धीर राजपूत, फिरोजाबाद
धीर राजपूत, फिरोजाबाद
ईद उल अजहा का त्योहार ईद उल-फितर के तकरीबन 70 दिन बाद मनाया जाता है। इसे लेकर बाजारों में काफी रौनक बढ़ जाती है। खरीदार बकरे, नए कपड़े, खजूर आदि चीजों की खरीदारी करते हैं। ईद उल अजहा पर कुर्बानी देना शबाब का काम माना जाता है। इसलिए बकरीद पर हर कोई कुर्बानी देता है। यह कुर्बानी हजरत इब्राहिम की कुर्बानी को याद करने के लिए दी जाती है। ईद उल अजहा पर कुर्बानी देना वाजिब है और वाजिब का मुकाम फर्ज से ठीक नीचे है। इस्लाम में कुर्बानी को लेकर कुछ नियम भी बताए गए हैं। जिनका पालन करना हर किसी के लिए जरूरी होता है।
बकरीद के दिन को कुर्बानी का दिन कहा जाता है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। इस्लामिक परंपरा के अनुसार बकरीद वाले दिन कुर्बानी देने से पहले कुछ नियमों का पालन करना बेहद जरूरी माना गया है। आइए फर्ज-ए-कुर्बानी के पहले पालन किए जाने वाले इन नियमों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नाबालिग बकरे की कुर्बानी नहीं दी जाती
फिरोजाबाद के मौलाना आलम मुस्तफा याकूबी ने लोकल 18 से बातचीत करते हुए कहा कि ईद-उल-अजहा का त्योहार बलिदान के रुप में मनाया जाता है। मुस्तफा ने कहा कि कुर्बानी के लिए दिए जाना वाले जानवर को लेकर कुछ नियम बनाए गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि जिस जानवर की कुर्बानी देना है नाबालिग नहीं होना चाहिए। यानी बालिग होना चाहिए। जानवर पूरी तरह से स्वस्थ्य हो। उसे किसी भी तरह की कोई बीमारी नहीं होनी चाहिए। जानवर के कहीं चोट नहीं लगी होनी चाहिए। उसके सींग पैर सुरक्षित होना चाहिए। वहीं नमाज अदा करने के बाद कुर्बानी के वक्त जानवर और उसे जिबह करने वाले दोनों का मुंह किबला की तरफ होना चाहिए। कुर्बानी के बाद उसके तीन हिस्से किए जाते हैं। एक हिस्से को घर वाले रख लेते हैं। दूसरे हिस्से को रिश्तेदारों में और तीसरे हिस्से को गरीबों में बांट दिया जाता है।
कर्ज में डूबा शख्स नहीं दे सकता कुर्बानी
मौलाना ने लोकल 18 से बातचीत करते हुए आगे बताया कि मुस्लिम समुदाय के लोग इस दिन अपनी हैसियत के अनुसार कुर्बानी देते हैं। अगर कोई भी व्यक्ति कर्ज में डूबा है तो वह कुर्बानी नहीं दे सकता है।
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