Coromandel Express Accident: रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रविवार को कहा कि ओड़िशा के बालासोर जिले में हुई भीषण रेल दुर्घटना इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम (Electronic Interlocking System) में बदलाव के कारण हुई है। वैष्णव ने मीडियाकर्मियों से बात करते हुए कहा कि दुर्घटना के कारण और इसके लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर ली गई है। उन्होंने कहा कि रेल हादसे की जांच पूरी हो चुकी है और रेल सुरक्षा आयोग जल्द ही अपनी रिपोर्ट सौंपेगा। रेल मंत्री ने कहा कि रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि यह हादसा इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव की वजह से हुआ है।
वैष्णव ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि असली समस्या इलेक्ट्रिक प्वाइंट मशीन को लेकर थी। रेलवे में सिग्नल और इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। आइए जानते हैं आखिर क्या होता है इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम और ये कैसे काम करता है?
क्या है इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम?
दरअसल, इंटरलॉकिंग पहले मैनुअली होती थी। लेकिन अब यह मैनुअली नहीं होती। अब यह इलेक्ट्रॉनिक हो गई है। इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग एक ऐसे टेक्नोलॉजी है, जो रेलवे सिग्नलिंग को कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। यह एक सिक्योरिटी सिस्टम है, जो ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सिग्नल और स्विच के बीच ऑपरेटिंग सिस्टम को कंट्रोल करती है। यह सिस्टम रेलवे लाइनों पर सुरक्षित और अवरुद्ध चल रही ट्रेनों के बीच सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करती है। इसकी मदद से रेल यार्ड के कामों को इस तरह से कंट्रोल किया जाता है जो नियंत्रित क्षेत्र के माध्यम से ट्रेन का सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करे।
रेल मंत्रालय के अनुसार, इंटरलॉकिंग रेलवे में सिग्नल देने में उपयोग होने वाली एक महत्वपूर्ण सिस्टम है। इसके जरिए यार्ड में फंक्शंस इस तरह कंट्रोल होते हैं, जिससे ट्रेन के एक कंट्रोल्ड एरिया के माध्यम से सुरक्षित तरीके से गुजरना सुनिश्चित किया जा सके। रेलवे सिग्नलिंग इंटरलॉक्ड सिग्नलिंग सिस्टम से काफी आगे है। यह एक ऐसा सिग्नलिंग अरेंजमेंट है, जिसमें इलेक्ट्रो-मैकेनिकल या कन्वेंशनल पैनल इंटरलॉकिंग से काफी ज्यादा फायदे हैं। इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में इंटरलॉकिंग लॉजिक सॉफ्टवेयर बेस्ड होता है। इसमें कोई भी मोडिफिकेशन आसान होता है। यह सिस्टम एक प्रोसेसर बेस्ड सिस्टम होता है। फेल होने के मामले में भी इसमें न्यूनतम सिस्टम डाउन टाइम होता है।
रेलवे का इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों की सुरक्षा और एक सुगम गति प्रदान करने के लिए उपयोग होती है। यह इंजीनियरिंग सिस्टम है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक और कंप्यूटर नेटवर्क के इस्तेमाल से ट्रेनों के बीच ट्रांजिशन को कंट्रोल किया जाता है। रेलवे स्टेशन के पास यार्डों में कई लाइनें होती हैं। इन लाइनों को आपस में जोड़ने के लिए प्वाइंट्स होते हैं। इन प्वाइंट्स को चलाने के लिए हर पॉइंट पर एक मोटर लगी होती है। वहीं, सिग्नल की बात करें, तो सिग्नल के द्वारा लोको पायलट को यह अनुमति दी जाती है कि वह अपनी ट्रेन के साथ रेलवे स्टेशन के यार्ड में प्रवेश करे।
अब प्वाइंट्स और सिग्नलों के बीच में एक लॉकिंग होती है। लॉकिंग इस तरह होती है कि प्वाइंट सेट होने के बाद जिस लाइन का रूट सेट हुआ हो, उसी लाइन के लिए सिग्नल आए। इसी को सिग्नल इंटरलॉकिंग कहते हैं। इंटरलॉकिंग ट्रेन की सुरक्षा सुनिश्चित करती है। इंटरलॉकिंग का मतलब है कि अगर लूप लाइन सेट है, तो लोको पायलट को मेन लाइन का सिग्नल नहीं जाएगा। वहीं, मेन लाइन सेट है, तो लूप लाइन का सिग्नल नहीं जाएगा।
ओडिशा रेल दुर्घटना में कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन (Coromandel Express Train) मेन लाइन से लूप लाइन पर चली गई थी, जहां पहले से ही मालगाड़ी खड़ी थी। इसी मालगाड़ी से कोरोमंडल एक्सप्रेस टकरा गई। इससे ट्रेन के कुछ डिब्बे दूसरी लाइन पर गिर गए थे। इसी दौरान बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस डाउन मेन लाइन से जा रही थी, जिसकी टक्कर इन डिब्बों से हो गई और यह बड़ा हादसा हो गया। रेलवे ने बताया कि कि सिर्फ कोरोमंडल एक्सप्रेस हादसे की शिकार हुई है। ओवरस्पीडिंग जैसी कोई बात नहीं है।
रेलवे बोर्ड के ऑपरेशन और बिजनेस डेवलपमेंट की सदस्य जया वर्मा सिन्हा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हादसे की वजहों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि शुरुआती जांच से ऐसा लगता है कि सिग्नल का कोई मुद्दा रहा होगा, जिससे ये दुर्घटना हुई। सिन्हा ने हादसा कैसे हुआ इसका ब्योरा देते हुए बताया कि बहानागा में स्टेशन पर चार लाइनें हैं। इनमें से दो मेन लाइन हैं। लूप लाइन पर एक माल गाड़ी खड़ी थी। ड्राइवर स्टेशन पर ग्रीन सिग्नल ले चुका था, जबकि दोनों गाड़ियां पूरी तेजी से दौड़ रही थीं।
शुरुआती जांच से पता चला है कि सिर्फ कोरोमंडल दुर्घटना की शिकार हुई थी। हादसे के वक्त उसकी गति 126 किलोमीटर प्रति घंटा थी। वहीं, मालगाड़ी पटरी से नहीं उतरी, क्योंकि लौह अयस्क लदा था। सबसे ज्यादा नुकसान कोरोमंडल एक्सप्रेस को हुआ। कोरोमंडल एक्सप्रेस की पटरी से उतरी आखिरी दो बोगियां यशवंतपुर एक्सप्रेस से टकरा गईं और यह भीषण हादसा हो गया। ओवरस्पीडिंग की कोई बात नहीं थी। पायलट को सिग्नल ग्रीन दिख रहा था, इसलिए उसे सीधा जाना था।