वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को बजट पेश करेंगी। यह केंद्र की नई एनडीए सरकार का पहला बजट होगा। मिडिल क्लास टैक्सपेयर्स को टैक्स में राहत मिलने की उम्मीद है। सीनियर सिटीजंस को भी इस बजट से कई उम्मीदें हैं। इसलिए निर्मला सीतारमण के बजट पर निगाहें लगीं हैं। वह पिछले यूनियन बजटों में वह कविता और मशहूर लेखकों के कोट्स का जिक्र करती रही हैं। आइए जानते हैं उन वित्तमंत्रियों के बारे में जिनके बजट भाषण की चर्चा आज भी होती है।
पूर्व प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने 1991 के बजट भाषण में प्रसिद्ध फ्रेंच लेखक विक्टर ह्यूगो के कोट्स का इस्तेमाल किया था। उन्होंने इंडियन इकोनॉमी की संभावनाओं के बारे में बताने के लिए ऐसा किया था। ह्यूगो ने कहा था, "धरती की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ चुका है।" इसका उल्लेख करते हुए सिंह ने कहा था कि इंडिया की बढ़ती ताकत ऐसा ही एक विचार है। उन्होंने कहा था कि पूरी दुनिया को जान लेना चाहिए कि इंडिया अब जग चुका है। हम जीतेंगे। हम मुश्किलों से निजात पाएंगे। 1991 के बजट को इसलिए बहुत याद किया जाता है, क्योंकि इसमें इकोनॉमी को जंजीरों से बाहर निकालने की कोशिश की गई थी।
पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम के 2007 के बजट को हमेशा याद किया जाता है। उन्होंने अपने बजट भाषण में तमिल कवि और दार्शनिक तिरुवलुवर की पंक्तियों का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था, "ज्यादा अनुदान, संवेदना, सही शासन और कमजोर वर्ग के लोगों को राहत ही अच्छी सरकार की पहचान हैं।"
पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद देश की खराब वित्तीय स्थिति के लिए यूपीए सरकार को जिम्मेदार बताया था। उन्होंने कहा था कि यूपीए सरकार अपने पीछे जो समस्याएं छोड़ कर गई है, उसका समाधान मोदी सरकार करेगी। उन्होंने कहा था, "कश्ती चलाने वालों ने जब हारकर दी पतवार हमें, लहर- लहर तूफान मिले और मौज-मौज मझदार मुझे।"
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वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कोरोना की महामारी के बीच साल 2021 में बजट पेश किया था। वह बहुत मुश्किल वक्त था। लॉकडाउन की काफी मार इकोनॉमी पर पड़ी थी। तब उम्मीद जगाने वाली रवींद्र नाथ टैगोर की कविता की कुछ पंक्तियों का जिक्र उन्होंने किया था। उन्होंने कहा था, "विश्वास वह चिड़िया है जो तब रोशनी का अहसास करती है और गीत गुनगुनाती है जब सुबह से पहले रात का अंधेरा छट रहा होता है। "