Budget 2024 : GST की व्यवस्था 1 जुलाई, 2027 को लागू हुई थी। कई उतार-चढ़ाव के बाद इसने अपनी जड़ मजबूत कर ली है। ई-इनवायसिंग की शुरुआत, ई-वे बिल्स और कंप्लायंस के लिए टैक्स स्क्रूटनी इस सफर के बड़े पड़ाव रहे। अब जीएसटी की व्यवस्था अगले चरण के सफर पर निकलने के लिए तैयार है। इसमें कुछ टैक्स स्लैब के विलय के साथ पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने का चैलेंज है। इलेक्ट्रिसिटी को भी इस टैक्स-सिस्टम के तहत लाया जाना है। शुरुआत में जीएसटी में रजिस्टर्ड टैक्सपेयर्स की संख्या 65 लाख थी। आज यह 1.4 करोड़ पहुंच गई है। जुलाई 2017 में जीएसटी कलेक्शन 0.9 लाख करोड़ रुपये था। नवंबर 2023 तक हर महीने का एवरेज कलेक्शन 1.66 लाख करोड़ है।
बढ़ते कंप्लायंस की वजह से ई-वे बिल की संख्या में उछाल आया है। एक महीने में यह 10 करोड़ के पार निकल गया है। गुड्स के एक राज्य से दूसरे राज्य जाने के लिए ई-बिल जरूरी होता है। इसकी शुरुआत 1 अप्रैल, 2018 को हुई थी। 50,000 रुपये से ज्यादा मूल्य के गुड्स के एंटर-स्टेट मूवमेंट के लिए ई-बिल जरूरी है।
जीएसटी पोर्टल की टैक्स-फाइलिंग कैपेसिटी अब दोगुनी हो गई है। अब एक घंट में तीन लाख रिटर्न फाइल किए जा सकते हैं। इससे ट्रेडर्स को रिटर्न फाइलिंग में सुविधा हुई है।
3. हर महीने एक लाख करोड़ से ज्यादा कलेक्शन
जुलाई 2017 में जीएसटी कलेक्शन 92,283 करोड़ रुपये था। इस साल नवंबर तक हर महीने का औसत जीएसटी कलेक्शन 1.66 लाख करोड़ रुपये रहा है।
4. रजिस्टर्ड टैक्सपेयर्स का बढ़ता आधार
पिछले सालों में जीएसटी के रजिस्टर्ड टैक्सपेयर्स की संख्या बढ़ी है। इकोनॉमी का ज्यादा हिस्सा अब जीएसटी फ्रेमवर्क के तहत आ गया है। जुलाई 2017 में कुल रजिस्टर्ड 68 लाख टैक्सपेयर्स में से सिर्फ 38 लाख ने तय तारीख तक GSTRB 3B रिटर्न फाइल किए थे। जुलाई 2023 में 80 फीसदी टैक्सपेयर्स ने तय तारीख तक जीएसटीआर 3 भी फाइल की हैं।
5. फर्जी इनवायसिंग पर कार्रवाई
जीएसटी डिपार्टमेंट ने 2023 में फर्जी इनवायसिंग के खिलाफ दो महीने का अभियान चलाया। इस दौरान करीब 24,000 फर्जी एनिटिटीज के कुल 63,000 फर्जी इनवायसिंग का पता चला।
AMRG & Associates के सीनियर पार्टनर रजत मोहन ने कहा कि जीएसटी ने बड़ा बदलाव लाया है। देशभर में प्रोसिजर्स, रूल्स, फॉर्म्स और लॉ केसेज के मामले एक तरह की व्यवस्था शुरू हुई है। इससे न सिर्फ टैक्स कंप्लायंस बढ़ा है बल्कि टैक्सेशन प्रोसेस में पारदर्शिता और जिम्मेदारी का भाव भी बढ़ा है।
टैक्स स्लैब को व्यावहारिक बनाने की कोशिशें जारी हैं। जीएसटी की शुरुआत में 200 से ज्यादा गुड्स 28 फीसदी टैक्स स्लैब में आते थे। अब यह संख्या घटकर सिर्फ 8 रह गई है। कई सेवाओं और चीजों पर टैक्स रेट में कमी आई है। उदाहरण के लिए रेस्टॉरेंट सर्विसेज पर जीएसटी 18 फीसदी से घटकर 5 फीसदी पर आ गया है।