एमिरेट्स एनबीडी का आरबीएल बैंक में 60 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने का प्लान है। इसके लिए दुबई का यह बैंक 3 अरब डॉलर का निवेश करेगा। इस डील को इंडिया के फाइनेंशियल सेक्टर में विदेशी पूंजी की एंट्री के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है। इससे पहले हुए निवेश के मामले ज्यादातर स्ट्रक्चर्ड थे, जिनका असल मकसद किसी बैंक को बचाना था। इस डील का मकसद ग्रोथ है।
पहले बैंकिंग सेक्टर में हुए बड़े ट्रांजेक्शन के मकसद अलग थे
इंडिया में बैंकिंग सेक्टर में पहले भी कई ट्रांजेक्शंस देखने को मिले हैं। ऐसा एक मामला 2020 में हुआ था, जिसमें सिंगापुर के DBS ने लक्ष्मी विलास बैंक का अधिग्रहण किया था। ऐसा RBI के निर्देश पर हुआ था। लेकिन, इस डील का मकसद क्राइसिस को टालना था। इसी तरह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की अगुवाई वाले कंसोर्शियम ने यस बैंक को डूबने से बचाने के लिए 1.6 अरब डॉलर लगाया था। यह रीस्ट्रक्चरिंग प्लान भी आरबीआई के निर्देश पर हुआ था। ये डील स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप की जगह किसी बड़े संकट को टालने के लिए की गई थी।
एमिरेट्स एनबीडी की नजरें इंडियन बैंकिंग सेक्टर की ग्रोथ पर
आरबीएल बैंक को किसी तरह का संकट नहीं है। गवर्नेंस के मामले में इसे 2021 में झटका लगा था। लेकिन उसके बाद बैंक ने अपनी पूंजी बढ़ाई और डिपॉजिटर्स का भरोसा जीता। इसलिए एमिरेट्स एनबीडी के इस कदम के पीछे सोचसमझकर बनाई गई रणनीति है। दुबई के इस बैंक की नजरें इंडिया में रिटेल बैंकिंग की ग्रोथ पर है। आरबीएल बैंक के 1.5 करोड़ कस्टमर्स हैं और 500 से ज्यादा ब्रांचेज हैं। इसका मतलब है कि आरबीएल बैंक के अधिग्रहण से एमिरेट्स एनबीडी को अच्छा एसेट्स मिल जाएगा।
आरबीएल बैंक और एमेरिट्स एनबीडी की डील से होंगे ये फायदे
एमिरेट्स एनबीडी की इस डील के दो बड़े फायदे हैं। पहला, आरबीएल बैंक को इनवेस्टमेंट ग्रेड की स्ट्ऱॉन्ग रेटिंग के साथ कैपिटल का सपोर्ट मिलेगा। दूसरा, गल्फ में बड़ी संख्या में रहने वाले NRI का सपोर्ट मिलेगा। ये एनआरआई सालाना करीब 19 अरब डॉलर इंडिया भेजते हैं। अगर इस पैसे का सही इस्तेमाल किया जाता है तो इससे कंज्यूमर क्रेडिट और वेल्थ प्रोडक्ट्स के मामले में बड़ा फायाद हो सकता है।
आरबीआई प्राइवेट बैंक में 75% विदेशी निवेश की इजाजत दे चुका है
इस डील से फॉरेन ओनरशिप को लेकर आरबीआई की बदलती सोच का भी पता चलेगा। केंद्रीय बैंक ने धीरे-धीरे बैंकों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाई है। अब प्राइवेट बैंकों में 75 फीसदी तक विदेशी निवेश की इजाजत है। हालांकि, यह ऐसा पहला मामला होगा, जिसमें कोई बड़ा विदेशी इंस्टीट्यूशन बगैर किसी क्राइसिस के इंडिया के प्राइवेट बैंक में ऑपरेशनल कंट्रोल हासिल करेगा। इस डील पर एशियाई बैंकों और मिडिल ईस्टर्न सॉवरेन फंडों के साथ दूसरे संस्थानों की भी नजरें लगी होंगी।
इंडियन बैंकिंग सेक्टर अब सिर्फ फटाफट मुनाफा कमाने का जरिया नहीं
इस डील से यह यह साफ हो जाएगा इंडियन बैंकिंग सिस्टम अब सिर्फ ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए निवेश का डेस्टिनेशन नहीं है बल्कि यह स्ट्रेटेजिक एक्सपैंशन के लिए एक प्लेटफॉर्म बन चुका है। इस डील से यह भी संकेत मिलता है कि बैंकिंग सेक्टर में कंसॉलिडेशन अब पॉलिसी को लेकर चर्चा से एग्जिक्यूशन के लेवल तक पहुंच रहा है।