Get App

मोदी-चंद्रचूड़ पर हमला बोलने वाले अपने गिरेबान में तो झांकें!

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के घर गणपति पूजा के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जाने को लेकर विपक्ष और वकीलों के एक वर्ग ने जो घमासान मचा रखा है, वो न्यायिक इतिहास और संवैधानिक परंपराओं के हिसाब से बेमानी है। अगर इतिहास में झांका जाए, तो इन दोनों के व्यवहार में कोई गड़बड़ी नजर नहीं आएगी, उल्टे अतीत के किस्से सबको चौंका देंगे, जब संवैधानिक मर्यादाओं का जमकर हनन हुआ था

Brajesh Kumar Singhअपडेटेड Sep 12, 2024 पर 6:38 PM
मोदी-चंद्रचूड़ पर हमला बोलने वाले अपने गिरेबान में तो झांकें!
पीएम नरेंद्र मोदी गणपति पूजा के अवसर पर भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के घर गए थे जिसके बाद विपक्ष हंगामा कर रहा है

प्याले में तूफान आ गया है, दिल्ली में सियासत का ये हाल है। मुद्दा है चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के घर पर गणपति पूजा के दौरान बुधवार की शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहुंचने और वहां आरती करने को लेकर। इसे लेकर क्या विपक्षी पार्टियां और क्या एक्टिविस्ट टाइप अधिवक्ता, सब सवाल खड़ा कर रहे हैं। नौबत ‘सेपरेशन ऑफ पावर’ के खत्म हो जाने से लेकर मोदी और चंद्रचूड़ की मिलीभगत और निजी रिश्तों की वजह से केंद्र सरकार के पक्ष में चंद्रचूड़ के फैसला देने के आरोप तक आ गई है। कांग्रेस, उद्धव शिवसेना, समाजवादी पार्टी के नेताओं से लेकर सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, सारे हमला बोल रहे हैं, मोदी और चंद्रचूड़ पर।

सवाल ये उठता है कि क्या पीएम मोदी ने सीजेआई चंद्रचूड़ के घर पर जाकर पाप किया है या फिर मोदी के घर आ जाने के कारण चंद्रचूड़ की निष्पक्षता खतरे में पड़ गई है? इससे भी बड़ा सवाल ये कि क्या चंद्रचूड़ को घर में गणपति पूजन करना भी चाहिए था या नहीं या फिर अगर किया भी, तो उसे मोदी के पहुंचने की तस्वीरों के साथ सार्वजनिक हो जाना गलत था, ऐसे ढेर सारे सवाल खड़े हो गये हैं।

इसका जवाब तलाशने के लिए हमें अतीत में झांकना होगा, क्योंकि भारतीय संविधान में जो उल्लिखित नहीं होता, उसके लिए परंपराओं में जाना होता है। सवाल ये उठता है कि क्या भारतीय संविधान में इस बात की मनाही है कि देश का मुख्य न्यायाधीश पूजा नहीं कर सकता, या फिर धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो सकता? फिर सवाल ये कि क्या संविधान में ‘सेपरेशन ऑफ पावर’ की जो व्याख्या है, उसके तहत प्रधानमंत्री और सीजेआई का मिलना, वो भी घर पर, गैरकानूनी, परंपरा के खिलाफ है?

क्या देश का प्रधानमंत्री सीजेआई से निजी सलाह-मशविरा भी नहीं ले सकता?

सब समाचार

+ और भी पढ़ें