Experts Views on Edible Oil Price : खाद्य तेल क्षेत्र में पारदर्शिता और निगरानी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अन्य खाद्य पदार्थों की तुलना में तेलों की महंगाई ने कमर तोड़ दी है। हालांकि यह भी माना जा रहा है कि यहां से खाने के तेलों की कीमतों में गिरावट ना दिखे। खाने के तेल की कीमतों और इसमें आ रहे उतार-चढ़ाव पर विस्तार से सीएनबीसी-आवाज से बात करते हुए श्री रेणुका शुगर्स के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि खाने के तेल के दाम बढ़ना तय था। ड्यूटी ज्यादा होने से दाम बढ़ना तय था। देश में खाने के तेल की खपत घटी है। भारत एक प्राइस सेंसिटिव मार्केट है। जिसका रिफलेक्शन यह है कि आज देश में खाने के तेल का इंपोर्ट बढ़ने के बजाय घटा है।
उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका की नीतियों के कारण भी दाम बढ़े है। खाने के तेल का इंटरनेशनल बाजार मजबूत है। भारत में इंपोर्ट ड्यूटी को घटाया भी है। CPO और पाम ऑयल की ड्यूटी में अंतर बढ़ा है।
क्या कीमतों में उतार-चढ़ाव आएगा? इस सवाल का जवाब देते हुए अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि खाने के तेल की कीमतों में गिरावट की उम्मीद कम है। कीमतों में ज्यादा तेजी की भी उम्मीद नहीं है। देश में सबसे ज्यादा तिलहन सरकार के पास है। सरसों की कीमतों में तेजी आई है। सरसों के दाम दूसरे तेलों से ₹40-45/किलो ज्यादा है। सरकार को सरसों का स्टॉक बेचना चाहिए। स्टॉक की सप्लाई बढ़ने से दाम जरूर गिरेंगे।
त्योहारों के मांग के बीच इंपोर्ट किस तरह बनते देखते हैं? इस सवाल का जवाब में उन्होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों में पाम का इंपोर्ट गिरा है। कीमतों में तेजी के कारण पाम का इंपोर्ट गिरा है। आज पाम के दाम काफी गिर चुके हैं। सोया, सन ऑयल के मुकाबले पाम के दाम कम हैं। कीमतों में $100-125 का अंतर आ चुका है। दाम गिरने से पाम का इंपोर्ट दोबारा बढ़ा है। त्योहारों के लिए खरीदारी पहले ही हो चुकी है। इस महीने 15-15.5 लाख टन के करीब इंपोर्ट हुआ। पाम का इंपोर्ट फिर से 8-8.5 लाख टन के करीब है।
अतुल चतुर्वेदी ने बताया कि खाने के तेल की मांग काफी मजबूत बनी हुई है, लेकिन देश में खाने के तेल की खपत घटी है। देश की आबादी बढ़ेगी तो ही मांग बढ़ेगी। सालाना प्रति व्यक्ति खपत 17.5-18 किलो है। PM मोदी ने भी खपत 10% घटाने की अपील की है।
सरसों एक तिलहन वाली फसल है। सरसों के दानों में तेल ज्यादा, खली कम है। सोयाबीन में 80-82% मील, 18-20% तेल है। मक्के के एथेनॉल पॉलिसी का भी असर हुआ। DDGS के दाम कम होने का तिलहन को नुकसान हुआ। सोयाबीन मील पिछले साल `40/किलो बिकती थी। आज सोयाबीन मील का `27-28 में भी खरीदार नहीं। एक सीमा के बाद दाम बढ़ना संभव नहीं है। सरकार को मील सेक्टर पर भी ध्यान देना चाहिए। बायोफ्यूल से ज्यादा तिलहन पर ध्यान देने की जरूरत है। पिछले साल बायोफ्यूल के लिए 1 मिलियन टन मक्का इंपोर्ट हुआ। देश में तिलहन की नीतियों में बदलाव की जरूरत है।
गन्ने से बने एथेनॉल के दाम भी बढ़ाना जरूरी
चीनी पर बात करते हुए अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि एथेनॉल डायवर्जन पर चीन के दाम निर्भर है। 3.2 बिलियन लीटर डायवर्जन की उम्मीद है। अगले साल फसल इस साल से ज्यादा होने की उम्मीद है। 5 बिलियन लीटर डायवर्जन हुआ तो इंडस्ट्री को फायदा मिलेगा। इस साल 15-18% ज्यादा फसल की उम्मीद है। अच्छे मॉनसून से ज्यादा उत्पादन की उम्मीद है। आज 7-7.5 लाख टन से ज्यादा का एक्सपोर्ट नहीं है। इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की सप्लाई अच्छी है। चीनी एक्सपोर्ट करने के मौके काफी सीमित हैं। आज घरेलू बाजार में भाव 37-38 रुपये प्रति किलो है । भारत का एक्सपोर्ट ज्यादा होने से दाम और गिरेंगे। सीजन के 2-4 महीने के बाद एक्सपोर्ट परसरकार गौर करे। हालात को देखते हुए सरकार एक्सपोर्ट पर फैसला ले।
अक्टूबर के अंत तक क्लोजिंग स्टॉक सरकार के अनुमान से कम होगा। डायवर्जन ज्यादा नहीं बढ़ा तो हालात 4-6 वाले हालात हो जाएंगे। किसानों का बकाया दोबारा से बढ़ने लगेगा। जरूरी है की चीनी का एथेनॉल डायवर्जन बढ़े है। गन्ने से बने एथेनॉल के दाम भी बढ़ाना जरूरी है। चीनी का आवंटन पिछले साल से 1.5 मिलियन टन कम है। पिछले साल 7-7.5 लाख टन चीनी बांग्लादेश गई थी।
उन्होंने आगे कहा कि देश में चीनी की खपत गिरी है। देश में चीनी की कीमतों में ज्यादा तेजी नहीं आई है। मांग में आगे ज्यादा तेजी की उम्मीद नहीं है। इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की कीमतों पर दबाव देखने को मिल सकता है। अक्टूबर के बाद हल्की तेजी देखने को मिल सकती है। घरेलू बाजार में दाम बढ़ने की उम्मीद कम है। चीनी के दाम बढ़ेंगे तो ही खपत कम होगी।
अतुल चतुर्वेदी ने आगे कहा कि गन्ने से बने एथेनॉल के दाम भी बढ़ाना जरूरी है। देश में चीनी की कीमतों में ज्यादा तेजी नहीं आई है। घरेलू बाजार में दाम बढ़ने की उम्मीद कम है।
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