फिल्म अभिनेता बलराज साहनी ने मुंबई के नानावती अस्पताल में आखिरी सांसें ले रहे थे। उन्होंने अपने बेटे अजय साहनी को बुलाकर कहा कि मेरी मौत के बाद मेरी शय्या पर लाल पताका और लेनिन की किताबें रख देना। अंतिम घड़ी में उनसे मिलने आए लोगों से उन्होंने कहा था कि मेरे देशवासियों से मेरा स्नेह संदेश कह देना। मैंने एक सुखी जीवन जिया है। मुझे कोई पाश्चाताप नहीं है। मेरी मौत के बाद धार्मिक अनुष्ठानों का निर्वाह नहीं किया जाए। उनकी आखिरी इच्छा पूरी की गई थी।
इस देश के सुशिक्षित फिल्म अभिनेता बलराज साहनी का करीब सिर्फ 60 साल की उम्र में ही 1973 में निधन हो गया था। उन्हें 13 अप्रैल को उस समय दिल का दौरा पड़ा जब वे शूटिंग में जाने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें मुंबई के नानावती अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उन्हें दुबारा दौरा पड़ा और उनका इंतकाल हो गया। शांति निकेतन में प्रोफेसर रहे बलराज साहनी का एक मई, 1913 को रावलपिंडी में जन्म हुआ था।
बलराज साहनी के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था कि उनकी ऐसी असामयिक मौत होगी। दिवंगत साहनी ने अभिनय के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी थी। रात में उनका पार्थिव शरीर जुहू स्थित उनके निवास स्थान पर ले जाया गया। अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए। सबसे पहले आने वालों में ख्वाजा अहमद अब्बास, राज कपूर, नर्गिस, वहीदा रहमान, नंदा और राहुल देव बर्मन थे।
दूसरे दिन उनकी शव यात्रा प्रारंभ हुई। विले पार्ले की श्मशान भूमि में दिवंगत अभिनेता का दाह संस्कार किया गया। शव यात्रा में विभिन्न क्षेत्रों की अनेक बड़ी हस्तियों ने भाग लिया। तब यह कहा गया कि मोती लाल के बाद उनकी मृत्यु भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की दूसरी बड़ी क्षति थी। बलराज साहनी ने अनेक फिल्मों में पहले मुख्य भूमिकाएं निभाई।उसके बाद उन्होंने चरित्र अभिनेता की भूमिकाएं स्वीकार कीं। उनका आकर्षण अंत तक बरकरार रहा।
बलराज साहनी के निधन की खबर सुन कर सत्यजित राय ने कहा था कि ‘‘बलराज साहनी एक असाधारण अभिनेता थे। खेद है कि मुझे उनके साथ काम करने का अवसर नहीं मिल सका।’’ फिल्म जगत की कई बड़ी हस्तियों ने भी उनके बारे में इसी तरह के उद्गार प्रकट किये थे। बलराज साहनी अभिनेता के साथ -साथ साहित्यकार भी थे। उन्होंने अंग्रेजी में MA किया था। वे पंजाबी के अच्छे लेखक माने जाते थे। कविता और लघु कथाएं उन्होंने लिखीं। उन्होंने ‘मेरी फिल्म आत्म कथा' भी लिखी। प्रसिद्ध साहित्यकार भीष्म साहनी के वह भाई थे।
जिया सरहदी की फिल्म ‘हमलोग’ में सन 1949 में बलराज साहनी ने सबसे पहले काम किया। कहा जाता है कि पर्दे पर बार -बार दिखाई देने वाले चेहरे से बलराज साहनी का चेहरा भिन्न था। इसलिए भी उन्होंने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। वह यथार्थपरक भूमिकाएं निभाते थे। वे संवेदनशील, सुरूचिसंपन्न और गहरे सामाजिक सरोकारों से जुड़े अभिनेता थे। उनका शरीर छरहरा था। ऊंचा कद था और शांत और गंभीर मुद्रा थी। उनकी मीठी और भरी हुई आवाज उनके अभिनय में चार चांद लगा देती थी।
'दो बीघा जमीन' फिल्म में ही बलराज साहनी के अभिनय कौशल का लोगों ने लोहा मान लिया था। सत्यजित राय ने एक बार कहा था कि दो बीघा जमीन वह पहली भारतीय फिल्म है, जिसने सही अर्थ में सामाजिक यथार्थ को उद्घाटित किया था। इस फिल्म में बलराज साहनी ने एक भारतीय किसान और मजदूर यानी रिक्शा चालक की भूमिकाएं निभाई थीं। तब बलराज साहनी के अभिनय की विशेषताओं को ध्यान में रख कर कहानियां लिखी जाती थीं। ‘गरम कोट’ और ‘औलाद’ उनकी ऐसी ही फिल्में थीं।
एक खास तरह के अभिनय के लिए उन्हें टाइप न कर दिया जाए, इसलिए वे बाद में उच्च वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग की भी भूमिकाएं निभाने लगे थे। वामपंथी और दिग्गज कांग्रेसी नेता वी.के.कृष्ण मेनन के बलराज साहनी दोस्त थे। साहनी मुंबई के राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी उत्साह से हिस्सा लेते थे। कृष्ण मेनन ने मुंबई से लोक सभा का चुनाव लड़ा था। बलराज साहनी ने उनके पक्ष में प्रचार किया था। मंच से भाषण देते समय कभी- कभी बलराज साहनी को तीखे सवालों का सामना करना पड़ता था।
मुंबई के चुनाव भाषण के दौरान एक श्रोता ने बलराज साहनी से सवाल किया, ‘आप समाजवाद की वकालत करते हैं। शोषण खत्म करने की बात करते हैं। लेकिन क्या आपने कम पैसा बटोरा है? सबसे पहले आप अपनी संपत्ति क्यों नहीं बांट देते ?
इसके जवाब में बलराज साहनी ने कहा कि ‘संपत्ति का बंटवारा और दान पुण्य करने वालों की हमारे देश में कमी नहीं है। लेकिन क्या वे देश के हालात बदल सके हैं? समाज दान पुण्य से नहीं बदलता। उसे व्यवस्था बदलती है। मैं उस परिवर्तनकारी व्यवस्था का समर्थन करता हूं जो केवल बलराज साहनी से नहीं बल्कि हम सबसे आम आदमी के हक में संपति त्यागने की मांग कर और जरूरत पड़ने पर इसके लिए हमें मजबूर करे।’
बलराज साहनी इप्टा के संस्थापक सदस्य थे। उन्होंने अपनी भाषा पंजाबी के अलावा हिंदी और अंग्रेजी में भी अनेक कहानियां और लेख लिखे। यह कम ही लोग जानते हैं कि सन 1937 से सन 1939 तक बलराज साहनी शांति निकेतन में प्राध्यापक भी थे। सन 1940 से 44 तक उन्होंने BBC में उदघोषक का भी काम किया। सन 1944 में वह भारत लौटे और कुछ समय तक उन्होंने पृथ्वी थियेटर में भी काम किया था।