निवेशकों ने 2023 में अपनी मुठ्ठी कस ली है और उन स्टार्टअप्स में चेरी पिकिंग (खराब को छांट कर अच्छे अपने पास रखना) शुरू कर दी जिनमें उन्होंने फंडिंग की थी। नतीजा यह हुआ कि हज़ारों कंपनियों को जो अपने अस्तित्व के लिए पूरी तरह से वेंचर पूंजी पर निर्भर थीं अपनी दुकानें बंद करनी पड़ीं हैं। अन्य को वित्तीय गड़बड़ी या नए नियमों के कारण कामकाज बंद करना पड़ा।
एक प्राइवेट मार्केट डेटा प्रोवाइडर ट्रैक्सन के मुताबिक डेडपूल स्टार्टअप्स, या बंद होने वाली या बंद होने के कगार पर पहुंच गई कंपनियों की संख्या 2023 में 34,848 थी। जबकि 2022 में इस कटेगरी में 18,049 स्टार्टअप थे। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक देश में 1,00,000 से ज्यादा स्टार्टअप हैं। ट्रैक्सन के आंकड़ों इन्ही स्टार्टअप्स से संबंधित हैं।
खतरे में पड़े इन स्टार्टअप्स की सूचि में कई गैर-वित्त पोषित स्टार्टअप शामिल हैं। कई दूसरी कंपनियां जिन्होंने बड़े निवेशकों से लाखों रुपए जुटाए हैं वे भी इस सूचि में हैं। उन्होंने अपना कामकाज बंद करने का फैसला लिया है। कुछ नए युग की कंपनियों को नए रेग्यूलेटरी कानूनों की मार पड़ी है। जबकि की प्रतिकूल मैक्रोइकोनॉमिक स्थितियों/सही प्रोडक्ट मार्कटे में फिट (पीएमएफ) हो पाने में विफलता, वित्तीय गड़बड़ी और दूसरे कारणों के चलते कामकाम बंद करना पड़ा है।
ज़ेस्टमनी (ZestMoney),जिसका वैल्यूएशन सितंबर 2021 में 45 करोड़ डॉलर था, 2023 में सबसे बड़े शटडाउन मामलों में से एक था। अभी 'बॉय नाउ पो लेटर'(बीएनपीएल) इंडस्ट्री के पोस्टर चाइल्ड ज़ेस्टमनी ने 2015 और जुलाई 2023 के बीच तमाम निवेशकों से 13 करोड़ डॉलर से ज्यादा जुटाए थे, लेकिन एक के बाद स्थितियां खराब होती गईं। PhonePe के साथ इसका अधिग्रहण सौदा भी विफल हो गया। कंपनी जल्द ही ड्राइंग बोर्ड पर वापस आ गई, लेकिन उसकी टर्नअराउंड योजना, जिसे जेस्टमनी 2.0 या ज़ेमो 2.0 कहा गया, भी परवान नहीं चढ़ सकी।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से 'बॉय नाउ पो लेटर'(बीएनपीएल) कारोबार पर नजरें कड़ी करने के कारण ज़ेस्टमनी को कारोबार समेटना पड़ा। लेकिन गेमिंग स्टार्टअप को एक अलग तरह की रेग्यूलेटरी चुनौती का सामना करना पड़ा। सितंबर में, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने कहा कि ऑनलाइन रियल मनी गेमिंग पर 1 अक्टूबर से 28 फीसदी जीएसटी लगेगा। इस फैसले से कई कंपनियां हैरान रह गई और उन्हें बंद भी करना पड़ा।
क्विज़ी और एमपीएल-सपोर्टेड स्ट्राइकर कुछ ऐसी कंपनियां थीं जो बंद हो गईं, जबकि फैंटॉक जैसी दूसरी कंपनियों ने अपनी कामकाज रोक दिया। कंपनियों पर 28 प्रतिशत जीएसटी लगाने के कदम के कारण भी छंटनी का सिलसिला भी शुरू हो गया।
इसी तरह एक क्रिप्टो इन्वेस्टमेंट प्लेटफार्म पिलो को भी कड़े रेग्यूलेटरी कानूनों के चलते बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा। इसने निवेशकों से 2.10 करोड़ डॉलर जुटाए भी थे।
कुछ ऐसे मामले भी जहां कोविड महामारी के दौरान ब्याज दरों में गिरावट के कारण सस्ते पैसे की उपलब्धता के चलते कुछ स्टार्टअप्स का पतन हो गया। गोमैकेनिक इसका एक बड़ा उदाहरण है। कारों की मरम्मत करने एंसिलरी उपकरण बेचने वाली गोमैकेनिक ने पीक एक्सवी पार्टनर्स (पूर्व में सिकोइया कैपिटल इंडिया), टाइगर ग्लोबल, चिराटे वेंचर्स और कई दूसरे निवेशकों से 5 करोड़ डॉलर से ज्यादा जुटाए थे। कंपनी ने अपने रेवेन्यू को बढ़ा-चढ़ाकर बताया और धन का दुरुपयोग किया। जिसके चलते अंत में कंपनी को बंद करना पड़ा। गोमैकेनिक मामले के चलते निवेशक चौकन्ने हो गई और ज्यादा कड़ाई के साथ ड्यूडिलीजेंस करने लगे ताकि ऐसी समस्याओं से बचा जा सके।
निवेशकों का कहना कि 2024 में भी स्टार्टअप्स की संख्या में गिरावट जारी रहेगी। इसके कारण अलग-अलग होंगे। लेकिन उनका ये भी कहना कि चूंकि पूंजी तक पहुंच कठिन हो गई है, इसलिए आगे आकार लेने वाली कंपनियों की गुणवत्ता बेहतर होगी।
गौरतलब है कि भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा इकोसिस्टम है। नए जमाने की कंपनियों ने मिलकर 2023 में 8 बिलियन डॉलर से ज्यादा और 2015 के बाद से 140 अरब डॉलर से ज्यादा पूंजी जुटाई है जो देश में स्टार्टअप्स की क्षमता को स्पष्ट करता है।