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किसानों को पैदावार की अच्छी कीमत तभी मिलेगी जब मार्केटिंग के विकल्प होंगे

सरसों की हार्वेस्टिंग शुरू होने के साथ ही कीमतें 2-3 महीनों में करीब 30% गिर कर MSP से भी नीचे सरक आई हैं, ऐसे में किसानों के पास अब अपने फसल बेचने के लिए मौजूद विकल्प क्या काफी है और यदि नहीं, तो सरकार की इसमें क्या भूमिका हो सकती है

Bhuwan Bhaskarअपडेटेड Mar 13, 2023 पर 2:48 PM
किसानों को पैदावार की अच्छी कीमत तभी मिलेगी जब मार्केटिंग के विकल्प होंगे
किसान के पास फसलों के स्टोरेज की व्यवस्था होती नहीं, तो उसे जल्द से जल्द अपने फसलें मंडियों में पहुंचाना होता है

रबी की फसलों की कटाई का वक्त आ गया है। गेहूं खेतों में तैयार है और अगले कुछ दिनों में उसकी हार्वेस्टिंग शुरू हो जाएगी। लेकिन तिलहनों में सबसे प्रमुख सरसों, मंडियों में पहुंचना शुरू हो चुकी है। हार्वेस्टिंग के समय किसानों की सबसे बड़ी चिंता होती है कीमतों की, क्योंकि जब एक साथ हजारों टन फसल मंडियों में पहुंचना शुरू होती है, तो दाम जमीन पर आ गिरते हैं। किसान के पास फसलों के स्टोरेज की व्यवस्था होती नहीं, तो उसे जल्द से जल्द अपने फसलें मंडियों में पहुंचाना होता है। परेशानी यह है कि इन फसलों की कीमतें तय करने में अमूमन किसानों की कोई भूमिका नहीं होती। मंडियों में मौजूदा व्यापारियों का एक समूह यह तय करता है कि किसी किसान की फसल की कीमत क्या होगी।

हार्वेस्टिंग के समय फसलों की कीमत को एक स्तर से नीचे जाने से रोकने के लिए ही सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) घोषित करती है, हालांकि इस मूल्य का कोई वैधानिक मतलब नहीं होता है। MSP सिर्फ तब ही प्रासंगिक होता है, जब सरकारें स्वयं किसानों की फसलें खरीदती हैं। वैसे तो केंद्र सरकार 22 कमोडिटी के MSP जारी करती है, लेकिन विभिन्न सर्वे बताते हैं कि धान-गेहूं को छोड़ दें, तो बाकी कमोडिटी के किसानों में से बमुश्किल 5-7% को MSP का लाभ मिल पाता है।

इस साल सरसों की फसल के लिए केंद्र ने 5450 रुपये प्रति क्विंटल का MSP तय किया है। लेकिन अभी दो महीने पहले तक हालात यह थे कि सरसों का भाव 7000-8000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था। उसके बाद से लगातार भाव गिरते-गिरते अभी लगभग 5200-5300 प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गए हैं, और विशेषज्ञों का कहना है कि यह आने वाले दिनों में 5000 के नीचे जा सकता है। पिछले 3 वर्षों में यह पहला मौका है जब सरसों की कीमतें MSP के नीचे चल रही हैं।

सरसों के दाम में आई इस गिरावट के पीछे उपज के फंडामेंटल्स हैं। रिपोर्ट के मुताबिक चालू रबी सीजन में 94 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई है, जो कि पिछले पांच वर्षों के औसत 63 लाख हेक्टेयर रकबे से 49% ज्यादा है। पिछले साल 2021-22 में सरसों की बुवाई का रकबा 86 लाख हेक्टेयर था। जाहिर है कि इस साल उत्पादन के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचने की संभावना है, जिसकी झलक जैसे-जैसे हार्वेस्टिंग करीब आ रही है, सरसों की कीमतों पर दिखने लगी है। अब सवाल यह है कि जब कीमतें MSP के नीचे चल रही हों, तो किसानों के पास क्या विकल्प हैं?

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