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अयोध्या में राम मंदिर: अलौकिक अयोध्या में भारतीय संस्कृति की प्राण प्रतिष्ठा

अयोध्या की यह मेरी पहली यात्रा थी पर आखिरी नहीं है। मैं अपने मित्रों और परिवारजनों के साथ फिर अयोध्या जाऊंगा और इस प्राचीन और दिव्य भूमि से यह प्रेरणा लेता रहूंगा कि हम अपनी राम भक्ति को राष्ट्र भक्ति के साथ मिला दें और सब सब मिलकर एक सशक्त, समर्थ और संवेदनशील भारत के निर्माण में अपने जीवन को लगा दें

अपडेटेड Jan 26, 2024 पर 9:56 AM
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Ayodhya Ram Mandir: पीएम नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की थी और 23 जनवरी से लाखों की संख्या में भक्त दर्शन कर रहे हैं

22 जनवरी 2024 का वह दिन मेरे हृदय पर एक गहरी छाप छोड़ गया है। मुझे अयोध्या की पावन भूमि पर श्रीराम लला के दिव्य दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हृदय भावुक है - अनेक भावनाओं और विचारों से ओत प्रोत है।

हर मनुष्य के जीवन में कुछ क्षण, कुछ पल, कुछ अनुभव ऐसे होते हैं, जो जीवन को एक नयी दिशा देते हैं। जीवन के लक्ष्य के विषय में सोचने को मजबूर कर देते हैं। 22 जनवरी 2024 का वह दिन, मेरे जीवन का भी एक ऐसा ही निर्णायक दिन था।

मैं कृतज्ञ हूं, मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसे ऐतिहासिक क्षण के साक्षात्कार का अवसर मिला।


एक ऐसा ऐतिहासिक क्षण जो 500 वर्षों के अभूतपूर्व धैर्य के बाद मिला है

एक ऐसा ऐतिहासिक क्षण जो अनगिनत बलिदानों के बाद मिला है

एक ऐसा ऐतिहासिक क्षण जो कई पीढ़ियों के संघर्षों के बाद मिला है

राम आ गए हैं… हमारे राम आ गए हैं… अब हमारे राम, तम्बू में नहीं अपने भव्य मंदिर में विराजमान हैं। अयोध्या में, और देश विदेश में बसे, समस्त राम भक्तों के लिए मानो दिवाली है…

अयोध्या में चारों ओर एक नई ऊर्जा है, एक नया उत्साह है, एक नई उमंग है। हर कोई हर्ष से जय श्री राम के नारे लगा रहा है। कोई रो रहा है, कोई नाच रहा है, कोई गा रहा है… हर भारतवासी के हृदय में जोश और आनंद की अनुभूति है। सब अपने मित्रों और परिवार जनों के साथ Phone पर और Video Calls पर इस ख़ुशी को बाँटने के लिए आतुर हैं।

इस पावन अवसर पर मैं गर्व भी महसूस कर रहा हूँ। यह प्रत्येक भारतीय के लिये गौरव का क्षण है। मुझे भारतीय होने का गर्व है। मन में एक नया आत्मविश्वास जग उठा है। मुझे अपनी पहचान पर, अपनी भाषा पर, अपने धर्म पर गर्व है। बचपन में, मैं सोचता था कि Made in India ख़राब quality का माल है, और विदेशी वस्तुएं ज़्यादा अच्छी हैं। मैं जब मस्तक पर चंदन लगाता था, तो मेरे मित्र मेरी हंसी उड़ाते थे। अपने ही देश में, अंग्रेज़ी में बात करना विद्वत्ता की निशानी थी, और हिन्दी में या अपनी मातृभाषा में बात करने से आप अनपढ़ प्रतीत होते थे। आज मैं, इस मानसिक ग़ुलामी की ज़ंजीरों से मुक्त हूँ।

मेरे भारतीय संस्कार ही मेरी पहचान है। हमारी वेशभूषा में अनेक रंगों का सौंदर्य है। हमारी भाषा में अपनेपन का माधुर्य है। और हमारी प्राचीन सभ्यता के विचार, आज के आधुनिक काल की समस्याओं के समाधान खोज सकते हैं। वसुधैव कुटुम्बकम् एवं सर्वे भवन्तु सुखिनः जैसे सूत्र, आज भी पूरे विश्व को मानवता की दिशा दिखाने में समर्थ हैं।

