RIP Sitaram Yechury: CPI(M) नेता सीताराम येचुरी का निधन, 72 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

RIP Sitaram Yechury: सीपीआई (एम) महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद सीताराम येचुरी का गुरुवार (12 सितंबर) को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के कद्दावर महासचिव 72 वर्ष के थे। उन्हें दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था

अपडेटेड Sep 12, 2024 पर 4:33 PM
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Sitaram Yechury: सीताराम येचुरी हालत गंभीर बनी हुई थी। वह AIIMS दिल्ली में वेंटीलेटर पर थे

RIP Sitaram Yechury: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी का निधन हो गया है। CPI(M) के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने 72 वर्ष की उम्र में गुरुवार (12 सितंबर) को दिल्ली एम्स में आखिरी सांस ली। वह लंबे से बीमार चल रहे थे। माकपा ने मंगलवार को एक बयान में बताया था कि 72 वर्षीय येचुरी को दिल्ली एम्स में ICU में रखा गया है। बयान में बताया गया कि उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई है। राज्यसभा सांसद को निमोनिया की तरह के सीने में संक्रमण के इलाज के लिए 19 अगस्त को एम्स में भर्ती कराया गया था।

येचुरी ने 2015 में सीपीएम के महासचिव के रूप में पार्टी के दिग्गज नेता प्रकाश करात का स्थान लिया था। 12 अगस्त, 1952 को चेन्नई में जन्मे येचुरी भारतीय राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति थे। वह गठबंधन की राजनीति के लिए अपने रणनीतिक दृष्टिकोण और मार्क्सवाद के सिद्धांतों के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे।

येचुरी की राजनीतिक यात्रा 1974 में शुरू हुई जब वे स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) में शामिल हुए। इसके बाद वे धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए। वह तीन बार JNU छात्र संघ के अध्यक्ष बने और बाद में SFI के अखिल भारतीय अध्यक्ष बने। 1984 में वे CPI(M) की केंद्रीय समिति के लिए चुने गए और स्थायी आमंत्रित सदस्य बन गए। 1992 तक वे पोलित ब्यूरो के सदस्य थे, जिस पद पर वे तीन दशकों से अधिक समय तक रहे।


सीतारम येचुरी 2005 से 2017 तक पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के सांसद रहे। उन्होंने 2015 में CPI(M) के महासचिव के रूप में शानदार काम किया। इसलिए वह 2018 और 2022 में दो बार इस पद पर फिर से चुने गए। येचुरी ने पार्टी के दिवंगत नेता हरकिशन सिंह सुरजीत के मार्गदर्शन में काम सीखा था, जिन्होंने गठबंधन युग की सरकार में प्रमुख भूमिका निभाई थी।

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येचुरी ने अपने कौशल को तब और निखारा जब वामपंथी दलों ने कांग्रेस की अगुवाई वाली पहली UPA सरकार का समर्थन किया। हालांकि उन्होंने अक्सर नीति-निर्माण में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार पर दबाव डाला। उन्होंने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर सरकार के साथ बातचीत में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसके कारण करात के अड़ियल रुख के कारण वाम दलों ने UPA-1 सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।

Akhilesh

Akhilesh

First Published: Sep 12, 2024 4:09 PM

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