Independence Day Special: ये हैं विभिन्न क्षेत्रों में इतिहास रचने वाली भारतीय महिलाएं, दुनिया में किया भारत का नाम रोशन

"मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है…" इन पंक्तियों को साबित कर दिखाया है देश की उन महिलाओं ने, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धि हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं

अपडेटेड Aug 08, 2023 पर 12:50 PM
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Independence Day 2022: देश अपनी आजादी के 75 साल पूरे होने की खुशी में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है

MC Independence Day Special 2022: देश के लिए इस बार 15 अगस्त (Independence Day 2022) बेहद खास होने वाला है। भारत इस साल आजादी का 75वां अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है। इसके जरिए स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देशभक्ति का जो जज्बा था, उसे मौजूदा पीढ़ी में भरने और इसका इस्तेमाल राष्ट्र निर्माण में करने की एक कोशिश है।

शहीद जवानों को याद करने के लिए देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर इस साल आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मनाया जा रहा है। सदियों की अंग्रेजों की गुलामी से आजादी तक का सफर इतना आसान नहीं रहा। सैकड़ों अमर सेनानियों के बलिदान के बाद मिली स्वाधीनता की बड़ी कीमत भारत ने चुकाई है। भारत की आजादी में महिला और पुरुष दोनों ने कंधे से कंधा मिलाकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।

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कई महिलाओं ने भी आजादी के लिए समाज से जंग लड़ी है और कड़े संघर्ष के बाद एक नया मुकाम हासिल किया है। उन महिलाओं ने संघर्षों के बल पर नया इतिहास लिखा है और उस क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाई है, जहां पुरुषों का सालों से वर्चस्व रहा है

इन महिलाओं ने रचा इतिहास

"मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है…" इन पंक्तियों को सही साबित कर दिखाया है देश की उन महिलाओं ने, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धि हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं। भारत को 15 अगस्त 1947 में अंग्रेजी हुकूमत से आजादी तो मिल गई थी, लेकिन महिलाएं उसके बाद भी अपनी आजादी के लड़ाई लड़ती रही और यह लड़ाई आज भी जारी है।

आइए, आजादी के इस पर्व पर उन प्रमुख भारतीय महिलाओं को याद करते हैं, जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में संघर्ष और अपनी कड़ी मेहनत के दम पर रूढ़िवादी विचारधारा को बदला और महिलाओं के लिए पथ प्रदर्शक बनीं....

अरुणिमा सिन्हा (Arunima Sinha)

एक बार असफल होने पर ही हम अपनी काबिलियत पर शक करने लगते हैं, लेकिन अरुणिमा सिन्हा उन सभी लोगों के लिए एक बहुत बड़ा उदाहरण हैं, जो एक बार गिरने के बाद दोबारा उठने की कोशिश नहीं करते हैं। अरुणिमा सिन्हा राष्ट्रीय स्तर की पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी और माउंड एवरेस्ट शिखर पर चढ़ने वाली पहली भारतीय दिव्यांग (विकलांग) महिला हैं। अरुणिमा ऐसी पहली दिव्यांग महिला हैं, जिन्होंने न सिर्फ माउंट एवरेस्ट को फतह किया, बल्कि दुनिया की सबसे ऊंची सभी पर्वत चोटियों को फतह करने की ठानी है।

12 अप्रैल 2011 को लखनऊ से देहरादून जाते समय उनके बैग और सोने की चेन खींचने की कोशिश में कुछ अपराधियों ने बरेली के पास पदमवाती एक्सप्रेस से अरुणिमा को बाहर फेंक दिया था, जिसके कारण वह अपना एक पैर गंवा बैठीं। हालांकि, इसके बावजूद अपनी बुलंद हौसलों से उन्होंने इतिहास रच दिया।

अपराधियों द्वारा चलती ट्रेन से फेंक दिए जाने के कारण एक पैर गंवा चुकने के बावजूद अरूणिमा ने गजब के जीवन का परिचय दिया। उन्होंने 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (29028 फुट) को फतह कर एक नया इतिहास रच दिया। उन्होंने ऐसा करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया।

डॉक्टर आनंदीबाई जोशी (Anandibai Joshi)

भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदीबाई जोशी का जन्म 31 मार्च 1865 को पुणे के जमींदार परिवार में हुआ था। आनंदीबाई जोशी साल 1887 में पहली भारतीय महिला डॉक्टर बनी थीं। वह पहली भारतीय महिला भी थीं, जिन्हें पश्चिमी चिकित्सा में प्रशिक्षित किया गया था और इसके साथ ही अमेरिका की यात्रा करने वाली वह पहली महिला भी थीं। जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी दूभर थी, ऐसे में विदेश जाकर डॉक्‍टरी की डिग्री हासिल करना अपने-आप में एक मिसाल था।

उनकी शादी महज 9 साल की अल्‍पायु में उनसे करीब 20 साल बड़े गोपालराव से हो गया था। जब 14 साल की उम्र में वह मां बनीं और उनकी एकमात्र संतान की मौत 10 दिनों में ही गई तो उन्‍हें बहुत बड़ा आघात लगा। अपनी संतान को खो देने के बाद उन्‍होंने यह प्रण किया कि वह एक दिन डॉक्‍टर बनेंगी और ऐसी असमय मौत को रोकने का प्रयास करेंगी।

