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Opinion: कांग्रेस और BJP ट्विटर पर जो बोलते हैं, केजरीवाल सरकार उसे धरातल पर कर दिखाती है

आम आदमी पार्टी (AAP) द्वारा एक नया ट्रेंड सामने लाया गया है- राष्ट्रीय पटल के राजनीतिक मुद्दों पर आधारित योजना शुरू करना

अपडेटेड Feb 25, 2022 पर 8:57 PM
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (FILE)

सागर विश्नोई

पांच राज्यों में चुनाव शुरू हो चुके हैं। चुनाव प्रचार अपने चरम पर है, लेकिन मुद्दों को लेकर पार्टियों में काफी अलग-अलग चीजें देखने को मिल रही हैं। राजनीतिक पार्टियां अक्सर क्या करती हैं कि जब वे शासन में होती हैं, तो नई योजनाएं या तो वो दूसरे राज्यों से कॉपी करती हैं या फिर अपने घोषणा पत्र से जुड़े हुए वादे पूरी करती हैं। इसमें एक निरंतरता देखने को मिलती है। कांग्रेस, BJP या समाजवादी पार्टी सबने लगभग यही किया है, लेकिन हाल ही में आम आदमी पार्टी (AAP) द्वारा एक नया ट्रेंड सामने लाया गया है- राष्ट्रीय पटल के राजनीतिक मुद्दों पर आधारित योजना शुरू करना। चाहे यह राजनीतिक मुद्दा किसी भी पार्टी द्वारा खड़ा किया गया हो। यही वजह है कि कई राज्यों में दूसरी पार्टियां आम आदमी पार्टी के वादों को कॉपी करती नजर आ रही हैं।

आम आदमी पार्टी जब दिल्ली में 2020 में जीती तब उसके पास फिर से भारी बहुमत था, लेकिन इस बार रणनीति अलग थी। केवल राजनीति ही नहीं, गवर्नेंस के लिए भी। बाकी पार्टियों से अलग, जहां आम आदमी पार्टी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली जैसे मुद्दों पर आधारित राजनीति कर रही है, वहीं वह प्रगतिशील भी दिखती है, जो किसी के पहनावे, या धर्म-उकसावे की राजनीति के बजाय अपनी गवर्नेंस में नवाचार लाने की कोशिश कर रही है। बीजेपी के पास राम मंदिर, धारा 370 और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे रेडीमेड मुद्दे हैं। समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस अपनी पुरानी सरकारों के कामों को गिना रही हैं। वहीं कांग्रेस सबसे ज्यादा चकित करते हुए राष्ट्रीय पटल पर वोक मुद्दे उठाकर राजनीति कर रही है।


वोक मुद्दे और कांग्रेस

कांग्रेस के बड़े नेता केवल ट्विटर तक अपनी बात कहते दिखते हैं। बड़े कांग्रेसी नेता जमीन से नदारद रहते हैं और मुद्दों से भी। चुनावों में कांग्रेसी नेता मैरिटल रेप जैसे संवेदनशील विषय पर धड़ाधड़ ट्विटर पर बोल रहे हैं, जबकि मुख्यधारा में यह विषय कहीं नहीं था। ऐसा नहीं है कि इस विषय पर बात नहीं होनी चाहिए, लेकिन जब आपकी पार्टी पांच राज्य के चुनावों में है, तब शीर्ष नेतृत्व का जमीन और संसद में न होकर ट्विटर पर बिना किसी कानूनी पक्ष के वोक मुद्दे उठाना नेतृत्व और संगठन के लिए संकट दर्शाता है।

इसी तरह 'यूपी चुनाव 2022' के लिए 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' अभियान की शुरुआत केवल ट्विटर की जनता को प्रभावित करने जैसा लगता है। कारण यह नहीं है कि अभियान के पोस्टर में दिखाई गई पांच में से तीन लड़कियों ने BJP जॉइन कर ली, बल्कि कांग्रेस ने नारीवाद मुद्दे पर केवल बात की, महिलाओं को वो अहसास नहीं दे पाई जिससे महिलाओं के अंदर उन्हें पसंद करने या वोट देने का भाव आए।

यह भाव कांग्रेस शासित राज्यों में महिला आधारित नीतियां लागू करके प्रचारित किया जा सकता था। जैसे BJP ने उज्ज्वला, ममता बनर्जी ने कन्याश्री, रूपाश्री और AAP ने फ्री महिला बस सेवा के जरिए किया। राजनीति में महिलाओं की बात होनी चाहिए और इस तरह के अभियान भी, लेकिन चुनावों में केवल 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' मुद्दा लेकर जाना आत्मघाती होता है।

