेक्सेशन का बेनेफिट जरूरी नहीं रह गया है, जिसमें एलटीसीजी टैक्स 10 फीसदी है।
इंडिविजुअल इनकम टैक्स
यूनियन बजट 20220-21 में सरकार ने इनकम टैक्स की नई और आसान रीजीम की शुरुआत की थी। इसमें ऐसे टेक्सपेयर्स के लिए टैक्स का रेट बहुत कम होता है, जो सेक्शन 80सी और स्टैंडर्ड डिडक्शंस जैसी छूट और रियायतों का फायदा नहीं लेते हैं। लेकिन, इस नई रीजीम में टैक्सपेयर्स ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई है। अब भी ज्यादातर टैक्सपेयर्स इनकम टैक्स की पुरानी व्यवस्था का इस्तेमाल करते हैं।
नई टैक्स रीजीम में 5 लाख रुपये से 7.5 लाख रुपये की सालाना इनकम वाले टैक्सपेयर को 10 फीसदी टैक्स चुकाना पड़ता है। लेकिन, पुरानी व्यवस्था में सेक्शन 87ए के तहत मिलने वाले रिबेट से सालाना 5 लाख रपये तक इनकम वाले व्यक्ति को किसी तरह का इनकम टैक्स नहीं चुकाना पड़ता है।
सालाना 8-8.5 लाख रुपये इनकम वाला कोई व्यक्ति अगर सेक्शन 80सी, स्टैंडर्ड डिडक्शन और कुछ दूसरे रिबेट का पूरा लाभ उठाता है तो उसका टैक्स घटकर जीरो हो जाता है।
ओल्ड टैक्स रीजीम में टैक्सपेयर को कई तरह के डिडक्शन क्लेम करने और अपनी टैक्स लायबिलिटी घटाने की सुविधा मिलती है। नई टैक्स रीजीम में टैक्स कम है लेकिन करीब 70 डिडक्शंस और एग्जेम्प्शंस वापस ले लिए गए हैं। इनमें एलटीसी, एचआरए, स्टैंडर्ड डडिक्शन, चैप्टर VI A के तहत डिडक्शंस आदि शामिल हैं।
नई रीजीम में लोगों (टैक्सपेयर्स) की दिलचस्पी तब तक नहीं बढ़ेगी, जब तक पुरानी रीजीम के तहत मिलने वाले डिडक्शंस और एग्जेम्प्शंस घटा नहीं दिए जाते। टैक्स रीजीम ऐसी होनी चाहिए, जिसमें कई तरह के टैक्स स्लैब हों, टैक्स के रेट्स कम हों और बहुत कम एग्जेम्पशंस हों।
यह बजट एक आसान इंडिविजुअल टैक्स स्लैब पेश कर सकता है। साथ ही टू सिस्टम स्ट्रक्चर को खत्म करने का ऐलान किया जा सकता है, जो 2020 से वजूद में हैं।
एजुकेशन
आर्थिक समानता और क्वालिटी एजुकेशन तक पहुंच इंडिया के लिए बड़ी चुनौती रही है। यूनियन बजट 2023 में इस पर फोकस करने की जरूरत है। एजुकेशन तक पहुंच के साथ इसकी शुरुआत की जा सकती है। इंडिया की आबादी में युवाओं की संख्या काफी ज्यादा है। एक अनुमान के मुताबिक, 2030 तक दुनिया में इंडिया में ऐसा देश होगा, जिसकी आबादी में युवाओं की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा होगी।
आबादी के इस बड़े हिस्से के लिए रोजगार के पर्याप्त मौके उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती रही है। आने वाले सालों में नौकरियों के लिए AI, Cloud और Cyber बड़े स्रोत होंगे। इसका फायदा उठाने के लिए नई स्किल जरूरी होगी। क्या देश के युवाओं के पास इकोनॉमी को आगे बढ़ाने के लिए ये स्किल होंगे? यह एक सही सवाल है, जिसका जवाब इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार और कंपनियां आगे क्या करने जा रही हैं।
आगे का रास्ता साफ है। अगर इंडिया इसके लिए उपाय नहीं करता है तो 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर के टारगेट को हासिल करना मुश्किल होगा। इंडिया की नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) एक सशक्त शुरुआत है। यह कंपनियों के लिए भी इसमें हिस्सा लेने का बड़ा मौका है।
