Budget 2024: सरकार ने नॉन-रेसिडेंट इंडियंस (NRI) पर टैक्स का बोझ घटाने के लिए कई उपाय किए हैं। एनआरआई के सामने अलग तरह की स्थितियां होती हैं। सरकार ने कई सेंट्रलाइज्ड प्रोसेसिंग सेंटर्स (CPC) शुरू किए हैं। इससे टैक्स रिटर्न की जल्द प्रोसेसिंग हो रही है। प्री-फिल्ड रिटर्न की शुरुआत की गई है। सिंगल इंफॉर्मेटिव टैक्स स्टेटमेंट से भी काफी आसानी हुई है। इससे NRI को टैक्स से जुड़ी जिम्मेदारियों को पूरी करने में ज्यादा समय नहीं लगाना पड़ता है। सरकार ने कई देशों के साथ Double Taxation Avoidance Agreements किए हैं। इसका मकसद व्यक्ति को दोहरे टैक्स के बोझ से बचाना है। अब भी कई प्रोसेस को डिजिटल बनाने की जरूरत है। इनमें रेजिडेंसी स्टेटस में बदलाव, एसेसमेंट और एनआरआई से जुड़ा अल्टरनेट टैक्स रिटर्न वेरिफिकेशन सिस्टम शामिल हैं।
सरकार के निम्नलिखित कदमों का काफी फायदा हुआ है :
NRI की एक बड़ी चिंता दोहरे टैक्स को लेकर रही है। इसका मतलब है कि इंडिया के साथ ही उस देश में टैक्स चुकाना जहां के वे रेजिडेंट हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार ने कई देशों के साथ Double taxation Avoidance Agreement (DTAA) किए हैं। इससे एनआरआई पर दोहरे टैक्स के मामले घटे हैं। टैक्सबड़ी डॉट कॉम के फाउंडर सुजीत बांगर ने कहा, "DTAA के प्रावधानों का दायरा बढ़ा है और उनमें क्लेरियटी आई है।" NRI अब इंडिया में किए गए इनवेस्टमेंट पर टैक्स डिडक्शन के लिए एलिजिबल हैं। लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी और प्रोविडेंट में निवेश इसके उदाहरण हैं। बांगर ने कहा, "विदेश में हुई कमाई पर एनआरआई को इंडिया में टैक्स नहीं देना पड़ता है। इससे एनआरआई को उस इनकम पर टैक्स नहीं चुकाना पड़ता है, जिस पर पहले ही टैक्स लग चुका है।"
विदेश में समय बिताने की शर्तों में रियायत
किसी व्यक्ति का NRI का दर्जा तभी बरकरार रहता है जब वह विदेश में 182 दिन (6 महीना) से ज्यादा नहीं रहता है। लेकिन, कोविड की महामारी के दौरान फ्लाइट कैंसिलेशन जैसी वजहों के चलते उन NRI को नियमों में रियायत दी गई है, जो अपने देश नहीं लौट सके।
अब भी कुछ चीजें हैं जिनमें सुधार लाने की जरूरत है। इससे NRI को फायदा होगा। ये निम्नलिखित हैं :
ITR एकनॉलेजमेंट को सब्मिट करने में रियायत
रिटर्न फाइल करने के बाद फिजिकल इनकम टैक्स एकनॉलेजमेंट सब्मिट करने की समयसीमा 120 दिन से घटाकर 30 दिन कर दी गई है। इसमें रियायत देने की जरूरत है। बतरा ने कहा, "हालांकि, ऑनलाइन आधार आधारित ई-वेरिफिकेशन से रिटर्न को तुरंत वेरिफाय करना मुमकिन हुआ है, लेकिन एनआआई इस सुविधा का इस्तेमाल नहीं कर पाते, क्योंकि कई NRI के पास आधार नहीं है। वे ओटीपी जेनरेट नहीं कर सकते, क्योंकि उनके पास इंडियन फोन नंबर नहीं है। बैंक अकाउंट के इस्तेमाल के जरिए ई-वरिफाय करने के लिए भी बैंक अकाउंट वैलिडेशन जरूर है। यह हर साल करना पड़ता है।"
मैनुअल से डिजिटल करने की जरूरत
अभी पैन के स्टेटस को रेजिडेंट से NRI करने का प्रोसेस मैनुअल है। आपको इसके लिए फिजिकल अप्लिकेशन देना पड़ता है। इस बदलाव के लिए किसी तरह की टाइमलाइन भी तय नहीं की गई है। बत्रा ने कहा, "होना यह चाहिए कि व्यक्ति के बतौर एनआरआई रिटर्न फाइल करने या लगातार दो से तीन साल तक ऐसा करने पर स्टेट्स खुद बदलकर एनआरआई का हो जाना चाहिए।" इसके अलावा अभी एनआरआई को फेसलेस एसेसमेंट की सुविधा नहीं है। उनका मामला चार्टर्ड अकाउंटेंट को पेश करना पड़ता है।
गलत नोटिस जारी होने पर रोक के लिए एनआरआई डेटाबेस जरूरी
डिजिटाइजेशन और डेटा मैपिंग की वजह से कई एनआरआई को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की तरफ से बेवजह नोटिस मिल रहे हैं। सावला ने कहा, "पैन को अलग तरह से टैग नहीं किया गया है जिसमें यह पता चल सके कि यह एनआरआई का टैक्स रिटर्न है। इस वजह से कई एनआरआई जिन्होंने इंडिया में प्रॉपर्टी खरीदी है या शेयरों में निवेश किया है, उन्हें रिएसेसमेंट के नोटिस मिलते हैं। प्रॉपर्टी खरीदने का मतलब इंडिया में टैक्सेबल इनकम होना नहीं है।"