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इसी तरह हिजाब मुद्दे पर बिकिनी कमेंट जैसी प्रतिक्रिया देना, अपने ऊपर हमले के लिए आमंत्रण देना था, जिससे बचा जा सकता था। राजनीति लूज टॉक के लिए नहीं है। कांग्रेस के विपरीत समाजवादी पार्टी ने बीजेपी के हिजाब के जवाब में जॉब बोलकर मैच्योरिटी दिखाई। कांग्रेस की यह रणनीतियां उसे मुद्दे आधारित चुनाव से बाहर बैठा रही हैं।

आम आदमी पार्टी की समझदारी

वहीं आम आदमी पार्टी राजनीति और जनता की नस को आसानी से समझ रही है। यह 2014 वाली पार्टी नहीं है, जो एक्टिविज्म पर चल रही थी। अब यह मैच्योर राजनीतिक पार्टी है, जो धीरे-धीरे अपना लॉन्ग टर्म विजन तैयार कर रही है। इसके कई उदाहरण भी हैं।

बीजेपी चाहे कितना ही राष्ट्रवादी पार्टी होने का ढोल पीट ले, कांग्रेस अपने आप को सबसे पुरानी राष्ट्रवादी पार्टी कह ले, लेकिन चुनावों में शिक्षा को मुद्दा बनाने वाले अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने सबसे पहले 2021 में देशभक्ति पाठ्यक्रम शुरू किया।

देशभक्ति पाठ्यक्रम के अंतर्गत नर्सरी कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक के लिए स्वतंत्रता सेनानियों से लेकर संविधान के ऊपर पाठ्यक्रम है। यह शिक्षा क्षेत्र में अपने आप में अनूठी पहल है। बाकी पार्टियां सिर्फ सोशल मीडिया पर अग्रेसिव रहीं, केजरीवाल की सरकार ने उसे प्रैक्टिकल में उतार दिया।

इसी तरह शहीदों के घर जाकर खुद मुख्यमंत्री द्वारा एक करोड़ राशि देना दिल्ली सरकार की एक योजना है, जिसमें शायद ही दिल्ली सरकार चूकती है। उसी प्रकार हाल ही में 26 जनवरी 2022 को दिल्ली में 75 जगह पर राष्ट्रीय झंडे का अनावरण किया और पूरे दिल्ली में 500 जगह झंडे लगाने का प्लान है।

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झंडे की राजनीति बीजेपी ने शुरू की लेकिन आप पार्टी की सरकार उसे धरातल पर ला रही है। वहीं सभी सरकारी दफ्तरों, विधायक दफ्तरों में बाबासाहेब आंबेडकर और भगत सिंह की फोटो लगाना भी इसी प्लान का एक हिस्सा है।

बीजेपी का मंदिर अभियान राम मंदिर के निर्माण पर खत्म हो गया, लेकिन आम आदमी पार्टी का उसके बाद शुरू हुआ। राम मंदिर निर्माण प्रक्रिया चालू होने के कुछ समय बाद ही अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की कि वह मुख्यमंत्री तीर्थ योजना के अंतर्गत बुर्जुर्गों के लिए स्पेशल ट्रेन दिल्ली से अयोध्या तक चलवाएंगे, जो उन्होंने दिसम्बर में चलवाई भी।

अब राम मंदिर के लिए आंदोलन बीजेपी ने किया। कोर्ट के फैसले के बाद गाजे-बाजे के साथ उसका जश्न भी मनाया, लेकिन उनके पास इस तरह की किसी योजना का रोडमैप या प्लान नहीं था, जो इसे गवर्नेंस से जोड़े। आम आदमी पार्टी ने जनमानस का मंदिर के प्रति भाव को देखते हुए इसपर एक योजना बना दी। इस योजना को वो उत्तराखंड से गोवा तक ले गए।

राजनीतिक मुद्दे का कार्यकाल जब खत्म होने लगता है, तो गवर्नेंस या योजना के जरिए उसे जिंदा किया जा सकता है और उसकी अवधि बढ़ाई जा सकती है। कहना गलत न होगा कि 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' को गवर्नेंस में अगर आम आदमी पार्टी क्रियान्वित कर दे, तो कोई आश्चर्य होगा। आश्चर्य यह है कि बाकी पार्टियों की तुलना में छोटे कैडर और कम फंडिंग होते हुए भी आम आदमी पार्टी राजनीति करने में माहिर है।

यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक सागर विश्नोई पेशे से पोलिटिकल कंसलटेंट और चुनावी विश्लेषक हैं। सागर ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से स्ट्रेटेजी में पढ़ाई की है।

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