क्या रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने यूक्रेन पर हमलों (Ukraine Crisis) के अंजाम के बारे में सोचा था? क्या उन्होंने यूक्रेन पर हमले का फैसला जल्दबाजी में लिया? इन सवालों का जवाब बाद में मिलेगा। लेकिन इतना तय है कि यूक्रेन पर हमले की भारी कीमत रूस को चुकानी पड़ रही है। गुरुवार को लगातार चौथे दिन रूस के स्टॉक मार्केट (Russian Stock Exchange) में ताला लटका रहा। आज के समय में स्टॉक मार्केट के एक दिन भी बंद (सामान्य हॉलीडे के सिवाय) होने की कल्पना नहीं की जा सकती। चार दिन से रूस के मार्केट में ट्रेडिंग ठप है।
रूस के केंद्रीय बैंक 'बैंक ऑफ रशिया' (Bank of Russia) ने बुधवार को ही इस बारे में बयान कर दिया था। उसने कहा था कि कुछ अपवादों को छोड़ मॉस्को एक्सचेंज (Moscow Exchange) में गुरुवार को ट्रेडिंग नहीं होगी। उसने कहा था कि न तो डेरिवेटिव और न ही स्टॉक्स में ट्रेडिंग होगी। यूक्रेन पर 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमले की शुरुआत की थी। इसके बाद अमेरिका, यूरोप और जापान ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं।
रूस पर प्रतिबंधों का असर दिखने लगा है। रूस की इकोनॉमी को भारी नुकसान हो रहा है। रूस की मुद्रा में बड़ी गिरावट आई है। डॉलर के मुकाबले रूस की मुद्रा रूबल 30 फीसदी गिर चुकी है। उधर, रूस के केंद्रीय बैंक के पास रूबल को गिरने से बचाने के लिए ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं। इसकी वजह है कि उस पर भी कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं। उदाहरण के लिए विदेश में रूस के केंद्रीय बैंक के एसेट्स को फ्रिज कर दिया गया है।
स्थिति को संभालने के लिए बैंक ऑफ रशिया ने प्रमुख ब्याज दर को बढ़ाकर दोगुना कर दिया है। इसका मकसद सिस्टम में लिक्विडिटी बनाए रखना है। ब्याज दर बढ़ जाने से लोन लेना महंगा हो गया है। अभी के माहौल में कोई दोगुने ब्याज दर पर लोन लेना नहीं चाहेगा। इससे सिस्टम में लिक्विडिटी में ज्यादा कमी नहीं आएगी। रूस के केंद्रीय बैंक ने बॉन्ड में इनवेस्ट करने वाले फॉरेन इनवेस्टर्स को इंट्रेस्ट का पेमेंट करने पर भी रोक लगा दी है।
रूस के मॉस्को स्टॉक एक्सचेंज को तो बंद कर दिया है। लेकिन, वह लंदन सहित दूसरे मार्केट पर रूस की कंपनियों में होने वाली ट्रेडिंग पर रोक नहीं लगा सका है। यूक्रेन पर हमले के बाद से रूस की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई है। लंदन स्टॉक एक्सचेंज पर कई रूसी कंपनियों के डिपॉजिटरी रिसीट के भाव जमीन पर आ गए हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि रूस को लेकर दुनियाभर के इनवेस्टर्स की सोच पर कितना असर पड़ा है।