अमृतपाल सिंह: नशा मुक्ति के नाम पर युवाओं को देता था बंदूक चलाने की ट्रेनिंग, पूर्व सैनिकों की मदद से तैयार कर रहा था गिरोह
पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के इशारे पर उसकी मूवमेंट और प्लानिंग को अंजाम देने की संभावना जताते हुए, उन्होंने कहा कि अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) ने दुबई से लौटने पर, पंजाब का अमृतसर जिला में अपने गांव जल्लूपुर खेड़ा में एक नशा मुक्ति केंद्र शुरू किया। अधिकारियों ने बताया कि एक साथ चलाए गए अभियान में उसने अपने आदमियों के साथ ऐसे पूर्व सैनिकों की तलाश शुरू कर दी, जो अपने बुरे बर्ताव के कारण सेना से रिटायर हो चुके थे
अमृतपाल सिंह: नशा मुक्ति के नाम पर युवाओं देता था बंदूक चलाने की ट्रेनिंग
भगोड़ा कट्टरपंथी सिख उपदेशक और खालिस्तान (Khalistan) समर्थक अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) नशा करने वाले और पूर्व सैनिकों को टारगेट कर रहा था। चंडीगढ़ में गुरुवार को पुलिस अधिकारियों ने ये जानकारी देते हुए बताया कि ऐसा करने के पीछे उसका मकसद ये था कि वो इन लोगों को साथ मिलाकर एक ऐसा गिरोह बनाना चाहता था, जिसे आगे चल कर आसानी से एक आतंकवादी संगठन (Terrorist outfit) में बदला जा सके।
पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के इशारे पर उसकी मूवमेंट और प्लानिंग को अंजाम देने की संभावना जताते हुए, उन्होंने कहा कि अमृतपाल सिंह ने दुबई से लौटने पर, पंजाब का अमृतसर जिला में अपने गांव जल्लूपुर खेड़ा में एक नशा मुक्ति केंद्र शुरू किया।
न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, अधिकारियों ने बताया कि एक साथ चलाए गए अभियान में उसने अपने आदमियों के साथ ऐसे पूर्व सैनिकों की तलाश शुरू कर दी, जो अपने बुरे बर्ताव के कारण सेना से रिटायर हो चुके थे, ताकि उनका इस्तेमाल हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने के लिए किया जा सके।
पिछले साल उसकी वापसी के तुरंत बाद और अभिनेता-कार्यकर्ता दीप सिद्धू की मौत के बाद उसने 'वारिस पंजाब दे' संगठन को संभाला। अमृतपाल सिंह के पास दो प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड का कवर था, और इस साल की शुरुआत में, ये संख्या बढ़ 16 हो गई थी।
अधिकारियों ने कहा कि आश्चर्यजनक बात ये थी कि उसके सात प्राइवेट सुरक्षा अधिकारी युवा थे, जो पुनर्वास के लिए उसके नशामुक्ति केंद्र में शामिल हुए थे। उन्होंने ये भी बताया कि इलाज के लिए वहां रहने के दौरान उन्हें ट्रेनिंग भी दी गई थी।
उन्होंने कहा कि नशामुक्ति केंद्र में भर्ती युवकों का ब्रेनवॉश किया गया और गन कल्चर की ओर धकेला गया। इन सभी को मारे गए आतंकवादी दिलावर सिंह का रास्ता चुनने के लिए भी उकसाया गया, जिसने खुद को उड़ा लिया और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी।
अधिकारियों ने कहा कि बदमाश पूर्व सैनिकों को निशाना बनाना खालिस्तान समर्थक उपदेशक के लिए फायदेमंद था, क्योंकि उसके पास पहले से ही हथियार वाले लाइसेंस थे, जो उनके संगठन को कानून से बचने में मदद कर सकते थे।
उन्होंने कहा कि ऐसे दो पूर्व सैनिकों की पहचान 19 सिख के वरिंदर सिंह और थर्ड आर्मर्ड पंजाब के तलविंदर सिंह के रूप में हुई है, जो नशीले पदार्थों के आदी युवाओं को हथियारों की ट्रेनिंग देने में अहम भूमिका निभाते थे।
गुरुद्वारे में रखे जाते थे हथियार
अधिकारियों ने कहा कि बाद में प्रशासन की तरफ से लाइसेंस रद्द कर दिए गए और वरिंदर सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि तलविंदर सिंह अभी भी फरार है।
अधिकारियों ने कहा कि इंटेलिजेंस मिलने के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने सतर्क किया था कि अमृतपाल सिंह युवाओं को आत्मघाती हमले करने के लिए तैयार करने के अलावा नशामुक्ति केंद्रों और हथियारों को जमा करने के लिए एक गुरुद्वारे का इस्तेमाल कर रहा था।
अलग-अलग सुरक्षा एजेंसियों के इनपुट से तैयार एक मोटे डोजियर में दावा किया गया है कि अमृतपाल सिंह मुख्य रूप से युवाओं को 'खड़कू' (आतंकवादी) बनने के लिए तैयार करने में लगे थे।
जांच के दौरान अमृतपाल सिंह की तथाकथित आनंदपुर खालसा फौज (AKF) के लिए हथियार और गोला-बारूद जब्त किए गए थे। अधिकारियों ने बताया कि वर्दी और जैकेट भी पुलिस ने जब्त कर ली है।
उन्होंने कहा कि कट्टरपंथी सिख उपदेशक की कार से जब्त किए गए हथियारों और गोला-बारूद पर 'AKF' के निशान भी हैं।
अधिकारियों ने कहा कि वारिस पंजाब दे की तरफ से चलाए जा रहे कई नशामुक्ति केंद्रों और अमृतसर के जल्लूपुर खेड़ा गुरुद्वारे में हथियार रखे जा रहे थे।
अमृतपाल सिंह ने मारे गए आतंकवादियों के एक 'शहीदी समागम' में भाग लिया था, जहां उन्होंने उन्हें पंथ के शहीद करार दिया, और गन कल्चर को बढ़ावा दिया और हथियारों के इस्तेमाल का महिमामंडन किया।
पंजाब पुलिस की तरफ से गिरफ्तार साथियों की रिहाई के लिए अमृतसर के पास अजनाला पुलिस स्टेशन पर धावा बोलने के हफ्तों बाद शुरू हुई एक बड़ी कार्रवाई में पंजाब पुलिस की तरफ से उनके कई समर्थकों को गिरफ्तार करने के बाद उपदेशक फरार है। इस प्रकरण ने पाकिस्तान की सीमा से लगे राज्य में खालिस्तानी उग्रवाद की वापसी की संभावना पर आशंका जताई थी।