केंद्र सरकार ने विदेशों से कारोबार की अपनी नीति में अहम बदलाव किया है। अब एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने वाली योजनाओं के तहत विदेशी कारोबार के लिए रुपये में भुगतान किया जा सकता है। कॉमर्स मिनिस्ट्री ने नियमों में बदलाव की आज 9 नवंबर को जानकारी दी। मिनिस्ट्री का कहना है कि भारतीय रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण में बढ़ती दिलचस्पी के चलते यह फैसला लिया गया है ताकि वैश्विक लेन-देन में रुपये के लेन-देन को बढ़ावा दिया जा सके।
केंद्रीय बैंक आरबीआई ने इससे पहले 11 जुलाई 2022 को रुपये में वैश्विक लेन-देन के लिए एक मैकेनिज्म तैयार किया था। इसके आधार पर डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड (DGFT) ने अपने नियमों में बदलाव किया था और इसके तहत आयात-निर्यात की इनवॉयसिंग, पेमेंट और सेटलमेंट्स रुपये में किया जा सकता है। अब कॉमर्स मिनिस्ट्री ने इस मामले में एक कदम और बढ़ाया है।
केंद्रीय बैंक RBI ने 11 जुलाई को रुपये में वैश्विक कारोबार के लिए एक मैकेनिज्म बनाने का ऐलान किया था। इसके तहत इस मैकेनिज्म के तहत सभी आयात-निर्यात के लिए रुपये में भुगतान किया जा सकता है। रुपये में भुगतान कितना करना होगा, इसका आकलन दोनों देशों के बीच के एक्सचेंज रेट के हिसाब से होगा। इस प्रकार के कारोबारी लेन-देन को करने के लिए अधिकृत भारतीय बैंकों को जहां से कारोबार होना है, उस देश के बैंकों के स्पेशल वोस्ट्रो अकाउंट्स खोलने होंगे।
अभी तक नहीं हो पाया है एक भी लेन-देन
आरबीआई के मैकेनिज्म के तहत अभी तक कोई लेन-देन नहीं हुआ है लेकिन पिछले महीने मनीकंट्रोल ने जानकारी दी थी कि यूको बैंक और येस बैंक ने इस फ्रेमवर्क के तहत रूस के बैंकों से हाथ मिलाया है। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर टी रबि शंकर ने 20 अक्टूबर को कहा था कि रुपये के जरिए लेन-देन के लिए कई देशों से बेहतर रिस्पांस मिल रहा है और वे इसमें शामिल होना चाहते हैं।
बैंक इस कारण हिचक रहे अपनाने से
केंद्रीय बैंक आरबीआई ने जुलाई में रुपये ट्रेड सेटलमेंट मैकेनिज्म लाया था। हालांकि पिछले महीने सितंबर में ऐसी खबरें आई थी कि देश के कुछ बड़े बैंक इसे अपनाने से हिचक रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि रूस की कंपनियों के साथ एग्रीमेंट करने पर पश्चिमी देशों से प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
RBI ने क्यों लाया नया मैकेनिज्म
आरबीआई ने रुपये में कारोबारी लेन-देन को भारतीय करेंसी में बढ़ती वैश्विक दिलचस्पी को सपोर्ट करने के लिए लाया है और इसका लक्ष्य वैश्विक कारोबार को बढ़ावा देना है। आरबीआई ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है, जब रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई के चलते रुपये पर लगातार दबाव बढ़ रहा है।
इस साल 2022 में रुपया अब तक अमेरिकी डॉलर की तुलना में 10 फीसदी से अधिक टूट चुका है। रुपये की यह गिरावट थामने के लिए आरबीआई ने रिकॉर्ड मात्रा में विदेशी मुद्रा भी बेचे लेकिन इसका खास असर नहीं दिखा। रुपये ने पहली बार 83 के लेवल को पार कर दिया है।