Chandrayaan-3: 14 दिन तक कैसे काम करेगा चंद्रयान-3, क्या पृथ्वी पर लौट आएंगे लैंडर और रोवर? इन सवालों के जवाब जानें यहां

Chandrayaan-3: रोवर प्रज्ञान (Rover Pragyan) के साथ लैंडर विक्रम (Lander Vikram) शाम 6:04 बजे चंद्रमा की सतह पर उतरा, जिससे बेंगलुरु समेत पूरे भारत में जश्न मनाया गया। कमांड सेंटर में लैंडिंग देख रहे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिक झूम उठे और पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। चंद्रयान-3 के दो हफ्ते तक एक्टिव रहने की उम्मीद है

अपडेटेड Aug 24, 2023 पर 7:04 PM
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Chandrayaan-3: 14 दिन की खोज के क्या करेगा चंद्रयान-3, क्या पृथ्वी पर लौट आएंगे लैंडर और रोवर?

Chandrayaan-3: भारत चंद्रमा के साउथ पोल (South Pole) के पास किसी स्पेस क्राफ्ट (Space Craft) की सॉफ्ट लैंडिंग (Soft Landing) कराने वाला पहला देश बन गया है। ये चांद की एक अज्ञात जगह की ऐतिहासिक यात्रा है। इस इलाके के बारे में वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि यहां जमे हुए पानी के महत्वपूर्ण भंडार हो सकते हैं। ये मिशन दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश के लिए एक तकनीकी विजय है। 2019 में चंद्रमा पर उतरने के असफल प्रयास के बाद, भारत अब अमेरिका, सोवियत संघ और चीन के साथ इस मील का पत्थर हासिल करने वाला चौथा देश बन गया है।

रोवर प्रज्ञान (Rover Pragyan) के साथ लैंडर विक्रम (Lander Vikram) शाम 6:04 बजे चंद्रमा की सतह पर उतरा, जिससे बेंगलुरु समेत पूरे भारत में जश्न मनाया गया। कमांड सेंटर में लैंडिंग देख रहे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिक झूम उठे और पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।

चंद्रयान-3 के दो हफ्ते तक एक्टिव रहने की उम्मीद है, जिसमें चांद की सतह की खनिज संरचना के स्पेक्ट्रोमीटर विश्लेषण समेत कई बड़ी खोज की जाएंगी। लेकिन कई लोगों के मन में सवाल ये है कि धरती के 14 दिनों के बाद मून मिशन और उसके डिवाइस का क्या होगा?


चंद्रयान-3 की मिशन लाइफ कितनी होगी?

चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर सोलर एनर्जी से चलते हैं और इसकी मिशन लाइफ एक लूनर डे यानि चांद पर एक दिन की होगी। चांद का एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर है। ऐसे में लैंडर और रोवर के लिए सूरज की रोशनी काफी अहम है। चांद के इस हिस्से पर सूरज की रोशनी 23 अगस्त से पड़नी शुरू हुई, यही कारण है कि ISRO ने सॉफ्ट लैंडिंग के लिए इस दिन को चुना था।

पृथ्वी के 14 दिनों के बाद, चांद के इस हिस्स पर सूरज की रोशन अगले कुछ दिनों के लिए पड़नी बंद हो जाएगी। इस पूरे साइकिल के दौरान चंद्रमा की सतह पर तापमान जीरो से -180 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। ऐसे में कोई भी टेक्नोलॉजी या डिवाइस काम करना बंद कर सकता है।

चांद पर लैंडिंग के लिए कितनी अहम है सूरज की रोशनी?

ISRO चाहता था कि चंद्रयान-3 की लैंडिंग उस समय चांद पर की जाए, जब सूरज की रोशनी उस हिस्स पर पड़ रही है, जिसे लूनर डे कहते हैं। इसलिए स्पेस एजेंसी 23 अगस्त का दिन चुना। अब अगर बुधवार को लैंडिंग असफल होती, तो अंतरिक्ष एजेंसी 24 अगस्त, गुरुवार को एक और लैंडिंग की कोशिश करती। इसका मतलब इस दिन भी भी चंद्रमा पर सूरज की रोशनी रहती, लेकिन अगर किसी कारण से दूसरी कोशिश भी नाकामयाब रहती, तो एक और नए लूनर डे का इंतजार करना पड़ता और लैंडिंग को 29 दिनों के लिए टालना पड़ जाता।

14 दिन बाद चंद्रयान-3 का क्या होगा?

चंद्रयान-3 की मिशन लाइफ एक लूनर डे की है, लेकिन ISRO अधिकारियों ने लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान की लाइफ एक और लूनर डे के लिए बढ़ाने की संभावना से भी इनकार नहीं किया है। ISRO चीफ एस सोमनाथ के अनुसार, जब तक सूरज की रोशनी पड़ती रहेगी, तब स्पेस क्राफ्ट के सभी सिस्टम काम करते रहेंगे।

उन्होंने कहा, “जिस समय सूरज डूबेगा, तब वहां घोर अंधेरा हो जाएगा, तापमान जीरे से -180 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाएगा। ऐसे में सिस्टम का एक्टिव रहना संभव नहीं है, और अगर ये आगे भी एक्टिव रहता है, तो हमें बहुत खुशी होगी, क्योंकि हम सिस्टम पर एक बार फिर से काम कर पाएंगे, और हम आशा करते हैं कि ऐसा ही होगा।"

तो क्या धरती पर वापस लौट आएगा चंद्रयान-3?

किसी भी स्थिति में, चंद्रयान-3 का कोई भी कॉम्पोनेंट या डिवाइस पृथ्वी पर वापस नहीं आएगा। वे चंद्रमा पर ही रहेंगे।

600 करोड़ रुपए की लागत वाले चंद्रयान-3 मिशन को 14 जुलाई को लॉन्च किया गया था। इस मिशन को लॉन्च व्हीकल मार्क-III (LVM-3) रॉकेट पर लॉन्च किया गया था, जो 41 दिन की यात्रा पूरी कर अपनी मंजिल तक पहुंचा।

दूसरी तरफ रूस ने भी अपना लूना-25 मून मिशन चांद के इसी हिस्से पर उतरने के लिए भेजा था, लेकिन इसका स्पेस क्राफ्ट कंट्रोल खो बैठा और चंद्रमा पर क्रैश हो गया।

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लैंडिंग के बाद, मॉड्यूल की इंटरनल जांच की गई और लैंडिंग वाली जगह पर सूरज के उगने का इंतजार किया गया। रोवर, लैंडर के अंदर से चंद्रमा की सतह पर उतरा, इसके वन साइड पैनल का इस्तेमाल किया गया, जिसने रैंप के रूप में काम किया।

चंद्रमा के साउथ पोल का वातावरण बहुत अलग है और वो हिस्सा पृथ्वी से भी नहीं दिखता है। इसलिए वहां मौजूद कठिनाइयों का अभी तक पता नहीं चल पाया है।

चंद्रमा के साउथ पोल रीजन को लेकर अब भी कई बड़ी खोज जारी हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसके आसपास का वो इलाका, जहां हमेशा छाया रहती है, वहां पानी की मौजूदगी हो सकती है, तो अब आप खुद समझ सकते हैं कि ये मून मिशन न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए कितना बड़ा है।

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First Published: Aug 24, 2023 2:39 PM

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