RBI MPC Meet: क्या 5 साल बाद रिजर्व बैंक घटाएगा रेपो रेट? 7 फरवरी को फैसला, कटौती हुई तो क्या होगा असर
RBI MPC Meet Decision: रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI, बैंकों को कर्ज देता है। MPC ने इससे पहले मई, 2020 में रेपो रेट को 0.40 प्रतिशत घटाकर 4 प्रतिशत किया था। SBI की रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि खुदरा महंगाई चौथी तिमाही यानि जनवरी-मार्च में घटकर 4.5 प्रतिशत और चालू वित्त वर्ष 2024-25 में औसतन 4.8 प्रतिशत पर रहने की उम्मीद है
RBI MPC Meet: वर्तमान में रेपो रेट 6.5 प्रतिशत है।
RBI Monetary Policy Committee Meeting: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की फरवरी महीने की मीटिंग बुधवार, 5 फरवरी से शुरू हो गई। इस बार की MPC मीटिंग रिजर्व बैंक के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में हो रही है। प्रमुख ब्याज दर रेपो रेट पर फैसला शुक्रवार, 7 फरवरी को सामने आएगा। उम्मीद है कि इस बार MPC रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकती है। अगर ऐसा होता है तो यह बजट में खपत को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदमों को मजबूती देगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि खुदरा महंगाई साल के ज्यादातर समय में रिजर्व बैंक के संतोषजनक दायरे (2 से 6 प्रतिशत) के अंदर रही है। इसलिए केंद्रीय बैंक सुस्त खपत से प्रभावित ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए पॉलिसी रेट्स में कटौती को लेकर कदम उठा सकता है। हालांकि रुपये में गिरावट अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है।
रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI, बैंकों को कर्ज देता है। MPC ने इससे पहले मई, 2020 में रेपो रेट को 0.40 प्रतिशत घटाकर 4 प्रतिशत किया था। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि अर्थव्यवस्था को कोविड महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन के संकट से निपटने में मदद मिल सके। इसके बाद RBI ने मई 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर रेपो रेट में बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू किया और आखिरी बार रेपो रेट में बढ़ोतरी फरवरी, 2023 में की गई। वर्तमान में रेपो रेट 6.5 प्रतिशत है।
मौजूदा स्थिति पॉलिसी रेट में कटौती के पक्ष में
एक्सपर्ट्स का मानना है कि मौजूदा स्थिति पॉलिसी रेट में कटौती के लिए अनुकूल है। इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर के मुताबिक, ‘‘हमें नहीं लगता कि केंद्रीय बजट में किए गए राजकोषीय प्रोत्साहन का महंगाई पर बड़ा असर होगा। इसलिए हमें लगता है कि स्थिति फरवरी, 2025 की मौद्रिक नीति समीक्षा में दर में कटौती के पक्ष में है।’’ नायर ने कहा कि हालांकि, अगर ग्लोबल फैक्टर इस सप्ताह के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपये में और अधिक कमजोरी का कारण बनते हैं, तो पॉलिसी रेट में कटौती अप्रैल, 2025 तक टल सकती है।
रुपये की गिरावट पर हाल ही में वित्त सचिव तुहिन कांत पांडेय ने कहा है कि रुपये के मूल्य को लेकर कोई चिंता नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक देश की मुद्रा की अस्थिरता को संभाल रहा है।
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के आर्थिक विभाग की रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘हमें फरवरी, 2025 की मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की कटौती की उम्मीद है। फरवरी और अप्रैल में दो बार कटौती के साथ पॉलिसी रेट में कुल 0.75 प्रतिशत की कटौती की जा सकती है। उसके बाद इसे जस का तस छोड़ा जा सकता है। कटौती का दूसरा दौर अक्टूबर, 2025 से शुरू हो सकता है।’’
SBI की रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि खुदरा महंगाई चौथी तिमाही यानि जनवरी-मार्च में घटकर 4.5 प्रतिशत और चालू वित्त वर्ष 2024-25 में औसतन 4.8 प्रतिशत पर रहने की उम्मीद है। इसमें यह भी कहा गया है कि जनवरी के महंगाई आंकड़े 4.5 प्रतिशत के आसपास बने हुए हैं। दिसंबर 2024 में खुदरा महंगाई घटकर 4 महीने के निचले स्तर 5.22% पर आ गई।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के मुताबिक, ‘‘इस बार पॉलिसी रेट में कटौती की संभावना है। इसके दो कारण हैं। सबसे पहले, RBI पहले ही नकदी बढ़ाने के उपायों की घोषणा कर चुका है। इससे बाजार की स्थिति में सुधार हुआ है। पॉलिसी रेट में कटौती के लिए यह आगे का रास्ता साफ करता है।’’ सबनवीस ने कहा कि केंद्रीय बजट के जरिए प्रोत्साहन दिया गया है और इसे सपोर्ट करने के लिए रेपो रेट को कम करना उचित जान पड़ता है। घरेलू स्तर पर बैंकों के लिए कैश की तंग स्थिति को देखते हुए रिजर्व बैंक ने 27 जनवरी को बैंकों में 1.5 लाख करोड़ रुपये की नकदी डालने के उपायों की घोषणा की।
लोन पर असर: अगर मौद्रिक नीति समिति फरवरी की मीटिंग में रेपो रेट में कटौती करती है तो नागरिकों के लिए लोन की EMI सस्ती हो सकती है। रेपो रेट घटने पर बैंकों को RBI से सस्ते में लोन मिलता है। इसका फायदा ग्राहकों को देने के लिए बैंक, रेपो रेट से लिंक्ड ब्याज दरों में कटौती करते हैं, जिससे होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन सस्ता बन जाता है। MCLR (Marginal Cost of Fund Based Lending Rate) से लिंक्ड लोन भी सस्ते हो सकते हैं।
FD रेट्स पर असर: रेपो रेट में कटौती से FD (Fixed Deposit) कम आकर्षक बन जाती हैं क्योंकि बैंकों में पर्याप्त लिक्विडिटी होती है और उन्हें ज्यादा ब्याज की पेशकश कर जमा पाने की जरूरत नहीं रहती है। इसलिए रेपो रेट घटने से FD पर ब्याज घटने की संभावना रहती है।
रुपये पर असर: रेपो रेट में बदलाव का देश की मुद्रा पर भी असर होता है। उच्च रेपो रेट विदेशी निवेशकों को अपने निवेश पर बेहतर रिटर्न की चाहत में आकर्षित कर सकती है, जिससे देश की मुद्रा की कीमत बढ़ सकती है। इसके उलट कम रेपो रेट विदेशी निवेश को डिस्करेज कर सकती है और मुद्रा में कमजोरी का कारण बन सकती है। इसी कारण से माना जा रहा है कि रुपये की गिरावट, रेपो रेट में कटौती को टाल भी सकती है।