Oil Price: भारत में तेल की जरूरतों का बड़ा हिस्सा आयात होता है। ऐसे में कच्चे तेल के भाव जब नीचे आते हैं तो यहां पेट्रोल और डीजल के भाव नीचे आने की उम्मीद बढ़ जाती है। कच्चे तेल की मौजूदा स्थिति की बात करें तो इसकी कीमतें तीन हफ्ते के निचले स्तर पर पहुंच गई हैं। आज 1 अक्टूबर को यह 2 फीसदी से अधिक कमजोर हुआ है। इसकी वजह ये है कि मिडिल ईस्ट में तनाव चरम पर है तो यहां से कच्चा तेल निकालने पर असर पड़ रहा है। इससे डिमांड फीकी हो सकती है और सप्लाई बढ़ सकती है। बता दें कि एक इजरायली हवाई हमले में हिजबुल्ला नेता हसन नसरल्लाह की मौत के बाद ईरान के सुप्रीम लीडर ने बदले की कसम खाई है।
2 अक्टूबर की बैठक तय करेगी आगे की चाल
ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स 1.49 डॉलर यानी 2.08 फीसदी गिरकर प्रति बैरल 70.21 डॉलर पर आ गया। वहीं अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड फ्यूचर्स भी 1.55 डॉलर यानी 2.27 फीसदी गिरकर 66.62 पर बंद हुआ। ओपेक+ देशों में उत्पादन बढ़ने की संभावना और चीनी में सुस्ती ने कच्चे तेल पर दबाव बनाया है। पिछली तिमाही वैश्विक क्रूड बेंचमार्क में 17 फीसदी की गिरावट आई। माना जा रहा है दिसंबर में तेल का उत्पादन प्रति दिन 1.80 लाख बैरल बढ़ाया जा सकता है। अब तेल को लेकर क्या होगा, इसे लेकर 2 अक्टूबर को होने वाली ओपेक+ देशों की बैठक पर मार्केट की निगाहें बनी हुई हैं। ओपेक+ तेल उत्पादक देशों का संगठन है और इसमें खाड़ी देशों के अलावा रुस भी शामिल है।
एनालिस्ट्स का क्या कहना है?
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में ऑयल ब्रोकर पीवीएम के एनालिस्ट जॉन एवांस ने कहा कि लीबिया के कच्चे तेल की वापसी और दिसंबर में ओपेक+ की स्वैच्छिक कटौती में कमी की योजना, उन लोगों के लिए झटका है जो अमेरिका में तेल के भंडार में कमी की योजना बना रहे हैं। वहीं इजराइल और लेबनान के बीच के जंगी माहौल की बात करें तो Panmure Gordon के एनालिस्ट एश्ले केल्टी (Ashley Kelty) का कहना है कि इजराइल के खिलाफ ईरान के आने की आशंकाओं से कीमतों को सपोर्ट मिला है लेकिन अब ईरान ने संकेत दिया है कि वह यमन, लेबनान और फिलिस्तीन में अपने प्रॉक्सी से आगे बढ़ने की इच्छुक नहीं हैं।