टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) ने अमेरिका में प्रोफेशनल्स की एंट्री को लेकर एच-1बी (H-1B) वीजा पर अपनी निर्भरता में काफी कमी लाई है। देश की सबसे बड़ी आईटी सर्विसेज कंपनी का कहना है कि इसके केवल लगभग 500 कर्मचारी ही एच-1बी वीजा पर अमेरिका गए हैं। कंपनी का कहना है कि वह अमेरिकी सरकार की बदली हुई इमिग्रेशन पॉलिसी को अपनाने को तैयार है। बता दे कि मनीकंट्रोल को जो आंकड़े मिले हैं, उसके मुताबिक आईटी सर्विसज मुहैया कराने वाली भारतीय कंपनियों में से टीसीएस को अमेरिका के वर्क वीजा प्रोग्राम का सबसे अधिक फायदा मिला है। सितंबर 2025 तक के आंकड़ों के मुताबिक इसे करीब 5505 वीजा एलॉट हुए थे।
H-1B Visa की पॉलिसी में क्या बदलाव किया अमेरिका ने?
अमेरिकी कंपनियों को किसी विदेशी शख्स को काम पर रखना होता है तो इसके लिए एच-1बी वीजा काफी चलन में है। इसका इस्तेमाल साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, गणित (स्टेम) और आईटी जैसे खास पेशे के लिए वर्कर्स को हायर करने पर होता है। अभी करीब एक महीने पहले अमेरिकी सरकार ने एच-1बी वीजा की फीस को बढ़ाकर सालाना $1,00,000 तक बढ़ा दिया था। इससे उत्तरी अमेरिका में आईटी कंपनियों के लिए शॉर्ट टर्म में एंप्लॉयीज की हायरिंग को लेकर चिंताएं होने लगी। 23 सितंबर को इस ऐलान के बाद अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी ने बदलाव का एक प्रस्ताव भी पेश किया जिसमें लॉटरी वाले एच-1बी वीजा सिस्टम की बजाय ऊंचे वेतन और उच्च क्षमता वाले आवेदकों को प्राथमिकता देने का प्रावधान है।
पोस्ट-अर्निंग्स कॉल में टीसीएस के चीफ एचआर ऑफिसर सुदिप कुनुम्मल (Sudeep Kunnummal) ने कहा कि एच-1बी वीजा के मामले में टीसीएस ने अमेरिका में अपने वर्कफोर्स का काफी हद तक स्थानीयकरण कर लिया है यानी कि अधिकतर एंप्लॉयीज अब अमेरिकी हो गए हैं। कंपनी का कहना है कि अब इसके सिर्फ 500 एंप्लॉयीज ही एच-1बी वीजा पर अमेरिका गए हैं। उनका मानना है कि टीसीएस का कारोबारी इमिग्रेशन नीति में किसी भी बदलाव के साथ तेजी से तालमेल बिठाने में सक्षम होगा। कंपनी का फोकस अब अब अलग-अलग जगहों पर वहीं के स्थानीय लोगों को काम पर रखने पर है। उन्होंने कहा कि लैटिन अमेरिका में इस मॉडल पर अच्छे तरीके से काम किया गया है। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप जैसे जगहों पर स्थानीय लोगों को ही अधिकतर काम पर रखा गया है और इसी नीति पर आगे भी काम जारी रखा जाएगा।