Kargil Vijay Diwas: कारगिल के इन जांबाजों ने पाकिस्तान को ऐसे चटाई थी धूल, आज भी कांपती हैं दुश्मन की रूह

Kargil Vijay Diwas 2024: कारगिल युद्ध (Kargil War) में भारतीय सेना के 527 सैनिकों ने बलिदान दिया था। उन्होंने बहादुरी से देश के लिए लड़ाई लड़ी, और कारगिल विजय दिवस उन शहीद नायकों की याद और सम्मान के तौर पर मनाया जाता है, जिन्होंने "ऑपरेशन विजय" को सफल बनाने के साथ-साथ भारत की जीत के लिए अपनी जान दे दी

अपडेटेड Jul 26, 2024 पर 10:32 AM
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Kargil Vijay Diwas: कारगिल युद्ध के वो हीरों, जिन्होंने दुश्मन पाकिस्तान को बता दी उसकी औकात

कारगिल युद्ध को कौन भूल सकता है, जब 1999 में देश की सीमा में घुस आए पाकिस्तानी सैनिकों और उग्रवादियों को खदेड़ने के लिए वीर भारतीय सैनिकों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। कारगिल युद्ध में भारत की जीत की घोषणा 26 जुलाई 1999 को की गई थी। उस दिन को हम कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाते हैं और आज इस जीत को 25 साल पूरे हो गए हैं। इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया था।

युद्ध में भारतीय सेना के 527 सैनिकों ने बलिदान दिया था। उन्होंने बहादुरी से देश के लिए लड़ाई लड़ी, और कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) उन शहीद नायकों की याद और सम्मान के तौर पर मनाया जाता है, जिन्होंने "ऑपरेशन विजय" को सफल बनाने के साथ-साथ भारत की जीत के लिए अपनी जान दे दी।

कारगिल युद्ध के जांबाज हीरो


कैप्टन विक्रम बत्रा

कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्हें बाद में "टाइगर ऑफ द्रास" के नाम से जाना गया, 24 साल के थे, जब उन्होंने 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लड़ाई में अपनी जान गंवा दी। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो युद्ध के दौरान वीरता के लिए सर्वोच्च पदक था।

कैप्टन विक्रम को उनकी शानदार सफलता के लिए कई सम्मान मिले। उन्होंने "टाइगर ऑफ द्रास," "लायन ऑफ कारगिल," "कारगिल हीरो" और दूसरे नाम से भी जाना जाता है। उनका कॉल साइन आज भी सभी को याद है- ये दिल मांगे मोर

लेफ्टिनेंट बलवान सिंह

लेफ्टिनेंट बलवान सिंह, जिन्हें "टाइगर हिल का टाइगर" भी कहा जाता है। टाइगर हिल पर दोबारा कब्जा करने के लिए चलाए गए ऑपरेशन की कमान उनके ही हाथों में थी। 25 साल की उम्र में, उन्होंने घातक पलटन के सैनिकों को खतरनाक, एकदम खड़ी चढ़ाई कराते हुए 12 घंटे की यात्रा करा कर पहाड़ी पर पहुंचाया।

इस हमले ने दुश्मन को चौंका दिया, क्योंकि उसे ये उम्मीद कतई नहीं थी कि भारत इस तरह का चुनौतीपूर्ण रास्ता भी अपना सकता है। उन्होंने टाइगर हिल पर भारतीय ध्वज फहराया और उनकी वीरता के लिए उन्हें बाद में महावीर चक्र दिया गया।

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव

योगेंद्र यादव इतिहास में परमवीर चक्र पाने वाले सबसे कम उम्र के सैनिक थे। नायब सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव को अगस्त 1999 में भारत का सर्वोच्च सैन्य पदक परमवीर चक्र मिला। 12 जून 1999 को उनकी रेजिमेंट ने तोलोलिंग टॉप पर कब्ज़ा कर लिया। इस दौरान दो अधिकारी, दो जूनियर कमीशंड अधिकारी (JCO) और 21 सैनिकों की शहादत हो गई।

लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे

मनोज पांडे 1/11 गोरखा राइफल के जवान थे। उनके पिता का दावा है कि जब वो भारतीय सेना में भर्ती हुए, तो उनकी सिर्फ एक ही इच्छा थी कि उन्हें सर्वोच्च वीरता सम्मान, परमवीर चक्र हासिल करना है, जो आखिरकार उन्हें उनकी शहादत के बाद मिला।

राइफलमैन संजय कुमार

संजय कुमार ने कारगिल संघर्ष के दौरान एक कॉलम में काम किया था, जिसे मुश्कोह घाटी में प्वाइंट 4875 के फ्लैट टॉप पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था। जब दुश्मन के बंकरों में से एक से ऑटोमेटिक बंदूक से गोलीबारी ने भारतीय सैनिकों को आगे बढ़ने से रोका, तो कुमार ने सीधे उन पर हमला कर दिया।

कैप्टन सौरभ कालिया

सौरभ कालिया और पांच और सैनिकों को जंगल वाले बहुत ऊंचाई वाले काकसर सेक्टर में बजरंग पोस्ट की रेगुलर गश्त के दौरान जिंदा पकड़ा गया था। वे पाकिस्तानी रेंजर्स की एक बटालियन से घिरे हुए थे। गश्ती दल ने अपने पीछे कोई निशान नहीं छोड़ा था। उन सभी को पाकिस्तानी सेना के जवानों ने 24 दिनों तक यातना दीं, जिसके बाद उनके क्षत-विक्षत शवों को भारत के हवाले कर दिया।

कैप्टन जेरी प्रेम राज

कैप्टन जेरी प्रेम राज को द्रास सेक्टर में ट्विन बम्प्स पर हमला करने का मिशन दिया गया था। वह दुश्मन स्थिति का पता लगाने और उस पर सटीक आर्टिलरी से निशाना साधने में सक्षम थे। इस दौरान वह दुश्मन की गोलीबारी से घायल हो गए, फिर भी उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन पर गोलीबारी जारी रखी। दूसरी बार गोली लगने से वह गंभीर रूप से घायल हो गए। उनके साहस ने उनकी अपनी यूनिट को होने वाले नुकसान को कम कर दिया, जबकि उन्होंने दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया। ऐसा करके उन्होंने सबसे बड़ा बलिदान दिया, जिसके लिए उन्हें वीर चक्र दिया गया।

कैप्टन एन केंगुरुसे

एन केंगुरुसे ने 28 जून, 1999 की शाम को द्रास सेक्टर में एरिया ब्लैक रॉक पर ऑपरेशन विजय के दौरान घातक प्लाटून को लीड किया। उन्होंने जोखिम भरे कमांडो मिशन की जिम्मेदारी संभाली जिसमें, एक चट्टान पर रणनीतिक रूप से रखी गई दुश्मन मशीन गन पोस्ट पर हमला करना था, जो बटालियन के शुरुआती टारगेट के सभी रूट को गंभीर रूप से ब्लॉक कर रहा था।

लेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफ़ोर्ड नोंग्रम

ऑटोमेटिक फायरिंग से, दुश्मन ने लेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफ़ोर्ड नोंग्रम की टीम को लगभग दो घंटे तक रोके रखा। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना, उन्होंने हैंड ग्रेनेड दागना जारी रखा, जिससे छह दुश्मन सैनिक मारे गए। फिर, दूसरी जगह से फायरिंग करते हुए, उन्होंने दुश्मन की यूनिवर्सल मशीन गन को चुराने की कोशिश की।

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