Byju's News: देश की सबसे अधिक वैल्यू वाली एडुटेक स्टार्टअप बायजूज (Byju's) की दिक्कतें क्या है, इसकी सबसे बड़ी इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर प्रोसुस (Prosus) ने इसका खुलासा किया है। प्रोसुस नीदरलैंड की है और बायजूज ने इसके प्रतिनिधि रसेल ड्रेजेनस्टॉक (Russell Dreisenstock) ने पिछले महीने कंपनी छोड़ दिया था। अब प्रोसुस का कहना है कि बायजूज जितनी बड़ी कंपनी है, उसके हिसाब से यहां रिपोर्टिंग और गवर्नेंस स्ट्रक्चर नहीं है। प्रोसुस ने आज 25 जुलाई को आधिकारिक बयान में कहा कि कंपनी को स्ट्रैटेजिक, ऑपरेशनल, लीगल और कॉरपोरेट गवर्नेंस से जुड़े जो भी सलाह और सिफारिशें दी गईं, उसे कंपनी के एग्जेक्यूटिल लीडरशिप ने लगातार नजरअंदाज किया।
इस कारण Prosus के प्रतिनिधि ने छोड़ी Byju's
प्रोसुस के मुताबिक कंपनी ने उसके प्रतिनिधि की सलाह और सिफारिशों को कोई महत्व नहीं दिया। अब ऐसे में बायजूज की सबसे बड़ी इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर का कहना है कि जब यह स्पष्ट हो गया कि बायजूज और इसके स्टेकहोल्डर्स के लॉन्ग टर्म हित में उसके प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहे हैं तो उन्होंने बोर्ड से इस्तीफा दे दिया। बता दें कि पिछले महीने प्रोसुस के प्रतिनिधि ड्रेजेनस्टॉक के साथ-साथ Peak XV Partners (पूर्व नाम सिकोईया कैपिटल इंडिया लिमिटेड) के जीवी रविशंकर और चान जुकरबर्ग इनिशिएटिव के विवियन वू ने बायजूज के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया था।
पहली बार बोर्ड मेंबर ने लगाए फाउंडर्स पर ऐसे आरोप
प्रोसेस के दावे के मुताबिक बायजूज के बोर्ड में उसके प्रतिनिधि ने कंपनी के एग्जेक्यूटिव लीडरशिप से असहमति के चलते इस्तीफा दे दिया। हालांकि बायजूज ने कुछ और कहा था। बायजूज ने पहले कहा था कि बोर्ड से इस्तीफा इसलिए हुआ क्योंकि निवेशकों की हिस्सेदारी न्यूनतम आवश्यक सीमा से नीचे गिर गई थी। यह पहली बार है कि जब किसी बोर्ड सदस्य ने फाउंडर्स और बोर्ड के तत्कालीन सदस्यों के बीच मतभेदों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है।
तो क्या बायजूज को टाटा कह दिया प्रोसुस ने?
प्रोसुस ने आगे कहा कि भारत और शिक्षा, दोनों ही नीदरलैंड के निवेशकों के लिए दो अहम निवेश हैं और बायजूज में ये दोनों ही है यानी कि यह भारतीय कंपनी है और शिक्षा के फील्ड में भी है। प्रोसुस का अब बायजूज के बोर्ड में कोई सदस्य नहीं है लेकिन इसका कहना है कि वह बाकी शेयरहोल्डर्स और सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर कंपनी और इसके स्टेकहोल्डर्स के लॉन्ग टर्म हितों की रक्षा करेगी और एक शेयरहोल्डर के रूप में अपने अधिकारों को भी बनाए रखेगी।