लेबर फोर्स में अनुमानित वृद्धि 2021 के 48 करोड़ से 2020 में 56.1 करोड़ रही है। इसके 40 फीसदी हिस्से को एग्रीकल्चर में, 29 फीसदी को इंडस्ट्री में और 31 फीसदी को सर्विसेज सेक्टर में रोजगार मिलने का अनुमान है।
इकोनॉमी की 8-9 फीसदी ग्रोथ के लिए मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज सेक्टर की ग्रोथ 10-11 फीसदी रहनी जरूरी है। यहां एग्रीकल्चर सेक्टर की ग्रोथ 4 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। ऐसे परिदृश्य में यह तय है कि वर्कफोर्स के एक बड़ा हिस्सा एग्रीकल्चर से फैक्ट्रीज और सर्विस सेक्टर की तरफ जाएगा।
हालांकि, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज सेक्टर में जिस तरह की स्किल की जरूरत है वह एग्रीकल्चर सेक्टर के स्किल से पूरी तरह से अलग है। इसका मतलब है कि गांव से शहर जाने वाले लोगों के मामले में स्किल गैप बहुत ज्यादा होगा। एग्रीकल्चर सेक्टर में रोजगार के घटते मौकों से इसके संकेत मिलने लगे हैं। इससे हमें वर्कफोर्स के स्किल डेपलपमेंट पर फोकस करना जरूरी हो जाता है।
सरकारी संगठनों, ट्रेनिंग प्रोवाइडर्स और कंपनियों को लोगों की स्किल बढ़ाने पर फोकस करना होगा। इसका फायदा यह होगा कि जब व्यक्ति रोजगार के लिए शहर जाएगा तो उसे फिर से ट्रेनिंग में इनवेस्ट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। साथ ही उसे अच्छी सैलरी मिलेगी। कंपनियों को भी ऐसे एंप्लॉयीज मिलेंगे जो पहले से काम करने के लिहाज से पूरी तरह से तैयार होंगे। इससे रिसोर्सेज पर खर्च होने वाले समय और पैसे की बचत होगी।
आंत्रप्रेन्योरशिप को बढ़ावा
इंडिया की जीडीपी में सूक्ष्म, छोटे एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) की हिस्सेदारी करीब 8 फीसदी है। मैन्युफैक्चरिंग में एमएसएमई की हिस्सेदारी 45 फीसदी और निर्यात में 40 फीसदी है। एग्रीकल्चर के बाद यह रोजगार देने वाला सबसे बड़ा सेक्टर है। आंत्रप्रेन्योरशिप और इनोवेशन के लिए एमएसएमई नर्सरी का काम करते हैं। एमएसएमई पूरे देश में फैले हुए हैं। ये कई तरह के प्रोडक्ट्स बनाते हैं और लोकल मार्केट्स की जरूरतें पूरी करते हैं। ये ग्लोबल मार्केट और नेशनल एवं इंटरनेशनल वैल्यू चेन का अहम हिस्सा हैं।
स्टार्टअप्स आम तौर पर ऐसे स्थानों पर जगह तलाशतें हैं जहां उनकी फैमिली और मार्केट्स होते हैं। केंद्र सरकार के मंत्रालयों को ऐसी जगहों को विकसित करने पर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देने की जरूरत है।
डिस्ट्रिक्ट्स इंडस्ट्रीज सेंटर्स (DICs) के एंप्लॉयीच को ट्रेनिंग देकर आंत्रप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट, मेन्टॉरिंग और स्टार्ट्अप एमएसएमई की मदद के लिए तैयार करने की जरूरत है। प्रोफेशनल संगठनों के साथ पार्टनरशिप के जरिए भी उन्हें इस काम के लिए योग्य बनाया जा सकता है।
देश के ज्यादातर जिलों में DICs मौजूद हैं। ये काफी उपेक्षित हैं। इनकी हालत जर्जर हो चुकी है। केंद्र सरकार इन्हें पुनिर्जीवित करने की कोशिश कर सकती है। इन्हें फिर से इस्तेमाल के लायक बनाने के लिए फंड की व्यवस्था की जा सकती है। राज्य सरकारें भी इसमें योगदान कर सकती हैं।
स्टार्टअप्स की मदद के लिए सरकारी प्रोग्राम को ज्यादा फंड उपलब्ध कराए जा सकते हैं। आंत्रप्रेन्योरशिप एजुकेशन पर फोकस किया जा सकता है। इससे ऐसे ग्रेजुएट्स तैयार करने में मदद मिलेगी, जो अपने ऑर्गेनाइजेशन की सफलता में ज्यादा योगदान दे सकेंगे।
