यह बात कम ही लोग जानते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की हत्या की साजिश रची गयी थी।
यह बात कम ही लोग जानते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की हत्या की साजिश रची गयी थी।
यह बात 1984 की है। यह साजिश बिहार के एक बड़े नेता के पटना स्थित आवास पर हुई। पर यह सूचना लीक हो गयी। याद रहे कि झोपड़ी के लाल कर्पूरी ठाकुर को नरेंद्र मोदी सरकार ने इस साल ‘भारत रत्न’ सम्मान से नवाजा है। याद रहे कि दिवंगत ठाकुर जीवन भर गरीबों और कमजोर वर्ग के लोगों के पक्ष में आवाज उठाते रहे।
नतीजतन निहित स्वार्थी तत्व और उनके राजनीतिक विरोधी उनके खिलाफ साजिश रचते रहते थे।
इस संबंध में 11 सितंबर 1984 को खुद कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के मुख्य सचिव और डी.जी.पी.को पत्र लिखे थे। तत्कालीन मुख्य सचिव के.के.श्रीवास्तव ने वह पत्र तब के मुख्य मंत्री चद्र शेखर सिंह के समक्ष प्रस्तुत किया। मुख्यमंत्री ने उस पर 13 सितंबर को लिखा कि ‘‘किस व्यक्ति द्वारा इन्हें ऐसी सूचना मिली, इसकी जानकारी प्राप्त कर पूछताछ की जानी चाहिए।’’
याद रहे कि इस संबंध में कर्पूरी ठाकुर ने मुख्य सचिव को लिखा था कि पटना में एक नेता के आवास पर इस अगस्त महीने में एक बैठक हुई थी। उसमें दस व्यक्ति मौजूद थे। वे दो जातियों से थे।बाद में उनमें से दो व्यक्तियों ने साजिश की सूचना लीक कर दी।एक व्यक्ति ने एक पूर्व मंत्री और दूसरे व्यक्ति ने एक दूसरे पूर्व मंत्री को यह सूचना दी। अपने पत्र में कर्पूरी ठाकुर ने उन पूर्व मंत्रियों के नाम भी लिखे थे।
सूचना का निष्कर्ष यह है कि हथियार खरीदने के लिए दस लाख रुपए खरीदने की योजना बनी। फिर मेरी हत्या की योजना बनी। कर्पूरी ठाकुर ने अपने पत्र में उस नेता का नाम भी लिखा जिनके आवास पर यह साजिश हुई। यह भी लिखा कि किन दो जातियों के लोग उस बैठक में उपस्थित थे। उस पत्र की फोटोकाॅपी इन पंक्तियों के लेखक के पास है।पर किसी विवाद से बचने के लिए नेता और उनकी जातियों के नाम यहां नहीं दिए जा रहे हैं।
बाद में इस मामले में क्या हुआ, यह पता नहीं चल सका था। संभवतः यह सनसनीखेज खबर उन दिनों के अखबारों में नहीं आ पाई थी। आई भी होगी तो इन पंक्तियों के लेखक को जानकारी नहीं। दरअसल कर्पूरी ठाकुर की जान पर खतरा बना रहता था। जब सन 1988 में विवादास्पद परिस्थितियों में कर्पूरी ठाकुर का निधन हुआ, तब भी यह कहा गया कि शायद उसमें किसी की साजिश थी।
कर्पूरी ठाकुर के असामयिक निधन की स्थितियों की जांच की मांग पूर्व मुख्य मंत्री राम सुंदर दास ने की थी। दिवंगत दास ने सन 1994 में प्रेस कांफ्रेंस में यह मांग की कि कर्पूरी ठाकुर की मौत के कारणों की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। कर्पूरी ठाकुर के दल के एक नेता डा.रघुवंश प्रसाद सिंह ने,जो बाद में केंद्रीय मंत्री बने थे, 22 फरवरी 1988 को तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी को पत्र लिख कर यह मांग की थी कि कर्पूरी ठाकुर की मौत की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए ताकि जनता की आशंकाओं को निर्मूल किया जा सके।
आरोप लगा कि अतुलानंद नामक एक रहस्यमय साधु ने कर्पूरी ठाकुर से गलत यौगिक क्रिया करवा कर उनकी जान ले ली। यह 17 फरवरी, 1988 की बात है।कर्पूरी ठाकुर की हालत बिगड़ने लगी तो अतुलानंद फरार हो गया। बाद में अतुलानंद का कहीं कोई पता नहीं चल सका था। कर्पूरी ठाकुर के कुछ राजनीतिक और सरकारी फैसलों के कारण भी कई राजनीतिक हस्तियां उनके खिलाफ थीं।
यहां तक कि 1977 के उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्य भी कर्पूरी ठाकुर की अवहेलना करते थे।
कर्पूरी ठाकुर के जीवनी लेखक नरेंद्र पाठक ने अपनी पुस्तक में एक महत्वपूर्ण प्रकरण का जिक्र किया है।एक बार दिवंगत ठाकुर से उत्तर प्रदेश के एक मित्र ने पूछा था कि समाजवादी मुख्य मंत्री होने के बावजूद आपने बिहार में भूमि सुधार लागू क्यों नहीं किया ?
उसके जवाब में अपनी बेचारगी बयान करते हुए कर्पूरी जी ने कहा था कि ‘‘मैं जिस मंत्रिमंडल की बैठक में भू हदबंदी का प्रस्ताव लाता,उस बैठक के बाद मैं जीवित बाहर नहीं आता। मेरी लाश आती। उस बैठक में जो पिछड़ी जाति के सामंत थे, वही पहले मेरी हत्या करते। अगर मुझे जिंदा रह कर गरीब और कमजोर जातियों के लिए कुछ करना था,तो भूमि सुधार के उस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में ही पड़े रहने देने में मेरी और दलित- पिछड़ों की भलाई थी।’’
कर्पूरी जी ने यह भी कहा था कि ‘‘मुझे खून का घूंट पीकर रह जाना पड़ता है, जब गरीबों पर अत्याचार होता है और यह अत्याचार अगड़ी जातियों के सामंतों से पहले पिछड़ी जाति के सामंत द्वारा होता है।मैं उस दिन के इंतजार में हूं,जब ये कमजोर जातियां संगठित होकर सामंतों के जुल्म के एक -एक पल का हिसाब मांगेंगी, तब बड़े भूमिधारी लोग, जो गरीबों का हक मार कर पटना, रांची और दिल्ली में महल खड़ा किए हैं,खुद भाग जाएंगे। पता नहीं वह दिन कब आएगा ।मैं रात दिन इसी सोच में डूबा रहता हूं।’’
ऐसे विचार वाले नेता की जान के दुश्मन कोई होता है तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं है। कर्पूरी ठाकुर झोपड़ी में पैदा हुए थे और अपने वंशजों के लिए वही झोपड़ी छोड़कर मरे। जबकि वे 1952 से ही लगातार विधायक,सांसद उप मुख्य मंत्री और दो बार मुख्य मंत्री रहे। वह जीवन में सिर्फ एक चुनाव हारे। 1984 में समस्तीपुर से वह लोक सभा का चुनाव नहीं जीत पाए थे।
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