बिगड़ती जीवनशैली और अनियमित दिनचर्या ने सेहत पर गहरा असर डाला है। जंक फूड का बढ़ता चलन भरपूर नींद की कमी और घंटों बैठे रहने की आदतें पाचन तंत्र को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं। नतीजा, पेट दर्द, बदहजमी और सीने में जलन जैसी समस्याएं अब आम हो गई हैं। अक्सर लोग गैस का दर्द समझकर पेट दर्द को नजरअंदाज कर देते हैं लेकिन यह लापरवाही भारी पड़ सकती है। छोटी-सी दिखने वाली ये समस्याएं गंभीर बीमारियों का रूप ले सकती हैं।आयुर्वेदिक उपाय जैसे बत्तीसा चूर्ण पाचन तंत्र को मजबूत बनाकर इन समस्याओं से राहत दिला सकते हैं।
बत्तीसा चूर्ण और जाफरीन तेल, सलीम के हाथों से बने असरदार उत्पाद हैं। बत्तीसा चूर्ण पाचन सुधारता है जबकि जाफरीन तेल जोड़ों के दर्द और त्वचा रोग में राहत देता है। ये किफायती और प्रभावी उपचार हैं।
32 जड़ी-बूटियों का चमत्कारिक उपाय
बत्तीसा चूर्ण, जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, 32 तरह की जड़ी-बूटियों से तैयार किया जाता है। इसे बनाने वाले सलीम बताते हैं कि यह चूर्ण पेट से जुड़ी लगभग सभी समस्याओं का समाधान करता है। इन्हें बनाने में जीरा, अजवाइन, सौंफ, सनाया की पत्ती, हर्रा, बेड़ा, आंवला, त्रिफला और सात तरह के नमक जैसी औषधीय सामग्रियों का उपयोग होता है। यह भूरे रंग का चूर्ण न केवल पाचन में सुधार करता है, बल्कि शरीर को हल्का और ऊर्जावान बनाए रखता है।
निर्माण प्रक्रिया और उपलब्धता
बत्तीसा चूर्ण को तैयार करना एक मेहनतभरा काम है। जिसमें घंटों की मेहनत लगती है। लोकल 18 से बातचीत करते हुए सलीम ने कहा कि एक बार में 5 से 8 किलो चूर्ण बनाया जाता है। इसे खरीदने के लिए आपको बहराइच शहर के कलेक्ट्रेट कचहरी के बाहर जाना होगा। यहां अनारकली क्षेत्र में सलीम अपनी दुकान पर जमीन पर जड़ी-बूटियों के साथ इसे बेचते हैं। इसकी कीमत भी बेहद किफायती है। 00 ग्राम चूर्ण के दाम 50 रुपये हैं।
84 जड़ी-बूटियों वाला जाफरीन तेल
सलीम न केवल बत्तीसा चूर्ण बनाते हैं बल्कि 84 जड़ी-बूटियों से बना जाफरीन तेल भी तैयार करते हैं। यह तेल विशेष रूप से जोड़ों के दर्द, खाज-खुजली और त्वचा रोगों में राहत देने के लिए जाना जाता है। इसे बनाने में भी घंटों लगते हैं और 5 किलो कच्चे माल से केवल 2 लीटर तेल तैयार होता है। गाढ़े लाल रंग का यह तेल पुराने से पुराने दर्द को ठीक करने में मदद करता है। यह सलीम की आयुर्वेदिक विधियों का एक और प्रमाण है, जो पारंपरिक चिकित्सा को आधुनिक समय में भी जीवित रखे हुए हैं।