स्टार्टअप्स
इस फेस्टिव सीजन में मॉल या पड़ोस के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में जाने पर लोगों का उत्साह दिखता है। करोना की महामारी की वजह से करीब ढ़ाई-तीन साल बाद लोगों ने जरूरी और गैर-जरूरी खर्च करने शुरू किए हैं। ऐसी इकोनॉमी जो ग्लोबल ग्रोथ का इंजन बन सकती है, यह उत्साह अच्छा संकेत देता है। हम जानते हैं कि इंडिया की ग्रोथ स्टोरी में कंजम्प्शन स्पेंडिंग का योगदान लगातार मजबूत बना हुआ है।
हालांकि, शहरों में मॉल और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में दिख रहा यह उत्साह देश के दूसरे हिस्सों में भी नहीं दिख रहा। स्टार्टअप एक ऐसा एरिया है, जिस पर ठंड का असर कुछ ज्यादा ही दिख रहा है। साल 2022 की तीसरी तिमा्ही में इंडिया में स्टार्टअप को फंडिंग घटकर 2.7 अरब डॉलर के दो साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। इस दौरान फंडिंग की सिर्फ 205 डील हुई है। यह जानकारी ऑडिट फर्म PwC की रिपोर्ट पर आधारित है।
फंडिंग में यह कमी ऐसे वक्त देखने को मिली है, जब दुनिया का स्टार्टअप कैपटल बनने के लिए इंडिया की दावेदारी लगातार बढ़ रही है। दुनियाभर के इनवेस्टर्स ऐसे देश में निवेश करने के लिए तैयार हैं, जो जल्द दुनिया में आबादी के मामले में नंबर वन बन जाएगा।
यह पॉलिसी पर भी सवाल खड़े करता है। क्या इंडिया ऐसी पॉलिसी बना सकता है जो स्टार्टअप्स को तब पर्याप्त फंड मुहैया में मदद कर सके, जब फंडिंग को लेकर हालात अनिश्चित नजर आ रहे हैं।
दो साल पहले सरकार ने प्रेस नोट 3 पेश किया था। इसका मकसद विदेशी कंपनियों की तरफ से जबरिया अधिग्रहण की कोशिशों पर लगाम लगाना था। मौजूदा आर्थिक माहौल में इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।
2020 में जारी प्रेस नोट में कहा गया था कि ऐसे देश में जिसकी सीमा इंडिया के साथ लगती है, उस देश में स्थित किसी कंपनी की तरफ से दिए गए FDI के प्रस्ताव को गवर्नमेंट के एप्रूवल रूट से जाना होगा। अगर FDI का बेनेफिशियल ओनर ऐसे देश में स्थित है तो भी FDI के प्रस्ताव के लिए सरकारी एप्रूवल रूट की जरूरत होगी।
अगले यूनियन बजट में ऐसे मसलों पर सरकार स्थिति स्पष्ट कर सकती है। ऐसे कुछ नियमों को आसान बनाने का भी ऐलान किया जा सकता है। इससे स्टार्टअप्स को फंड की उपलब्धता बढ़ेगी। स्टार्टअप्स न सिर्फ इनोवेशन को बढ़ावा देते हैं बल्कि ये बड़ी संख्या में नौकरियों के मौके भी पैदा कर सकते हैं।
राज्यों की मदद और पूंजीगत खर्च में वृद्धि
अगर लोन एसेट क्रिएशन के लिए लिया जाए तो इसमें खराबी नहीं है। RBI की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्यों का जीडीपी और कर्ज का अनुपात 2021 के अंत में 31 फीसदी था। मार्च 2022 में भी इसके इसी लेवल पर रहने का अनुमान है। यह FRBM Review Committee की तरफ से तय 20 फीसदी टारगेट के मुकाबले बहुत ज्यादा है।
CAG की रिपोर्ट के मुताबिक, सब्सिडी पर राज्य सरकारों का खर्च 2019-20 में घटने के बाद 2020-21 में 12.9 फीसदी और 2021-22 में 11.2 फीसदी बढ़ा है। इससे राज्यों के कुल रेवेन्यू एक्सपेंडिचर में सब्सिडी की हिस्सेदारी 2019-20 में 7.8 फीसदी से बढ़कर 2021-22 में 8.2 फीसदी हो गई है।