प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा हमें रामायण के प्रसंगों से प्रेरणा लेनी चाहिए। कोई छोटा नहीं है। किसी में हीन भावना नहीं होनी चाहिए। जब ऐसी भावना आए कि मैं क्या कर सकता हूं… मैं तो बहुत छोटा हूं… तब उस गिलहरी को याद कीजिए, जिसने राम सेतु बनाने के लिये, कई बार, अपने शरीर पर लिपटे हुए बालू के कण, सेतु पर, लोट पोट हो कर अर्पण कर दिये। इसी प्रकार, भारत के निर्माण में, हर व्यक्ति का योगदान होना चाहिए, जैसे उस गिलहरी ने राम सेतु बनाने में अपना योगदान दिया।

जैसे राम जी ने, आदिवासी मां शबरी के घर पर जा कर, जूठे बेर खाये और निषाद राज से गहरी मित्रता और प्रेम रखा, उसी प्रकार हमें देश को भेदभाव से रहित बनाना है। हर कार्य को करने में गर्व होना चाहिए और सबको साथ लेकर चलना है। मुझे यह संवेदनशीलता और सामाजिक एकता का संदेश सुनकर बहुत गर्व और आनंद हुआ।

अयोध्या में सामने दिव्य और भव्य राम मंदिर सामने प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है। इस हर्ष और उल्लास के माहौल में मुझे बहुत ज़िम्मेदारी का भी अहसास हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक, श्री मोहन भागवत जी ने कहा कि, इस जोश के माहौल में होश लाने का काम उन्हें सौंपा गया है। उन्होंने कहा कि राम अयोध्या से वन में क्यों गए? परिवार में कलह के कारण गए। 14 साल का वियोग सब अयोध्या वालियों के लिए असहनीय था। पर इस युग में तो कलह के कारण हमने राम से 500 वर्ष का वियोग सहा है। बहुत पीड़ा और वेदना सही है। अब आगे, परिवार में कलह न हो, ऐसा करना है। सबको साथ लेकर चलना है। कोई छोटी मोटी बात हो, विवाद हो, विरोध हो, तो हर व्यक्ति के विचार सुनकर रास्ता निकालना चाहिए।

जब मोदी जी प्राण प्रतिष्ठा के बाद, मंच से उतर कर जा रहे थे, मैंने उन्हें 2 फीट की दूरी से देखा। उनके चेहरे पर अद्वितीय तेज था… चमकते सूर्य जैसी आभा थी। उन्होंने 11 दिन का कड़ा अनुष्ठान किया था - अन्न त्याग, उपवास, कड़कड़ाती सर्दी में भूमि शयन और अनेक कठोर नियमों का पालन किया।

उन्होंने हमें याद दिलाया कि काल चक्र घूम रहा है। यह भारत का समय है… अमृत काल है। 500 वर्ष के कड़े संघर्ष और असीम धैर्य के बाद यह समय आया है। हम सबको मिल जुल इस समय को गंवाना नहीं है… कड़ी मेहनत करनी है और देश को बनाना है। अगर मोदी जी इतना काम करते हैं… इतनी तपस्या कर सकते हैं… तो हम उनसे भी अधिक परिश्रम करेंगे। हम सबको यह संकल्प करना है कि अहम् को त्याग कर, मन में सेवा भावना के साथ, सबके मंगल के लिए काम करेंगे। शरीर का हर कण, जीवन का हर क्षण, बहुत जिम्मेदारी के साथ, हमारे भारत के निर्माण में लग जाए।

अयोध्या की पावन धरा पर 22 जनवरी 2024 को एक नयी चेतना, एक नयी ऊर्जा का संचार था

प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा…

भारतीय संस्कृति की प्राण प्रतिष्ठा है

मानवता के मूल्यों की प्राण प्रतिष्ठा है

आत्मविश्वासन से भरे नये भारत की प्राण प्रतिष्ठा है

एक प्राचीन और आधुनिक भारत के एकीकरण की प्राण प्रतिष्ठा है

मैं भावुक हूं, कृतज्ञ हूं, गर्व और ज़िम्मेदारी से भरा हुआ हूं। अयोध्या की इस ऊर्जा ने मेरी आत्मा में एक नयी चेतना को जागृत किया है। मेरे संकल्प को और दृढ़ किया है… मेरे जीवन को एक नयी दिशा दी है… कि हम सबको मिल कर अपने सपनों का भारत बनाना है।

अयोध्या की यह मेरी पहली यात्रा थी पर आख़िरी नहीं है। मैं अपने मित्रों और परिवार जनों के साथ फिर अयोध्या जाऊँगा और इस प्राचीन और दिव्य भूमि से यह प्रेरणा लेता रहूंगा कि, हम अपनी राम भक्ति को राष्ट्र भक्ति के साथ मिला दें और सब मिलकर एक सशक्त, समर्थ और संवेदनशील भारत के निर्माण में अपने जीवन को लगा दें।

Puneet Dalmia

Puneet Dalmia

First Published: Jan 25, 2024 3:30 PM

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