पानी सिर्फ प्यास बुझाने का साधन नहीं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य का मूल आधार है। ये शरीर को ऊर्जा देता, अंगों के कार्य को सुचारू रखता और रोगों से बचाने में मदद करता है। आयुर्वेद में पानी को सही बर्तन में पीने पर खास जोर दिया गया है, क्योंकि पानी जिस पात्र में रखा जाता है, उसी के गुणों को अपना लेता है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, चांदी, तांबा, कांसा और पीतल जैसे धातुओं में रखा पानी शरीर को शुद्ध और संतुलित रखता है, जबकि प्लास्टिक, स्टील और लोहे जैसे बर्तनों में पानी पीना हानिकारक माना जाता है।
पुराने समय में लोग गिलास के बजाय लोटे का इस्तेमाल करते थे, क्योंकि उसका गोल आकार पानी की ऊर्जा को संतुलित करता है और इसे शरीर के लिए अधिक लाभकारी बनाता है। आधुनिक समय में भी ये परंपरा वैज्ञानिक दृष्टि से उचित मानी जाती है और इसे अपनाने की सलाह दी जाती है।
गिलास या लोटा क्यों है फर्क?
पुराने समय में लोग लोटे से पानी पीते थे, क्योंकि इसका आकार गोल होता है। गिलास सीधा और सिलेंडरनुमा है, जिसे आयुर्वेद कम लाभकारी मानता है। गोल आकार पानी की ऊर्जा को संतुलित करता है और शरीर के लिए अधिक अनुकूल होता है।
सरफेस टेंशन और शरीर पर असर
पानी जिस बर्तन में रखा जाता है, उसके गुणों को अपना लेता है। लोटे के गोल आकार के कारण पानी का सरफेस टेंशन (तनाव) कम हो जाता है, जिससे ये शरीर में आसानी से अवशोषित होकर पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। वहीं गिलास का आकार पानी में अधिक तनाव बनाए रखता है, जो स्वास्थ्य के लिए कम लाभकारी हो सकता है।
आंतों की सफाई और पाचन तंत्र में सुधार
कम सरफेस टेंशन वाला पानी आंतों की गहराई से सफाई करता है, जैसे दूध त्वचा से गंदगी खींच लेता है। ये पेट की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाता है, जिससे बवासीर, भगंदर और आंतों की सूजन जैसी समस्याओं की संभावना घटती है।
प्रकृति के करीब गोल आकार वाला पानी
कुएं और बारिश की बूंदें भी गोल आकार की होती हैं, जो पानी की प्राकृतिक बनावट को दर्शाती हैं। यही कारण है कि साधु-संत कमंडल का उपयोग करते हैं, जो लोटे जैसे गोल आकार के होते हैं। ऐसा पानी शरीर को लंबे समय तक स्वस्थ रखता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
डिस्क्लेमर: यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी के लिए है। किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।