क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बैलेंसशीट से बाहर राज्यों की तरफ से लिया जाने वाला कर्ज 2021-22 में बढ़कर GSDP के 4.5 फीसदी यानी 7.9 लाख करोड़ पर पहुंच जाने का अनुमान है। यह 2019-20 के मुकाबले 100 बेसिस प्वॉइंट्स ज्यादा है।
कुछ राज्यों ने ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) फिर से शुरू करने का ऐलान किया है। साथ ही नॉन-मेरिट फ्रीबीज पर खर्च बढ़ा है। उधर, पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों का बकाया भी काफी बढ़ गया है। इसके लिए जल्द कदम उठाने की जरूरत है। आउटस्टैंडिंग स्टेट गारंटीज में पावरप डस्ट्रिब्यूशन कंपनियों की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है। ऐसा पावर जेनरेशन कंपनियों के बकाया भुगतान के लिए किया गया था, क्योंकि डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों को भारी लॉस हो रहा था।
ओपीएस मुख्य रूप से बगैर फंडिंग वाला Pay-as-you-go सिस्टम है। देश के 10 सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले राज्यों के कुल रेवेन्यू एक्सपेंडिचर में पेंशन एक्सपेंडिचर की हिस्सेदारी 12.4 फीसदी है। RBI के अनुमान के मुताबिक, इन राज्यों का 2030 तक पेंशन पर होने वाला खर्च GSDP के 0.7-3 फीसदी के दायरे में बना रहेगा।
सरकार को ग्रोथ जारी रखने के लिए राज्यों को कैपिटल एक्सपेंडिचर के तहत आवंटन जारी रखना चाहिए। यह मेरिट आधारित या प्रोजेक्ट आधारित फंडिंग को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार का अच्छा तरीका हो सकता है। इससे राज्यों को बेवजह मार्केट से उधार लेने से भी रोका जा सकता है।
बजट 2023 में कैपिटल एक्सपेंडिचर प्रोग्राम में मदद के लिए राज्यों को लंबी अवधि के लोन को जारी रखा जाना चाहिए। इससे राज्यों के पास केंद्र सरकार के कैपिटल एक्सपेंडिचर प्लान में मदद करने के लिए ज्यादा गुंजाइश होगी। आम तौर पर ऐसे प्रोग्राम का मकसद रोजगार के मौके पैदा करना और लोगों की इनकम बढ़ाना होता है।
केंद्र के 2022-23 के बटज में पूंजीगत खर्च के लिए 7.5 लाख करोड़ रुपये का टारगेट तय किया गया था। इसमें एक लाख रुपेय राज्यों को दिया जाने वाला इंटरेस्ट-फ्री लोन शामिल है। इसकी मैच्योरिटी 50 साल है। राज्यों ने इस लोन का स्वागत किया था।
सरकार की वित्तीय स्थिति
अगर अगले बजट में इकोनॉमिक ग्रोथ के लिए पब्लिक इनवेस्टमेंट को जारी रखना है तो इसे फिस्कल कंसॉलिडेशन के उपायों के साथ ही करना होगा। कोरोना की वजह से पिछले दो सालों में सरकार का बजट डेफिसिट बहुत बढ़ा है। करोना की महामारी शुरू होने से पहले फिस्कल कंसॉलिडेशन के रोडमैप के लिए मध्यम अवधि में 2025-26 तक फिस्कल डेफिसिट को जीडीपी के 4.5 फीसदी पर लाने का टारगेट तय किया गया था।
इंटनरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) ने कहा है कि इंडिया को अपने फिस्कल कंसॉलिडेशन प्लान के बारे में स्पष्ट रूप से बताना चाहिए।
अब जब कोरोना का असर खत्म हो रहा है और टैक्स कलेक्शंस अनुमान से ज्यादा है तो अगले यूनियन बजट में सरकार को अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत करने पर फोकस करना चाहिए। मीडियम टर्म में फिसिक्ल डेफिसिट के 4.5 फीसदी का टारगेट हासिल करने के लिए यूनियन बजट में फिसक्ल डेफिसिट के लिए 5.8 से 6 फीसदी का टारगेट तय किया जा सकता है।