Union Budget 2024 : केंद्रीय बजट पेश होने में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। वित्तमंत्री Nirmala Sitharaman 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश करेंगी। उन्होंने 7 दिसंबर को कहा था कि अंतरिम बजट होने के चलते इसमें बड़े ऐलान नहीं होंगे। लेकिन, एक्सपर्ट्स का कहना है कि चुनावी साल को देखते हुए सरकार हर वर्ग को थोड़ी राहत देने की कोशिश कर सकती है। इसके अलावा सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों के लिए आवंटन भी इस बजट में शामिल होंगे। वित्तमंत्री इकोनॉमी की सेहत बताने के लिए अहम आंकड़े पेश करेंगी। इसलिए बजट पेश होने से पहले आपके लिए कुछ ऐसे शब्दों का मतलब जान लेना जरूरी है, जिनका इस्तेमाल अक्सर इकोनॉमी, बिजनेस, टैक्स, उद्योग आदि में होता है। इससे जब आप 1 जनवरी को दिन में 11 बजे वित्तमंत्री का बजट भाषण सुनेंगे तो आपको उनकी बातें आसानी से समझ में आएंगी।
अंतरिम बजट 2024 को समझने में मददगार होंगे इन पांच शब्दों के मतलब
राजकोषीय घाटा के अंग्रेजी में फिस्कल डेफिसिट कहते हैं। सरकार का खर्च उसकी आमदनी से ज्यादा रहने पर उसे कर्ज लेना पड़ता है। वह कितना कर्ज लेगी यह राजकोषीय घाटे से तय होता है। हर साल सरकार बजट में अगले वित्त वर्ष के लिए राजोकोषीय घाटे का अपना अनुमान पेश करती है। इस वित्त वर्ष के लिए सरकार ने राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.9 फीसदी रहने का अनुमान जताया था।
डिसइनवेस्टमेंट को हिन्दी में विनिवेश कहा जाता है। इसका मतलब सरकार के अपनी संपत्तियों को बेचने से है। आम तौर पर सरकार सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचती है। कई बार वह पूरी कंपनी को निजी हाथों में बेच देती है। इस प्रक्रिया को डिसइनवेस्टमेंट कहते हैं। सरकार हर साल यूनियन बजट में डिसइनवेस्टमें का टारगेट तय करती है।
पूंजीगत खर्च को अंग्रेजी में कैपिटल एक्सपेंडिचर कहा जाता है। सरकार फिजिकल एसेट्स तैयार करने पर जो खर्च करती है, उसे पूंजीगत खर्च कहते हैं। इसके तहत इंफ्रास्ट्रक्चर-जैसे सड़क, एयरपोर्ट, स्कूल आदि पर होने वाला खर्च आता है। सरकार के पूंजीगत खर्च बढ़ाने से रोजगार को मौके बढ़ते हैं। आर्थिक गतिविधियां बढ़ती हैं। इससे इकोनॉमी की ग्रोथ को सपोर्ट मिलता है।
इसे अग्रेजी में रेवेन्यू डेफिसिट कहते हैं। जब सरकार की इनकम अनुमान के मुकाबले कम रहती है तो उसे रेवेन्यू डेफिसिट कहते हैं। रेवेन्यू डेफिसिट की स्थिति में सरकार के पास पैसे की किल्लत हो जाती है। इसलिए उसे कर्ज लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। सरकार वैसे तो हर साल कुछ कर्ज लेती है। लेकिन रेवेन्यू डेफिसिट की स्थिति में उसे ज्यादा कर्ज लेना पड़ता है।