भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता है। अपनी जरूरत का 80% से अधिक तेल यह आयात के जरिए हासिल करता है। इसका असर तेल की कीमतों पर भी दिखता है और देश के खजाने पर तो दिखता ही है। वैश्विक मार्केट में जब कच्चा तेल यानी क्रूड महंगा होता है तो घरेलू मार्केट में भी पेट्रोल और डीजल के महंगे होने की आशंका बढ़ जाती है। अब सरकार ने ऐसे संकेत दिए हैं कि तेल सस्ता हो सकता है। पेट्रोलियम सचिल पंकज जैन ने आज 12 सितंबर को कहा कि अगर वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें कुछ समय तक कम रहती हैं, तो भारत में तेल बेचने वाली कंपनियां पेट्रोल और डीजल की कीमतों को कम करने पर विचार कर सकती हैं। सीएनबीसी-आवाज से बातचीत में उन्होंने यह भी कहा कि ऑयल मिनिस्ट्री विंडफॉल टैक्स को लेकर फाइनेंस मिनिस्ट्री से बात कर रही है और फिर डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू इस पर निर्णायक फैसला लेगा।
रुस से अधिक तेल खरीद सकता है भारत
पेट्रोलियम सचिव पंकज जैन ने स्वीकार किया कि पिछले 7-10 दिनों में तेल की कीमतें हल्की पड़ी हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि अब यह देखना होगा कि वैश्विक स्तर पर कीमतें कितने समय तक कम रहती हैं, क्योंकि केवल एक हफ्ते की कीमतों की चाल के आधार पर निर्णय लेना उचित नहीं हो सकता। ऐसे में पंकज ने कहा कि अभी यह देखना है कि तेल की कीमतों में सुस्ती आगे भी जारी रहती है, तभी कोई फैसला लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि लंबे समय में तेल के भाव कैसे बने रहेंगे. इसके आधार पर ही भारत तेल की खरीदारी करता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत रुस से और तेल खरीदने पर विचार कर सकता है, अगर यह सस्ते में मिलेगा। जुलाई में रुस से सबसे अधिक तेल भारत ने खरीदा था और इस मामले में चीन पीछे छूट गया था।
अभी क्या है कच्चे तेल में रुझान?
12 सितंबर के शुरुआती कारोबार में नवंबर का ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स $71.61 प्रति बैरल के करीब था और अक्टूबर का यूएस क्रूड फ्यूचर्स $68.23 प्रति बैरल पर था। वहीं वैश्विक स्तर पर कीमतों का बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड वर्ष 2021 के बाद पहली बार $70 प्रति बैरल के नीचे चला गया है। कई एनालिस्ट्स पहले ही कच्चे तेल की कीमतों में नरमी का अनुमान लगा चुके थे। सिटीग्रुप और जेपी मॉर्गन के मुताबिक अगले साल 2025 में यह $60 के लेवल तक टूट सकता है। तेल उत्पादक देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (OPEC) ने इस हफ्ते की शुरुआत में 2024 में कच्चे तेल की मांग में बढ़ोतरी के अनुमान में कटौती की है और अगले साल के अनुमान में भी कटौती की है। यह लगातार दूसरी बार है, जब ओपेक ने इसमें कटौती की है।