Jharkhand Assembly Special Session: झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार (Hemant Soren government) ने आरक्षण को बढ़ाकर 77 फीसदी (Reservations to 77%) कर दिया है, जो कि देश में सबसे अधिक है। झारखंड विधानसभा (Jharkhand Assembly) में शुक्रवार को विभिन्न श्रेणियों में दिए जाने वाले कुल आरक्षण को बढ़ाकर 77 प्रतिशत करने संबंधी एक विधेयक पारित हो गया। अब राज्य में अनुसूचित जनजाति (ST) को 28 फीसदी, पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 27 फीसदी और अनुसूचित जाति (SC) के लिए 12 फीसदी आरक्षण लागू हो जाएगा। विधेयक में कहा गया है कि राज्य संविधान की 9वीं अनुसूची में बदलाव करने का केन्द्र से आग्रह करेगा।
विधानसभा के विशेष सत्र में झारखंड पदों और सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण अधिनियम, 2001 (Jharkhand Reservation of Vacancies in Posts and Services Act, 2001) में एक संशोधन पारित करके ST, SC, EBC, OBC और आर्थिक रूप से कमजोर तबके (Economically Weaker Sections- EWS) के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 77 फीसदी कर दिया है।
हेमंत सरकार ने झारखंड विधानसभा के स्पेशल सेशन में दो महत्वपूर्ण विधेयक सदन के पटल पर रखे थे। इसमें 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति को कानूनी दर्जा देने के मकसद और दूसरा OBC आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने को लेकर था। यह दोनों विषय मौजूदा सरकार के घोषणा पत्र में भी शामिल थे।
कुल रिजर्वेशन को बढ़ाकर 77% किया गया
नई आरक्षण नीति के तहत पिछड़े वर्ग (OBC) को मिलने वाले कोटा को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया गया है। इसी तरह अनुसूचित जाति (SC) को मिलने वाला आरक्षण 10 फीसदी से बढ़ाकर 12 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति (SC) का आरक्षण 26 से बढ़ाकर 28 फीसदी कर दिया गया है।
इसके अलावा अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EWS) के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इस तरह कुल मिलाकर राज्य में अब आरक्षण का प्रतिशत 50 से बढ़कर 77 फीसदी हो जाएगा। बता दें कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार ने इसको लेकर झारखंड के लोगों से वादा किया था।
अन्य महत्वपूर्ण विधेयक भी पारित
इसके अलावा एक विधेयक पारित कर राज्य के स्थानीय निवासी होने का सत्यापन 1932 के जमीन दस्तावेज/रिकॉर्ड के आधार पर करने का फैसला लिया गया है। झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र में ‘झारखंड स्थानीय व्यक्ति की परिभाषा और ऐसे स्थानीय व्यक्ति को विशेष सामाजिक, सांस्कृति और अन्य लाभ मुहैया कराने संबंधी विधेयक, 2022' पारित किया गया।
दरअसल, राज्य के आदिवासी लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे। उनका कहना था कि ब्रिटिश शासनकाल में 1932 में कराए गए जमीन सर्वेक्षण के रिकॉर्ड के आधार पर व्यक्ति के स्थानीय निवासी होने का सत्यापन किया जाए ना कि 1985 के सर्वे के आधार पर, जैसा कि अभी हो रहा है।