Budget 2024-25 : आप जिस तरह परिवार का महीने का बजट बनाते हैं, सरकार उसी तरह हर साल अपना बजट (Union Budget) बनाती है। इसमें सरकार अपनी इनकम का अंदाजा लगाती है। फिर, उस पैसे को कहां और कितना खर्च करना है, यह तय करती है। आम तौर पर सरकार का खर्च ज्यादा और इनकम (रेवेन्यू) कम होती है। इस अंतर को पूरा करने के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ता है। इनकम और खर्च का अनुमान तय हो जाने पर सरकार के लिए यह अंदाजा लगाना आसान हो जाता है कि उसे कुल कितना कर्ज लेना पड़ेगा। हर यूनियन बजट में वित्तमंत्री (Nirmala Sitharaman) की तरफ से गवर्नमेंट बॉरोइंग के बारे में बताया जाता है। सरकार बॉन्ड्स सहित दूसरे इंस्ट्रूमेंट्स के जरिए मार्केट से कर्ज जुटाती है। सरकार के कर्ज जुटाने का काम RBI करता है।
सरकार को हर साल काफी ज्यादा कर्ज लेना पड़ता है
सरकार के पास कई स्रोतों से पैसा आता है। इसमें टैक्स सबसे अहम है। सरकार अपने खर्च का 17 फीसदी हिस्सा जीएसटी से हासिल करती है। डायरेक्ट टैक्स से उसे करीब 15 फीसदी हिस्सा हासिल होता है। एक्साइज ड्यूटी से उसे 7 फीसदी पैसा मिलता है। नॉन-टैक्स रेवेन्यू से करीब 6 फीसदी पैसा आता है। करीब 34 फीसदी पैसा कर्ज और ऐसे दूसरे स्रोतों से आता है। सरकार की कोशिश टैक्स से सबसे ज्यादा पैसा जुटाने की होती है। टैक्स कलेक्शन अच्छा रहने पर कर्ज पर सरकार की निर्भरता कम हो जाती है।
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इंटरेस्ट पेमेंट पर सरकार का सबसे ज्यादा खर्च
सरकार कम से कम कर्ज लेना चाहती है। लेकिन, सरकार को आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार बढ़ाने, सामाजिक योजनाओं पर खर्च करने और इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए काफी खर्च करना पड़ता है। इसलिए वह हर साल बाजार से कर्ज लेती है। सरकार का काफी पैसा कर्ज का इंटरेस्ट चुकाने पर खर्च हो जाता है। एक अनुमान के मुताबिक, सरकार करीब 20 फीसदी पैसा कर्ज चुकाने पर खर्च करती है। केंद्र को टैक्स के जरिए हासिल पैसे का करीब 18 फीसदी राज्यों को देना पड़ता है। 17 फीसदी पैसा उसे राज्यों को उन स्कीमों के लिए देना पड़ता है, जिसे केंद्र और राज्य दोनों मिलकर चलाते हैं। अपनी स्कीमों पर केंद्र सरकार करीब 9 फीसदी पैसा खर्च होता है।
कम कर्ज लेने पर सरकार का फोकस
सरकार के लिए अपनी इनकम और खर्च के बीच तालमेल बैठाना जरूरी है। सरकार की कोशिश इनकम और खर्च के अंतर को कम करना होता है। यह अंतर जितना कम होगा, सरकार को उतना ही कम पैसा बाजार से उधार लेना पड़ेगा। कम उधार लेने के मतलब है कि इंटरेस्ट पर सरकार को ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा। इससे उसके हाथ में स्कीम, इंफ्रास्ट्रक्टर और पूंजीगत खर्च के लिए ज्यादा पैसे बचेंगे।