देश के जाने-माने और सीनियर वकील मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) ने भारत का अगला अटॉर्नी जनरल बनाए जाने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को ठुकार दिया है। उन्होंने इसके लिए सरकार को धन्यवाद कहा और अपना फैसला सुना दिया। रोहतगी ने कहा कि उनके फैसले के पीछे कोई खास वजह नहीं है। इससे पहले रोहतगी जून 2014 से जून 2017 तक अटॉर्नी जनरल थे। उनके बाद के.के. वेणुगोपाल को जुलाई 2017 में इस पद पर नियुक्त किया गया था।
कहा जा रहा है कि मुकुल रोहतगी केके वेणुगोपाल की जगह लेने वाले थे। वो 1 अक्टूबर से अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करने वाले थे लेकिन इससे पहले उन्होंने इस ऑफर को ठुकराकर सबको चौंका दिया।
वेणुगोपाल की जगह लेने की केंद्र ने की पेशकश
इस समय भारत के अटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल हैं। रोहतगी के बाद 15 जुलाई 2017 को वेणुगोपाल को ही एजी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उनका कार्यकाल 3 साल का था, जो कि साल 2020 में खत्म होना था। जिसे सरकार ने फिर से आगे बढ़ा दिया था। अब 30 सितंबर को वेणुगोपाल का कार्यकाल खत्म हो जाएगा। बता दें कि एक अनुभवी वकील रोहतगी सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ देश भर के उच्च न्यायालयों में कई हाई-प्रोफाइल मामलों में पेश हुए हैं।
मुकुल रोहतगी का मुंबई में 17 अगस्त, 1955 को हुआ। वो दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अवध बिहारी रोहतगी के पुत्र हैं। मुकुल रोहतगी ने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की। साल 1978 में दिल्ली बार काउंसिल में नामांकित हुए। उन्हें 1994 में दो दशकों के भीतर एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया। अटॉर्नी जनरल के तौर पर अपने पहले कार्यकाल के दौरान रोहतगी ने कई महत्वपूर्ण मामलों में सरकार का बचाव किया।
जानिए कौन होता है अटॉर्नी जनरल
भारत सरकार में अटॉर्नी जनरल का पद काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। अटॉर्नी जनरल ही भारत सरकार का मुख्य कानून सलाहकार की भूमिका निभाता है और सभी कानूनी मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह भी देता है। अटॉर्नी जनरल की नियुक्ति भारत सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।