यस बैंक (Yes Bank) देश का माना-जाना प्राइवेट बैंक था लेकिन मार्केट में इसकी स्थिति डांवाडोल हुई है। शेयरों की भाषा में बात करें तो इसके भाव कभी 400 रुपये (Yes Bank Share Price) के करीब पहुंच रहे थे लेकिन अब यह 20 रुपये को भी पार करने के लिए हांफ रहा है। यह बैंक अभी 20 साल का भी नहीं है और इसमें काफी उतार-चढ़ाव आ चुका है। यस बैंक में गड़बड़ी कहां से शुरू हुई और इसके को-फाउंडर राणा कपूर (Rana Kapoor) की इसमें क्या भूमिका है, इसे समझने के लिए सिलसिलेवार नीचे बताया जा रहा है। यस बैंक के शेयर आज 25 नवंबर को 17.15 रुपये के भाव पर ट्रेड हो रहे हैं।
Yes Bank पर ऐसा हुआ राणा कपूर का एकछत्र नियंत्रण
यस बैंक को 2003-04 में बैंकिंग लाइसेंस मिला। इसके कुछ समय बाद इसके प्रमोटर्स राणा कपूर (Rana Kapoor) और अशोक कपूर (Ashok Kapur) ने अपने पार्टनर हरकीरत सिंह को बैंक से निकाल दिया। Kapoor-Kapur की योजना एक ऐसा निजी बैंक बनाने की थी जो एनबीएफसी (नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी) की तरह आक्रामक तरीके से काम कर सके। उन्होंने कम समय में अधिक पैसे बनाने के लिए धीरे-धीरे बढ़ रहे खुदरा कारोबार की बजाय होलसेल बिजनेस पर दांव लगाया।
यस बैंक अपने समय की बैंकिंग इंडस्ट्री के लिए नई हवा के तौर पर था क्योंकि इससे पहले बैंकिंग धीमा बिजनेस था। राणा कपूर ने बैंक को स्पांसर करने के लिए मेगा कांफ्रेंस करना शुरू किया। 26/11 के मुंबई आतंकी हमले में अशोक कपूर की मौत के बाद कपूर ने यस बैंक का मैनेजमेंट संभाल लिया और अब यस बैंक उनके हिसाब से आगे बढ़ने लगा।
सिंपल फंडे से मजबूत हुआ Yes Bank
यस बैंक शुरुआत में बहुत अधिक तेजी से नहीं बढ़ सका और बैंकिंग इंडस्ट्री में स्थिति मजबूत नहीं कर सका। हालांकि एक ही दशक में स्थिति पूरी तरह से बदल गई। राणा कपूर का सिंपल फंडा था- बड़ा दांव, बड़ा खर्च और बड़ी ग्रोथ। ऐसे में बैंक ने सबसे अधिक कर्ज कॉरपोरेट को दिए। राणा की यह स्ट्रेटजी लंबे समय तक कारगर रही।
राणा कपूर खुदरा लोन और छोटी कंपनियों को लोन देने पर अधिक ध्यान नहीं देते थे। मुंबई के एक बैंकिंग एनालिस्ट के मुताबिक बैंक की तेज ग्रोथ पर किसी बैंकिंग एनालिस्ट, रेटिंग एजेंसी या रेगुलेटर ने सवाल नहीं उठाया और सभी यस बैंक के बिजनेस मॉडल की प्रशंसा कर रहे थे। बैंकिंग इंडस्ट्री के अधिकारियों के मुताबिक अधिकतर लोन प्रस्तावों पर खुद राणा कपूर फैसला लेते थे और क्रेडिट कमेटी को बस औपचारिकता निभानी होती थी। नियम के मुताबिक सभी लोन प्रस्ताव क्रेडिट कमेटी के पास से होकर आगे बढ़ते हैं।
पांच साल में साढ़े चार गुना बढ़ गया लोन बुक
यस बैंक की ग्रोथ की अनुमान ऐसे लगा सकते हैं कि जब अधिकतर बैंकों की लोन बुक सालाना 8-10 फीसदी की दर से बढ़ रही और उनमें से भी अधिकतर को इसमें भी दिक्कत हो रही थी। उसी दौरान वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 2019 के बीच यस बैंक का लोन बुक 55 हजार करोड़ रुपये से 2.5 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इसमें से वित्त वर्ष 2017-2019 के बीच तो लोनबुक लगभग दोगुना हो गया यानी कि 38 फीसदी की सीएजीआर जबकि अपने सबसे बेहतर से बेहतर समय में भी किसी भी भारतीय बैंक का लोन बुक ग्रोथ 25 फीसदी के लेवल को पार नहीं कर पाया।
वित्त वर्ष 2017-18 तक सब कुछ ठीक चल रहा था, फिर एकाएक दो बड़े झटके लगे। आरबीआई के ऑडिटिंग में एनपीए के जो आंकड़े सामने आए, वह यस बैंक की रिपोर्ट से मैच नहीं हो रहे थे। वहीं 2018 के आखिरी में आईएलएंडएफएस ढह गया जिससे नगदी की किल्लत बढ़ गई। इसके चलते यस बैंक के लोन बुक पर दबाव बढ़ा क्योंकि कंपनियों ने कर्ज का भुगतान बंद कर दिया था।
कंपनियां एनबीएफसी से कर्ज लेकर रीपेमेंट कर रही थीं लेकिन अधिकतर एनबीएफसी ने उस समय कर्ज देना बंद कर दिया था जिससे दिक्कत बढ़ी। राणा कपूर पर इसी दौरान पैसे लेकर कर्ज बांटने का आरोप है जिससे यस बैंक को भारी नुकसान पहुंचा। इसी को लेकर राणा कपूर को जेल की हवा खानी पड़ी जिससे फिलहाल आज 25 नवंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए जमानत मंजूर कर ली। राणा कपूर और उनका परिवार 101 कंपनियां चलाता था, उनके 168 बैंक खाते थे और 3 होल्डिंग कंपनियां थीं।