उस दौर में क्‍या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई भारतीय महिला डॉक्टर बनकर इतिहास रचेगी। आनंदीबाई ने साल 1886 में 21 साल की उम्र में एमडी की डिग्री हासिल कर ली। इसके साथ ही वो एमडी की डिग्री पाने वाली भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं। उसी साल आनंदीबाई भारत लौट आईं, डॉक्टर बन कर देश लौटी आनंदी का भव्य स्वागत किया गया था। आनंदीबाई जोशी का व्‍यक्तित्‍व महिलाओं के लिए प्रेरणास्‍त्रोत हैं।

रीता फारिया पॉवेल (Reita Faria Powell)

रीता फारिया पॉवेल एक भारतीय मॉडल, डॉक्टर और ब्यूटी क्वीन हैं। रीता ने मिस वर्ल्ड 1966 का खिताब जीता था। इसके साथ ही मिस वर्ल्ड खिताब जीतने वाली वह पहली एशियाई महिला बन गईं। वह डॉक्टर के रूप में डिग्री प्राप्त करने वाली पहली मिस वर्ल्ड विजेता भी बनीं। 23 अगस्त, 1943 को मुंबई में जन्मीं रीता फारिया उस वक्त 23 साल की थीं, जब उन्होंने 'मिस वर्ल्ड' का ताज अपने नाम किया था।

मिस वर्ल्ड 1966 कॉन्टेस्ट के दौरान उन्होंने 'बेस्ट इन स्विमसूट' और 'बेस्ट इन इवनिंग वेयर' का खिताब भी जीता था। इस इवेंट में उन्होंने 51 देशों से आई सुंदरियों को मात दी थी। रीता सौंदर्य प्रतियोगिता जीतने वाली पहली एशियाई महिला बनी थीं। इसके साथ ही वह एक डॉक्टर के रूप में योग्यता प्राप्त करने वाली पहली मिस वर्ल्ड विजेता भी हैं।

आरती साहा (Arati Saha)

आरती साहा साल 1959 में इंग्लिश चैनल को तैरकर पार करने वाली पहली भारतीय और एशियाई महिला बनी थीं। वह 1960 में 'पद्म श्री' से सम्मानित होने वाली पहली महिला खिलाड़ी भी बनीं। पश्चिम बंगाल की मूल निवासी आरती ने महज 4 साल की उम्र से ही तैराकी शुरु कर दी थी। उनका पूरा नाम आरती साहा गुप्ता है।

सचिन नाग ने उनकी इस प्रतिभा को पहचाना और उसे तराशने का कार्य शुरु किया। 1949 को आरती ने अखिल भारतीय रिकार्ड सहित राज्यस्तरीय तैराकी प्रतियोगिताओं को जीता। उन्होंने 1952 में हेलसिंकी ओलंपिक में भी भाग लिया। भारतीय पुरुष तैराक मिहिर सेन से प्रेरित होकर उन्होंने इंग्लिश चैनल पार करने की कोशिश की। 29 सितंबर 1959 को वे एशिया से ऐसा करने वाली पहली महिला तैराक बन गईं। उन्होंने 42 मील की यह दूरी 16 घंटे 20 मिनट में तैय की थी।

सरला ठकराल (Sarla Thakral)

सरला ठकराल को महज 21 साल की उम्र में फ्लाइट उड़ाने का लाइसेंस मिल गया था। इसके साथ ही वह फ्लाइट उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं। सिर्फ 21 साल की उम्र में चार साल की बेटी की मां होने के बावजूद सरला ठकराल ने बाकायदा ट्रेनिंग लेने के बाद ब्रिटिश राज में पायलट का लाइसेंस हासिल किया था। लाइसेंस प्राप्त करने के बाद, उन्होंने एक एयरक्राफ्ट उड़ाने के 1,000 घंटे पूरे किए और ‘A’ लाइसेंस प्राप्त करने वाली पहली महिला पायलट बन गईं।

उन्होंने एयरमेल पायलट का लाइसेंस पाने वाली पहली भारतीय का खिताब भी हासिल किया था। दिल्ली में 1914 में पैदा हुईं सरला की शादी महज 16 साल की उम्र में पायलट पीडी शर्मा के साथ हो गई थी। शर्मा ही उनकी प्रेरणा बने थे और उन्होंने ही उड़ान भरने के लिए सरला को हिम्मत और सुविधाएं दी थीं। कई इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उनके पति और ससुर ने उन्हें पायलट बनने के लिए प्रोत्साहित किया था।

जस्टिस अन्ना चांडी (Justice Anna Chandy)

जस्टिस अन्ना चांडी केरल की रहने वाली थीं। उनका जन्म 4 मई 1905 को केरल (उस समय का त्रावणकोर) के त्रिवेंद्रम में हुआ था। वह देश की पहली महिला जज होने के साथ-साथ हाई कोर्ट में पहली मह‍िला न्यायाधीश भी थीं। जस्टिस अन्ना चांडी 1937 में जिला अदालत में नियुक्त होने पर पहली भारतीय महिला जज बनीं। 1937 में केरल के दीवान सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने चांडी को मुंसिफ के तौर पर नियुक्त किया।

इसके बाद 1948 में अन्ना चांडी का जिला जज के तौर पर प्रमोशन हो गया। उस समय तक भारत के किसी भी हाई कोर्ट में कोई महिला जज नहीं थी। इसके बाद 1959 में अन्ना चांडी केरल हाईकोर्ट की पहली महिला जज बन गईं। चांडी ने महिलाओं के काम करने के अधिकारों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और अपने समय की सबसे मुखर नारीवादी कहलाईं।

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