Budget 2023: टैक्सेशन और इनवेस्टमेंट के लिहाज से यूनियन बजट 2023 (Union Budget 2023) मिलाजुला है। सबसे ज्यादा टैक्स ब्रैकेट के लिए सरचार्ज घटने और स्लैब लिमिट बढ़ने से खर्च और निवेश करने वाली आय बढ़ेगी। वित्तमंत्री ने टैक्सपेयर्स के लिए ये ऐलान इसलिए किए हैं ताकि वे टैक्स की नई रिजीम में दिलचस्पी दिखाएं। फाइनेंशियल ईयर 2021 में लॉन्च होने के बाद से इसमें टैक्सपेयर्स ने दिलचस्पी नहीं दिखाई है। वित्त मंत्री ने कहा है कि नई टैक्स रिजीम डिफॉल्ट ऑप्शन होगा। लेकिन, ओल्ड रिजीम अब भी टैक्सपेयर्स की पहली पसंद है। 7 लाख रुपये (पहले 5 लाख रुपये) तक की इनकम वाले टैक्सपेयर्स को कोई टैक्स नहीं चुकाना पड़ेगा। यह टैक्स के निचले स्लैब में आने वाले टैक्सपेयर्स के लिए बड़ी राहत है।
न्यू टैक्स रिजीम ऐसे टैक्सपेयर्स के लिए फायदेमंद है, जो इनवेस्ट करने और डिडक्शंस क्लेम करने की स्थिति में नहीं हैं। हर टैक्सपेयर्स को अपनी स्थितियों को ध्यान में रख यह फैसला लेना होगा कि टैक्स की कौन सी रिजीम उसके लिए फायदेमंद है। हालांकि, भले ही सेक्शन 80सी के तहत एग्जेम्प्शन उपलब्ध नहीं होगा, लेकिन म्यूचुअल फंड्स की स्कीम, शेयर या इंश्योरेंस कवर में निवेश करना फायदेमंद होगा।
ऐसे टैक्सपेयर्स जिन पर सरचार्ज लागू होता है, उनके लिए भी ओल्ड रिजीम फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि एग्जेम्प्शंस की वजह से उनकी टैक्सेबेल इनकम घट जाएगी। इससे उन पर सरचार्ज का कम रेट लागू होगा।
टैक्सपेयर्स के लिहाज से बचाए गए पैसे का अगर निवेश किया जाता है तो कुछ सालों में वह बढ़ जाता है और फिर उससे कई जरूरतें और लक्ष्य पूरे किए जा सकते हैं। फाइनेंस मिनिस्टर के कैलकुलेशंस के मुताबिक, टैक्सपेयर्स की कुल सेविंग्स 35,000 करोड़ रुपये होगी। यह पैसा सेविंग्स और इनवेस्टमेंट के रूप में फाइनेंशियल सिस्टम में आएगा। इससे गु्ड्स और सर्विसेज की मांग भी कुछ हद तक बढ़ेगी।
सीनियर सिटीजंस को सीनियर सेविंग्स बॉन्ड की लिमिट 15 लाख से बढ़कर 30 लाख रुपये हो जाने से फायदा होगा। इसका इंटरेस्ट रेट 8 फीसदी है। अल्ट्रा हाई नेट वर्थ इंडीविजुअल्स को टैक्स रेट में कमी से फायदा मिलेगा। सबसे ज्यादा ब्रैकेट में आने वाले इंडिविजुअल्स को 42.7 फीसदी की जगह 39 फीसदी टैक्स देना होगा। ऐसे इनवेस्टमेंट प्रोडक्ट्स जिसमें मार्जिनल रेट लागू होते हैं, उनमें निवेश करना ज्यादा फायदेमंद होगा।
मार्केट लिंक्ड डिबेंचर्स (MLDs) जैसे इनवेस्टमेंट के माध्यम जो पिछले कुछ सालों में बहुत लोकप्रिय हो गए हैं, उनके दिन अब लद सकते हैं। इसकी वजह यह है कि टैक्स के रूप में मिलने वाले फायदे अब बंद हो जाएंगे। एमएलडी का संबंध अंडरलाइंग सिक्योरिटीज की कीमतों में उतार-चढ़ाव से था। लेकिन व्यावहारिक रूप से ऐसी स्थितियां बनने की उम्मीद बहुत कम है। इसलिए एमएलडी जहां तक रिस्क की बात है तो नॉन-कनवर्टिबल डिबेंचर की तरह थे।
हालांकि, एमएलडी पर 10 फीसदी कैपिटल गेंस टैक्स लागू था। लिस्टेड एमएलडी को 12 महीने से अधिक रखने पर यह टैक्स लगता था। अनलिस्टेड एमएलडी के लिए यह 36 महीना था। अब सभी ऐसे एमएलडी जो 1 अप्रैल, 2024 के बाद मैच्योर हो रहे हैं, उन्हें फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह माना जाएगा। इस तरह उन पर टैक्स टैक्सपेयर्स के मार्जिनल रेट के हिसाब से लगेगा। हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स इस बात से राहत महसूस कर सकते हैं कि कैपिटल गेंस के नियमों में बदलाव नहीं किया गया है।