इंडिया में 1961 में घड़ी बनाने वाली एक कंपनी ने जन्म लिया। दरअसल, उस साल हिंदुस्तान मशीन टूल्स (HMT) ने घड़ी बनाने के लिए जापान की सिटीजन वॉच से समझौता किया। बेंगलुरु में देश की पहली घड़ी बनाने वाली फैक्ट्री लगी। एचएमटी पिछले 8 सा से मैनुफैक्चरिंग सेक्टर के लिए मशीन टूल्स बना रही थी। घड़ी बनाते ही एचएमटी की पहचान घर-घर में हो गई। कंपनी की पहली वॉच को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लॉन्च किया था।
ऑपरेशन शुरू करने के कुछ ही साल में घर-घर में बनाई पहचान
एचएमटी की घड़ियों की मांग इतनी बढ़ गई कि कंपनी के प्लांट के लिए उन्हें पूरा करना मुश्किल हो गया। इसके बाद कई प्लांट लगाए गएं। शुरुआती कुछ दशक तक कंपनी ने बेसिक मैकेनिकल वॉच बनाए। बाद में ऑटोमैटिक वॉच बनने लगी। करीब चार दशक तक एचएमटी की पहचान 'Timekeepers of the Nation' के रूप में बनी रही। तब मार्केट के 90 फीसदी हिस्से पर उसका कब्जा था। उसका मुकाबला टाइमस्टाल और ऑलविन जैसी घड़ियों से था। कुछ आयातित घड़ियां भी बाजार में थीं।
लोगों को भावनाओं की डोर से बांधती थी कंपनी
एचएमटी ने घड़ियों के मॉडल के नाम ऐसे रखे थे, जो लोगों को भावनात्मक रिश्तों की डोर से बांध लेते थे। जनता, तरुण, नूतन, प्रिया, निशात और कोहिनूर। ये ऐसे नाम थे, जो लोगों की जुबान पर रहते थे, क्योंकि ये लोगों के घर-परिवार या पास-पड़ोस के हिस्सा होते थे। उदारीकरण शुरू होने तक एचएमटी एक साल में करीब 70 लाख घड़ियां बना रही थी।
समय में बदलाव को पहचानने में भूल कर गई एचएमटी
फिर कंपनी नई पीढ़ी के मिजाज को भांप पाने में चूकन लगी। यह पीढ़ी ऐसी घड़ियां चाहती थी जो समय के साथ कुछ और ऑफर करें। 1987 में टाटा ग्रुप और तमिलनाडु इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (TIDC) ने एक संयुक्त उद्यम बनाया, जिसका नाम टाइटन है। शुरुआत में तो यह एचएमटी की बाजार हिस्सेदारी में सेंध लगाने में नाकाम रही। लेकिन, इसने क्वार्ट्ज वॉचेज की अहमियत समझ ली थी।
टेक्नोलॉजी के मोर्चे पर पिछड़ गई कंपनी
खास बात यह है कि एचएमटी पिछले पांच साल से क्वार्ट्ज वॉचेज बेच रही थी। लेकिन, उनकी कीमतें ज्यादा होती थी। इससे वे ज्यादा नहीं बिकती थीं। इसलिए एचएमटी ने उस पर फोकस नहीं करने का फैसला किया था। लेकिन, इंडिया के बाहर क्वार्ट्ज टेक्नोलॉजी तेजी से जोर पकड़ रही थी। फिर, सरकार ने 1985-86 में क्वार्ट्ज घड़ियां बनाने के लिए जरूरी पार्ट्स के आयात पर लगे प्रतिबंधों में ढील दी। यहीं से एचएमटी का शानदार टाइम खराब होने लगा। उधर, टाइटन का अच्छा टाइम शुरू होने लगा।
2016 में हमेशा के लिए लग गया ताला
एचएमटी मैदान में टिकी रही। लेकिन, उसकी घड़ियों का आकर्षण खत्म होने लगा। देखने में वे पुराने जमाने की लगती थीं। तब कंपनी ने खुद को बाजार में स्थापित करने की कोई कोशिश नहीं की। 1990 आते-आते एचएमटी की बाजार हिस्सेदारी बहुत घट गई। यह 2016 तक चलती रही। फिर सरकार ने इसके आखिरी प्लांट पर ताला लगाने का फैसला ले लिया। तबक तक इस पर कर्ज का बोझ बढ़कर 2,500 करोड़ रुपये तक हो गया था।