आरबीआई के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन ने अपने हाल में दिए गए एक इंटरव्यू में कहा है कि भारत की इकोनॉमी ग्रोथ के रास्ते पर है लेकिन रोजगार के मोर्चे पर स्थितियां खराब बनी हुई हैं। इसके पहले रघुराम राजन ने रायपुर में कहा था कि भारत की इकोनॉमी ना सिर्फ ग्रोथ की पटरी पर है बल्कि यह तेजी से भाग रही है।
अब NDTV को दिए गए अपने एक इंटरव्यू में रघुराम राजन ने कहा कि भारत की ग्रोथ बहुत हद तक एक जॉब लेस ग्रोथ है। इकोनॉमी के लिए रोजगार सृजित होना काफी अहम होता है। हम नहीं कहते कि देश में हर कोई सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर या कंसल्टेंट होना चाहिए लेकिन हर किसी को एक अच्छे जॉब की जरूरत होती ही है।
बता दें कि इसके पहले देश के टॉप अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने कहा था कि भारत अपने नौजवानों के लिए उचित शिक्षा व्यवस्था ना करके उन्हें मेडिकल जैसी पढ़ाई करने के लिए विदेश जाने के लिए मजबूर कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को चीन की मैन्यूफैक्चरिंग आधारित ग्रोथ मॉडल की नकल ना करके सर्विस सेक्टर पर फोकस करना चाहिए। हमें देश में अच्छे डॉक्टर तैयार करके उनको दूसरे देशों में निर्यात किया जा सकता है।
उन्होंने इस बातचीत में आगे कहा कि भारत के ग्रोथ आंकड़े दूसरे देशों की तुलना में बेहतर हैं। लेकिन देश की बड़ी आबादी को देखते हुए देश को और ग्रोथ की जरुरत है। उन्होंने कहा कि भारत में रोजगार पैदा करने के लिए कोई शॉर्टकट नहीं है। इसके लिए हमें कौशल आधारित शिक्षा व्यवस्था निर्मित करनी होगी। अगर हम लोगों में स्किल डेवलप कर सकते हैं तो नौकरियां अपने आप आएंगी।
रघुराम राजन ने चेतावनी के लहजे में कहा कि भारत 10 साल पहले की तुलना में कम उदार लोकतांत्रिक देश है। हमें इसके परिणाम के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि देश की वर्तमान सरकार का मानना है कि जो लोग उसके लिए लगातार तालियां बजाते रहते हैं वही सही हैं, क्योंकि यह सरकार कभी गलत नहीं हो सकती।
उन्होंने इस बातचीत में आगे कहा "हर सरकार गल्तियां करती है। जब मैं सिस्टम का हिस्सा नहीं था। तब मैने यूपीए गर्वमेंट की आलोचना की थी और मैंने एनडीए सरकार के साथ भी काम किया है"। रघुराम राजन ने यह भी कहा कि उनके पास किसी का पक्ष लेने की कोई वजह नहीं है।
बता दें कि इसके पहले 30 जुलाई को रघुराम राजन ने कहा था कि भारत का भविष्य उदार लोकतांत्रिक मूल्यों की मजबूती और दूसरी लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती में निहित है। देश के आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए यह एक जरूरी शर्त है। उन्होंने देश में बहुलतावाद के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा था कि जब किसी देश के पोलिटीशियन रोजगार के संकट को अल्पसंख्यकों को लक्ष्य बनाकर नकारने की कोशिश करते हैं तब क्या होता है यह जानने के लिए श्रीलंका की तरफ देखें।